कोलकाता: कलकत्ता हाइकोर्ट (Calcutta High Court) ने गुरुवार को राज्य सरकार को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) की समिति द्वारा प्रस्तुत अंतिम रिपोर्ट पर जवाब देने के लिए 26 जुलाई तक का समय दिया. मामले की अगली सुनवाई 28 जुलाई को सुबह 11 बजे होगी.
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल, जस्टिस आईपी मुखर्जी, जस्टिस हरीश टंडन, जस्टिस सौमेन सेन और जस्टिस सुब्रत तालुकदार की पांच सदस्यीय खंडपीठ ने गुरुवार को कहा कि राज्य सरकार को एनएचआरसी (National Human Rights Commission) रिपोर्ट के जवाब में अपना हलफनामा दाखिल करने का अंतिम अवसर’ दिया जा रहा है. अब और समय नहीं दिया जायेगा. साथ ही हाइकोर्ट ने रिपोर्ट में दुष्कर्म पीड़ितों का ब्योरे भी राज्य सरकार को देने से इन्कार कर दिया.
गुरुवार को सुनवाई के दौरान, राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने अदालत को अवगत कराया था कि एनएचआरसी रिपोर्ट (NHRC Report) के अनुलग्नक I, खंड 8 को राज्य सरकार को प्रस्तुत नहीं किया गया है. इस प्रकार उसने अनुलग्नक I के प्रकटीकरण की अनुमति देने के लिए न्यायालय की अनुमति मांगी, ताकि राज्य सरकार अपना जवाब दाखिल कर सके.
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इसके जवाब में एनएचआरसी की ओर से पेश हुए अधिवक्ता सुबीर सान्याल ने अदालत को सूचित किया कि संबंधित अनुलग्नक में दुष्कर्म पीड़ितों के नाम और बलात्कार के आरोपों से संबंधित एनएचआरसी द्वारा की गयी मौके की जांच का विवरण है. परिणामस्वरूप, दुष्कर्म पीड़ितों के हितों की रक्षा के लिए अनुलग्नक प्रस्तुत नहीं किया गया था.
हाइकोर्ट ने कहा
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पीड़िताओं का ब्योरा सार्वजनिक करने से उनकी सुरक्षा खतरे में पड़ जायेगी
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एनएचआरसी की रिपोर्ट पर 26 जुलाई तक राज्य सरकार हलफनामा दायर करे
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28 जुलाई को इस मामले में होगी अगली सुनवाई
अधिवक्ता सुबीर सान्याल ने आगे कहा कि हमें इस पर विचार करना होगा कि राज्य पुलिस के अधिकारी पीड़ितों को धमकी दे रहे हैं. यदि पीड़िताओं के ब्योरे सार्वजनिक किये जाते हैं, तो यह उनकी सुरक्षा को खतरे में डाल देगा.
एनएचआरसी के वकील की दलीलों पर बेंच ने कहा कि वह तब तक अनुलग्नक I के प्रकटीकरण की अनुमति नहीं देगी, जब तक कि बेंच द्वारा इसकी सामग्री के बारे में कोई निर्धारण नहीं किया जाता है.
सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने दलील दी कि स्वतंत्र जांच एजेंसी का गठन समय की मांग है. तदनुसार, उन्होंने टिप्पणी की कि आज जिस राज्य की निष्क्रियता ने पूरे मुकदमे को गति दी है, वह अब अपने स्तर पर जांच करना चाहता है. कई मामलों में राज्य की मिलीभगत रही है.
उन्होंने कोर्ट को बताया कि एनएचआरसी की रिपोर्ट के सारांश से स्पष्ट रूप से संकेत मिलता है कि पीड़ितों को धमकाने में राज्य के पुलिस अधिकारियों की मिलीभगत रही है. नतीजतन, पुलिस पर बलात्कार पीड़ितों की पहचान पर भरोसा नहीं किया जा सकता है. इस पर सहमति जाहिर करते हुए बेंच ने कहा कि आज राज्य एक ऐसी भूमिका की मांग कर रहा है, जो उससे संबंधित नहीं है. कार्यवाही प्रतिकूल हो गयी है, क्योंकि राज्य ठीक से जांच करने में विफल रहा है.
इसके अलावा, एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुई अधिवक्ता प्रियंका टिबरेवाल ने भी अदालत से आरोपों की जांच के लिए एक स्वतंत्र एसआईटी (विशेष जांच दल) गठित करने का आग्रह किया. उन्होंने आगे टिप्पणी की कि राज्य सरकार मूकदर्शक बनी हुई है और पिछले सप्ताह भी राजनीतिक दुश्मनी के कारण लोगों को फंदे से लटका कर मार डाला गया.
वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) की रिपोर्ट पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित है और रिपोर्ट में विभिन्न विसंगतियां हैं, जिसके परिणामस्वरूप इसे उचित विश्वसनीयता नहीं दी जा सकती है.
Posted By: Mithilesh Jha