बीरभूम, मुकेश तिवारी. बीरभूम के बोलपुर में शिबपुर मौजा के अनिच्छुक किसानों ने उधोग नहीं लगने पर अपनी जमीन वापस करने के लिए आंदोलन किया था इसी तरह का आंदोलन बीरभूम के मोहम्मदबाजार में देउचा-पचामी कोयला खदान के लिए देखा जा रहा है. वाम काल में शिबपुर मौजा में तीन सौ एकड़ कृषि भूमि को उद्योगों की स्थापना के लिए क्षेत्र के किसानों से लिया गया था. लेकिन वाम सरकार के सत्ता से जाने के बाद तृणमूल की सरकार ने उक्त जमीन पर उधोग न लगाकर उस जमीन पर विश्व -बांग्ला विश्वविद्यालय सहित आवास परियोजनाओं और विभिन्न अन्य कार्यक्रम आधारित परियोजनाओं का निर्माण किया गया है. इससे यहां के भूमि मालिक और किसान अपनी जमीन वापस लेने की मांग करते हुए लगातार आंदोलन कर रहे है.
देउचा-पचामी कोयला खदान परियोजना का स्थानीय आदिवासी समुदाय के कई संगठन द्वारा सरकार के खिलाफ अपनी जमीन वापस करने की मांग को लेकर आंदोलन छेड़ दिया है. जैसा कि राज्य सरकार ने सूचित किया है कि एशिया की यह दूसरी सबसे बड़ी कोयला खनन परियोजना है. किसी भी भूमि का जबरन अधिग्रहण नहीं किया जाएगा, यह परियोजना इच्छुक भूमि देने वाले के परिवारों में से एक को नौकरी दी जाएगी. इस योजना लिए सरकार द्वारा भूमि देने पर सरकारी नौकरी समेत कई सुविधाएं देने का ऐलान किया गया है.
इससे आकर्षित होकर कई भूमि मालिकों ने सरकार को अपनी जमीन भी दी है. 1 फरवरी को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बोलपुर डाकबंगला मैदान में एक सरकारी सेवा समारोह में आकर बताया था की देउचा-पचामी कोयला खदान के लिए सरकार के स्वामित्व वाली 1000 एकड़ भूमि पर परियोजना का काम शुरू हो गया है और बोरिंग द्वारा कोयले की खोज की गई है. शेष 3 हजार 370 एकड़ भूमि भी इस परियोजना के लिए अधिग्रहित की जा चुकी है. उनमें से 285 को मानवीय परियोजनाओं में ग्रुप-डी की नौकरियों में नियुक्त किया गया है. उस दिन सभा मंच से मुख्यमंत्री ने भूमि देने वाले 594 लोगों को आरक्षक पद का नियुक्ति पत्र सौंपा और इसे ‘मौन क्रांति’ बताते हुए कहा कि हम लाखों लोगों के रोजगार के लिए कटिबद्ध है.
सीएम ने कहा की कोयला योजना का और विस्तार किया जाएगा. मुख्यमंत्री की इस घोषणा के बाद राज्य की वित्त मंत्री चंद्रिमा भट्टाचार्य द्वारा बुधवार, 15 फरवरी को राज्य विधानसभा में पेश किए गए बजट में देउचा-पचामी कोयला खदान परियोजना के लिए 35 हजार करोड़ रुपये के निवेश की घोषणा की और कहा कि आने वाले दिनों में इस प्रोजेक्ट से लाखों युवक-युवतियों को रोजगार मिल सकता है. इस बजट के बाद कोयला खनन के लिए सरकारी पैकेज में कोयला खनन के लिए जमीन देने के लिए कई जमीन मालिक इच्छुक हो गए हैं.
लेकिन इसी बीच स्थानीय मूल आदिवासियों ने मौजूदा सरकार के इस कोयला परियोजना के खिलाफ एकजुट होने का आह्वान किया गया. इस बीच कोयला योजना के खिलाफ आदिवासियों ने आदिवासी अधिकार महासभा का गठन किया और कोयला खनन के खिलाफ तथा जल, जीवन, आजीविका और प्रकृति की मांग हेतु आदिवासियों ने महासभा का गठन किया.
मौके पर नवगठित आदिवासी अधिकार महासभा लखीराम बास्कि , जगन्नाथ टुडू, प्रसेनजीत बोस, झारखंड डेनियल मुरख ग्रामसभा कमेटी की ओर से आदिवासी नेताओं के साथ हिंगलो ग्राम पंचायत के हरिनसिंगा फुटबॉल मैदान से जुलूस निकाला गया और दीवानगंज, हरमदंगल सहित विभिन्न क्षेत्रों का परिक्रमा किया गया. दगू चंदा, थबर बागान से हॉरनेट फुटबॉल के मैदान में लौटा गया और कोयला खदान के खिलाफ आदिवासी संगठन की महासभा ने अपनी आवाज बुलंद की. लेकिन इसी बीच इस संगठन को तोड़ने के लिए इन आदिवासियों के कई नेताओं के खिलाफ प्रशासन ने झूठे मुकदमों में फंसाने और प्रताड़ित करने की बात उठाई.
उन्होंने भूस्वामियों पर गलत बयानी कर कोयला खनन के लिए जमीन लेने का भी आरोप लगाया है. लेकिन अचानक आदिवासी अधिकार महासभा किसके समर्थन में बनी, यह सवाल अब प्रशासनिक और राजनीतिक तौर पर घूमने लगा है. विरोधी राजनीतिक दलों का कहना है की आदिवासी अपनी मांग पर अड़े रहेंगे. मौजूदा सरकार हिटलरी रूप दिखाकर स्थानीय आदिवासियों से भूमि अधिग्रहण करना चाहती है. आदिवासियों का यह चिंगारी वाला आंदोलन एक दिन विकराल रूप धारण करेगा. अब तो समय ही बताएगा की आने वाले दिनों में देउचा पचामी कोयला परियोजना बनती है या बिगड़ती है.