अमरशक्ति, कोलकाता : पिछले कुछ वर्षों में पश्चिम बंगाल मानव तस्करी के एक प्रमुख केंद्र के रूप में उभरा है. मामले चाहे महिलाओं की तस्करी के हों या बच्चों की, प्रदेश चर्चा में रहा है. पश्चिम बंगाल इन दोनों ही मामलों में लगातार तीन वर्षों से पूरे देश में दूसरे स्थान पर बना हुआ है. मानव तस्करी में लिप्त अपराधियों की वजह से मासूम अपने बचपन खो रहे हैं. उनकी जान दांव पर लग रही है. पश्चिम बंगाल में बाल तस्करी के बढ़ते मामलों को देख कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां किस प्रकार से मानव तस्करों के गिरोह सक्रिय हैं. जानकारों का कहना है कि पश्चिम बंगाल मानव तस्करी के अंतरराष्ट्रीय रूट पर स्थित है. यहां कई घरेलू व अंतरराष्ट्रीय गिरोह इस धंधे में सक्रिय हैं. साथ ही पड़ोसी देशों की लंबी सीमा का होना भी इसकी एक प्रमुख वजह है.
नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) में बच्चों के लापता होने के दर्ज हुए आंकड़ाें को देखें, तो ये बहुत ही भयावह दृश्य पेश करते हैं. 2016 में बंगाल से 8335 बच्चे लापता बताये गये. 2017 में गायब हुए बच्चों की संख्या 8178 हो गयी. 2018 में भी 8205 बच्चे गायब हो गये. बच्चों के लापता होने के सबसे अधिक मामले बारासात, कोलकाता व बैरकपुर पुलिस कमिश्नरेट एरिया में दर्ज हुए. बारासात और बैरकपुर के लिए राहत की बात यह रही कि यहां 2017 की तुलना में 2018 में लापता होनेवाले बच्चों की तादाद थोड़ी कम रही. पर, दूसरी तरफ कोलकाता में ऐसे अभागे बच्चों की संख्या बढ़ गयी.
बच्चों की सुरक्षा और इनके विकास के लिए काम करनेवाले संगठनों कहना है कि लापता होने वाले बच्चों का पता लगाने के लिए ठोस रणीनीति जरूरी है. इन संगठनों ने इसके लिए सरकार से एक अंतर-मंत्रालयी टीम गठित करने की मांग की है. उत्तर 24 परगना जिले की एक स्वयंसेवी संस्था के संयोजक राजीव मित्रा के अनुसार, अपनी वित्तीय स्थिति की वजह से गरीब लोग बच्चों को लावारिस छोड़ दे रहे हैं. हो सकता है इसके एवजह में उनको पैसे भी मिलते हों. उन्हें आशंका है कि लॉकडाउन से अनलॉक की तरफ बढ़ने के साथ ही कुछ दिनों में बाल-विवाह, बाल तस्करी और बंधुआ मजदूरों के तौर पर बच्चों के इस्तेमाल के मामले तेजी से बढ़ सकते हैं.
केंद्रीय गृह मंत्रालय के निर्देश के बाद पश्चिम बंगाल बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डब्ल्यूबीसीपीसीआर) ने बाल तस्करी रोकने के लिए टास्क फोर्स का गठन किया है. इसमें पुलिस, सीमा सुरक्षा बल, रेलवे और गैर सरकारी संगठनों को भी जगह दी गयी है. इस टास्क फोर्स का मकसद मानव तस्करी के मामलों में जमीनी स्तर तक पहुंचना है.
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संयुक्त राष्ट्र मादक पदार्थ एवं अपराध कार्यालय द्वारा मानव तस्करी पर जारी एक वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार, मानव तस्करी (79%) का सबसे आम रूप यौन शोषण है. और मुख्य रूप से यौन शोषण की शिकार महिलाएं और लड़कियां ही होती हैं. मानव तस्करी का दूसरा सबसे आम रूप है बाल श्रम (18%). एक अन्य जानकारी के अनुसार, दक्षिण एशिया में 85% मानव तस्करी बाल श्रम के लिए की जाती है और इस लिहाज से भारत में सर्वाधिक प्रभावित राज्य हैं- पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, बिहार व असम.
राज्य आंकड़ा
मध्य प्रदेश 10038
पश्चिम बंगाल 8205
बिहार 6950
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वर्ष संख्या
2016 8335
2017 8178
2018 8205
बच्चों की तस्करी के मामले में बंगाल पिछले तीन सालों से लगातार देश में दूसरे स्थान पर बना हुआ है
गरीबी और अशिक्षा, बंधुआ मजदूरी, देह व्यापार,क्षेत्रीय लैंगिक असंतुलन
वर्ष 2017 में कोलकाता से सटे बारासात पुलिस जिले से 1006, कोलकाता से 857 व बैरकपुर कमिश्नरेट एरिया से 668 बच्चे लापता हुए थे. वर्ष 2018 में कोलकाता से 989, बारासात पुलिस जिला से 724 व बैरकपुर से 610 बच्चों के गायब होने की रिपोर्ट लिखायी गयी है. गैर-सरकारी संगठनों की शिकायत है कि ग्रामीण इलाकों में मानव तस्करों के चंगुल में फंसनेवाले बच्चों के बारे में ढेर सारी सूचनाएं पुलिस तक पहुंचती ही नहीं. इनका मानना है कि गायब हो जानेवाले बच्चों की जो संख्या रिकॉर्ड की जाती है, उससे काफी अधिक बच्चे, दरअसल, लापता हुए रहते हैं.