पश्चिम बंगाल का विधानसभा चुनाव इस बार बिल्कुल अलग है. एक ओर 10 साल सत्ता में रही तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो व सीएम ममता बनर्जी अपनी सत्ता बचाने में लगी हैं, वहीं एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में भारतीय जनता पार्टी ने भी बंगाल में काबिज होने के लिए पूरी ताकत लगा दी है. तृणमूल अपनी उपलब्धियों को लेकर तो भाजपा के दिग्गज नेता बंगाल में “सोनार बांग्ला” बनाये जाने के दावे के साथ चुनाव मैदान में हैं. इस बार के चुनाव में भाजपा को कितनी सीटें मिलेंगी, क्या बदलाव की लहर का भाजपा को बंगाल में कुछ लाभ होगा. यह जानने के लिए तारकेश्वर से भाजपा प्रत्याशी व राज्यसभा के पूर्व सांसद स्वपन दासगुप्ता से संवाददाता भारती जैनानी ने की विशेष बातचीत. पेश है बातचीत के कुछ अंश :
पिछले चार चरणों में हुए मतदान के बाद अब आपका अनुभव क्या कहता है?
चार चरणों में भाजपा को रेस्पांस बहुत अच्छा मिला है. जहां-जहां भी पार्टी की सांगठनिक शक्ति कम थी, वहां पर ज्यादा फोकस किया गया. दूसरे, यह भी अनुमान था कि नंदीग्राम से शायद शुभेंदु अधिकारी जीत जायें. दूसरे चरण के बाद यह चर्चा भी थी कि सीएम दूसरे विधानसभा क्षेत्र से भी लड़ सकती हैं, इससे तृणमूल कार्यकर्ता थोड़े मायूस हुए हैं. इसका असर तीसरे-चौथे चरण के मतदान में दिखा. चुनाव में भाजपा टीएमसी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. पिछले विधानसभा चुनावों में ऐसा नहीं था. अब पूरे एंटी तृणमूल वोट भाजपा को ही मिलेंगे. चार चरणों में भाजपा ही मेजॉरिटी की तरफ है.
आपकी राय में वे कौन से बड़े सामाजिक-राजनीतिक फैक्टर्स हैं, जो इस बार हो रहे विधानसभा चुनाव में बीजेपी को मजबूती दे रहे हैं?
हम यही मुद्दा जनता के सामने रख रहे हैं कि 44 साल तक वाम व तृणमूल के राज में यहां एक ही तरह की संकीर्ण राजनीति हुई है, जिसके कारण बंगाल अन्य राज्यों की तुलना में पीछे रह गया है. इसके पीछे कारण यही है कि यहां विकास की राजनीति बैकफुट पर चली गयी है. मोदीजी के शासनकाल में हम विकास और आम आदमी के मुद्दों को प्राथमिकता दे रहे हैं. हमारा संकल्प पत्र भी इसी पर फोकस्ड है. पार्टी का मानना है कि जब तक बंगाल में राजनीतिक हिंसा व संस्थानों में राजनीतिक हस्तक्षेप बंद नहीं होंगे, तब तक डेवलपमेंट का परिवेश नहीं बन सकता है. शिक्षा, विकास, रोजगार, काम-धंधे के अवसर बढ़ाने के लिए एनवायरमेंट तैयार करना ही भाजपा का लक्ष्य है. दूसरी पार्टी से आये लोगों को भी पार्टी के अनुशासन को मान कर चलना पड़ेगा.
चुनाव के लिए आप लोग काफी मशक्कत कर रहे हैं. एक पत्रकार की दृष्टि से इस पूरी चुनाव प्रक्रिया के अंतिम नतीजे के बारे में आपका आंकलन क्या है?
