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लॉकडाउन के कारण मछुआरे नहीं जा पा रहे हैं घर, नाव पर ही बीत रही है जिन्दगी

कोविड-19 महामारी से बचाव के लिए किए गए लॉकडाउन के कारण कई मछुआरे अपनी नाव पर ही गुजर बसर करने को मजबूर हैं

अजय विद्यार्थी

कोलकाता : कोविड-19 महामारी से बचाव के लिए किए गए लॉकडाउन के कारण कई मछुआरे अपनी नाव पर ही गुजर बसर करने को मजबूर हैं. ऐसे ही दक्षिण 24 परगना के झाड़खाली हारुडांगा नदी के तट पर रमेश चंद्र मंडल नाम के एक मछुआरे का जीवन बीत रहा है. वह मूल रूप से उत्तर-24 परगना के हाबरा के रहने वाले हैं. वह करीब 18-20 सालों से सुंदरवन से सटे जंगली जलीय क्षेत्रों में मछली केकड़ा आदि पकड़ कर जीवन यापन करते हैं.

अमावस्या और पूर्णिमा के समय झाड़खाली आए थे और अपने साथियों के साथ सुंदरवन नदी में मछली पकड़ने के लिए गए थे. 15 दिन पहले जब समुद्र से वापस किनारे पर लौटे तो लॉकडाउन हो गया था. इसलिए घर नहीं लौट सके. अब नदी किनारे नाव पर ही दिन गुजार रहे हैं. झाड़खाली से उनका घर करीब 100 किलोमीटर दूर है. यातायात के संसाधन नहीं होने की वजह से घर लौटना संभव नहीं. यहां तक कि कोरोना वायरस के डर की वजह से उनके साथी मछुआरों ने भी उन्हें अपने घर पर रहने की जगह नहीं दी.

कोई आसरा नहीं मिलने पर अपनी नाव पर ही दिन गुजारने लगे हैं. परिवार के लोग निश्चित तौर पर परेशान होंगे, लेकिन उनका कहना है कि जब तक हालात सामान्य नहीं होते तब तक उनका लौटना खतरे से खाली नहीं है.

मोबाइल फोन ही एक जरिया है, जिसके माध्यम से वह परिजनों से संपर्क में रहते हैं. भले ही रमेश को किसी के घर में रहने की अनुमति नहीं है लेकिन इलाके के लोग उन्हें खाना वगैरह पहुंचाते हैं. ग्राम पंचायत की ओर से चावल, दाल व आलू दिया जा रहा है.

स्थानीय झाड़खाली ग्राम पंचायत के सदस्य स्वपन बैरागी ने बताया कि कोरोना संक्रमण की संभावित आशंका की वजह से कोई किसी को घर में नहीं रख रहा, लेकिन चूंकी ये नाव पर रहते हैंइसलिए हम लोग अपना नागरिक कर्तव्य भी निभा रहे हैं. उन्हें किसी तरह की समस्या ना हो इस पर पूरी नजर रहती है.

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