नंदीग्राम से लौट कर मिथिलेश झा/अभिषेक मिश्रा: पश्चिम बंगाल चुनाव में जिस एक सीट की चर्चा सबसे ज्यादा हो रही है, उसका नाम है नंदीग्राम. इसे बंगाल का हॉट सीट कहा जा रहा है. यहां से टीएमसी सुप्रीमो और प्रदेश की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी चुनाव लड़ रही हैं. दूसरी तरफ, बीजेपी ने शुभेंदु अधिकारी को मैदान में उतारकर मुकाबले को कांटें का बना दिया है. कभी शुभेंदु अधिकारी ममता बनर्जी के सेनापति हुआ करते थे. आज वो ममता बनर्जी के खिलाफ चुनाव के मैदान में ताल ठोंक रहे हैं. दोनों कद्दावर नेताओं के अलावा भी नंदीग्राम कई कारणों से चर्चा में है. प्रभात खबर ने नंदीग्राम के गली-मुहल्लों से लेकर गांव तक की यात्रा की. इस यात्रा में चुनावी शोर-गुल से दूर नंदीग्राम का एक और चेहरा दिखा. हम आपको बता रहे हैं कि अगर नंदीग्राम की जुबान होती, तो वो क्या कहता?
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नमस्कार, मैं नंदीग्राम हूं. मैं बंगाल की सबसे हॉट सीट हूं. इसलिए नहीं कि यहां बहुत गर्मी है. सूरज की तपिश आती-जाती रहती है, लेकिन चुनाव की गर्मी पांच साल में एक बार आती है. और इस बार गर्मी कुछ ज्यादा ही है, क्योंकि राज्य की मुखिया और उनके सेनापति दोनों मेरे ही सीने पर आमने-सामने हैं.
इसलिए बंगाल चुनाव की सबसे हॉट सीट मैं ही हूं. कोलकाता से मेरी दूरी करीब 130 किलोमीटर है. आजकल गाड़ियों की भीड़ बढ़ गयी है. मुझ तक आने के लिए कुछ दिन पहले तक लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता था, क्योंकि मेरे शरीर में जहां-तहां गड्ढे ही गड्ढे थे. मुख्यमंत्री ने यहां से चुनाव लड़ना तय किया, तो मेरे चेहरे को जबर्दस्त तरीके से चमका दिया गया.
आज जब कोई राजधानी कोलकाता से मेरे पास आता है, तो सरपट गाड़ी दौड़ाते हुए पहुंच जाता है. बिना हिचकोले खाये. मीडिया के कैमरे, पत्रकारों के सवाल, चुनावी नारे, जीत-हार के दावे, लोकतंत्र के महापर्व में वोटर्स का उत्साह… आज मैं सब कुछ देख रहा हूं. सुन रहा हूं. मैं नंदीग्राम से ब्रांड नंदीग्राम बन चुका हूं.
मेरी मिट्टी में उपजने वाली फसलों ने खेत का साथ छोड़ दिया है. फसलों की जगह बांस-बल्लियां गाड़ दी गयी हैं. उन पर चुनावी बैनर टांग दिये गये हैं. टीएमसी, बीजेपी से लेकर लेफ्ट गठबंधन के बड़े नेताओं के कटआउट्स और नंदीग्राम बस स्टैंड से पहले बड़े से मैदान में हेलीपैड बन गया है. अचानक, हलचल काफी तेज हो गयी है. एक अप्रैल को दूसरे फेज में मेरे यहां चुनाव जो होना है.
पिछले कुछ सालों से मैंने बंगाल को सिर्फ फसल नहीं दिया. कई नेता भी दिये हैं. बंगाल में बदलाव की क्रांति का सूत्रधार मैं ही बना था. 14 मार्च 2007 का वो दिन मुझे आज भी याद है, जब किसानों ने अपनी जमीन बचाने के लिए शहादत दी थी. पुलिस की फायरिंग में 14 लोगों की मौत हो गयी थी. पिछले कुछ दिनों में मेरे साथ बहुत कुछ हुआ है. मैंने सब देखा है. सब सहा है. पर कुछ कह नहीं पाया.
एक खंभे पर आज पुलिस से लेकर आम जनता तक की नजर है. कहते हैं कि मेरे ऊपर गड़े इस खंभे की वजह से ही सूबे की मुखिया ममता बनर्जी को चोट लगी. ममता बनर्जी की जिंदगी में मैं ही सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट हूं. ममता बनर्जी बड़ी नेता तो पहले से थीं, लेकिन जब उन्होंने यहां किसानों के साथ एक बड़ा आंदोलन खड़ा किया, तो वह प्रदेश की मुखिया बनीं. देश की बड़ी नेता बन गयीं. आज एक बार फिर मैं जंग के मैदान में तब्दील हो गया हूं.
मेरी भी सुबह उसी तरह से होती है, जैसे देश की, बंगाल के किसी गांव या शहर की होती है. मेरे पास आने के बाद हवा में ताजगी मिलेगी. शहरों से दूर मेरे चौक-चौराहों पर चाय की चुस्कियों में चुनावी चर्चाएं खूब हो रही हैं. बाजारों में पान के पत्ते, मछलियों की बिक्री, भीड़-भाड़ के बीच चुनावी वायदों का शोर-गुल भी है.
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सभी पार्टियों ने मुझे बदलने के दावे किये. आज भी बड़े-बड़े दावे हो रहे हैं. मैं लोगों को धान देता हूं, पान देता हूं. खेसारी की साग हो या दाल, वो भी देता हूं. हल्दी नदी की धारा के दूसरे तट पर हल्दिया शहर बसा है. हल्दिया के लोग मेरी ही सब्जियां, चावल और मछली खाते हैं. विकास की बात करूं, तो वर्ष 2007 में विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) का विरोध करने वाले गांवों में अब पक्की सड़कें बन गयीं हैं. ई-रिक्शे और ऑटो से करीब-करीब सभी गांव जुड़े गये हैं.
सच कहता हूं, मुझमें बंगाल की वास्तविकता मिलेगी. लोकसंगीत और नृत्य मिलेगा. मेरे पास बड़ा अस्पताल है, तो बड़े-बड़े स्कूल भी हैं. मेरे लिए सबसे बड़े गर्व की बात यह है कि मैंने कभी हिंदू-मुस्लिम दंगा नहीं देखा. उम्मीद करता हूं कि इस बार का चुनाव शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हो जाये और मुझ पर हिंदू-मुस्लिम के बंटवारे का दाग न लगे. उम्मीद है कि चुनाव के बाद भी आप मुझे यादों में याद करते मिलेंगे.
Posted: Abhishek.