मेहनत तो करनी ही पड़ेगी, क्योंकि एक बड़ा संघर्ष है, हमारे सामने. ममता बनर्जी एक स्ट्रॉन्ग अपोनेंट हैं बंगाल में. यह तो हम मानते ही हैं कि वह एक मजबूत लीडर हैं. हम पूरी ताकत लगा कर लड़ रहे हैं. भाजपा वनमैन पार्टी नहीं है. पार्टी के सभी यूनिट इसमें मदद कर रहे हैं. हम ऑल इंडिया पार्टी हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में हम सभी बूथों पर एजेंट भी नहीं दे पाये थे, लेकिन अभी काफी मेहनत की है. जहां भी जा रहे हैं, युवाओं का बहुत समर्थन मिल रहा है. वे भाजपा में एक उम्मीद देख रहे हैं. चुनाव में हमारा टर्नआउट भी बहुत अहम है.
भाजपा ने आधा दर्जन सांसदों को भी चुनाव मैदान में उतार दिया है. यहां पहली बार ऐसा हो रहा है. आप इसे कैसे देख रहे हैं?
इस बार चुनाव में हमारी पूरी बटालियन क्रेक टीम को लेकर ज्यादा मेहनत की है. पार्टी ने पूरी स्ट्रेटजी के साथ बहुत पहले से ही बंगाल विधानसभा चुनाव की तैयारी कर ली थी. जहां क्रेक टीम थी, वहीं बेस्ट टीम को लगाया गया है. जिन सांसदों को बेस्ट समझा गया, मैदान में उतारा गया. सांसदों के अलावा ऐसे प्रत्याशी भी लिये गये हैं, जिनका कोई राजनीतिक बैकग्राउंड नहीं है. वे सामाजिक क्षेत्र से हैं, जैसे रासबिहारी से लेफ्टिनेंट जनरल सुब्रत साहा, कस्बा से कैंसर विशेषज्ञ डॉ इंद्रनील खान और डॉ अशोक लाहिड़ी जैसे अर्थशास्त्री व साइंटिस्ट गोवर्धन दास शामिल हैं. कुछ फिल्मी स्टार के साथ नये चेहरों को भी जोड़ा गया है.
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शीतलकूची में चार-पांच लोगों की जानें चली गयीं, उसका चुनाव परिणाम पर क्या प्रभाव हो सकता है?
दरअसल, केंद्रीय सुरक्षा बल वहां जमा 300-400 लोगों के दल को हटाने गये थे, क्योंकि वे लोगों को उत्तेजित कर रहे थे. सीआरपीएफ के जवान जब उनको रोकने के लिए गये तो लोगों ने उनको ही घेर लिया और उनके हथियार छीनने की कोशिश की. तब बचाव के लिए सुरक्षा बलों को गोली चलानी पड़ी. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने भाषण में एक विशेष वर्ग या अल्पसंख्यक के लोगों को उकसाने का काम कर रही हैं. शीतलकूची की घटना इसी का परिणाम है. इस घटना का कोई असर भाजपा पर तो नहीं पड़ेगा. सीएम अपनी 10 साल की उपलब्धियों को लेकर चुनाव नहीं लड़ रही हैं. वह केवल केंद्रीय सुरक्षा बलों को टारगेट कर रही हैं. अपनी सभाओं में कभी टूटा पैर लेकर, तो कभी गृह मंत्री व मोदी जी के भाषण को लेकर या गैर जरूरी मुद्दों को लेकर चुनाव प्रचार करती दिखती हैं.
भाजपा के जीतने की स्थिति में मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में कौन-सा फेस हो सकता है?
मुख्यमंत्री के दावेदार के बारे में अभी तय नहीं है. हम सभी भाजपा की जीत के लिए, मोदी जी के फेस से लड़ रहे हैं. केंद्र नेतृत्व, राज्य नेतृत्व या पीएम मोदी के दिशा-निर्देशों में एक प्रोसेस के जरिये ही वह चेहरा तय होगा. हमारी पहली प्राथमिकता है, 200 सीटें हासिल करना. हमको विश्वास है कि गृह मंत्री अमित शाह के इस टारगोट को पूरा कर लेंगे.
Posted By : Mithilesh Jha