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कहीं फिर शीत युद्ध की ओर तो नहीं बढ़ रहा है अमेरिका व रुस ?

अमेरिका रुस संबंध शुरुआत से ही मधुर नहीं रहें हैं. यूक्रेन मामले और कल ही हुए मलेशियाई विमान हादसे के बाद दोनों देशों के बीच फिर से आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरु हो गया है. एक ओर जहां यूक्रेन में रुस की सीमा के पास ही मलेशियाई विमान के मार गिराये जाने पर रुसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर […]

अमेरिका रुस संबंध शुरुआत से ही मधुर नहीं रहें हैं. यूक्रेन मामले और कल ही हुए मलेशियाई विमान हादसे के बाद दोनों देशों के बीच फिर से आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरु हो गया है. एक ओर जहां यूक्रेन में रुस की सीमा के पास ही मलेशियाई विमान के मार गिराये जाने पर रुसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन सफाई दे रहें हैं वहीं अमेरिका सहित विश्व के अन्य देश उनकी सफाई पर सहमत नहीं होते दिख रहें हैं. गौरतलब है कि अमेरिका व रुस एक दूसरे के भूराजनीतिक दुश्मन माने जाते हैं. ऐसे में हाल ही में हुई कुछ वैश्विक घटनाओं ने दोनों के संबंधों में और कडवाहट पैदा कर दी है. उधर सोवियत रुस के विघटन के बाद से रुस की स्थिति थोडी नरम पड़ी थी पर पुनः रुस की होती मजबूत अर्थव्यवस्था से उसने फिर से अमेरिका को आंख दिखाना शुरु कर दिया है. हाल की जिन घटनाओं को लेकर अमेरिका रुस के संबंधों में और कड़वाहट आयी है और उसको लेकर क्या संभावनाएं व्यक्त की जा रही है, कहीं द्वितीय विश्व युद्ध के तुरंत बाद दोनों देशों के बीच शुरु हुए शीत युद्ध की पुनरावृति तो नहीं होगी, इन सब विषयों पर प्रकाश डालते हुए इस पर एक संक्षिप्त नजर-

1. यूक्रेन में रुस का सैन्य हस्तक्षेप

रुस का यूक्रेन में सैन्य हस्तक्षेप किया जाना हाल में उनके संबंधों में कड़वाहट का एक बड़ा कारण है. अमेरिका ने यूक्रेन में रुस के सैनिक हस्तक्षेप के चलते अपने देश के सभी सैनिक संबंध तोड़ लिए. इसमें दोनों देशों के बीच संयुक्त सैनिक अभ्यास और एक दूसरे के बंदरगाहों पर आवाजाही का कार्यक्रम भी शामिल है. अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने रूस को कड़ी चेतावनी दी थी कि अगर उसने यूक्रेन पर सैन्य कार्रवाई की तो उसके खिलाफ कड़े कदम उठाए जाएंगे. ओबामा ने यह भी चेतावनी दी थी कि अगर रूस पीछे नहीं हटा तो उसे दुष्परिणाम झेलने होंगे.

2. एडवर्ड स्नोडेन का मामला

अमेरिका द्वारा भगोड़ा घोषित और अमेरिका के एक खुफिया निगरानी कार्यक्रम प्रिज्म का खुलासा करने वाले पूर्व सीआईए एजेट एडवर्ड स्नोडेन को रूस मे शरण मिलने के बाद रूस और अमेरिका के संबंधो मे दरार पड़ गया. यहां तक कि स्नोडेन को शरण देने की रूस की घोषणा के बाद दोनों देशों के बीच होने वाली कई बैठकों को टाल दिया गया.

एक अमेरिकी सिनेटर चार्ल्स स्कूमर ने राष्ट्रपति बराक ओबामा से आग्रह किया है कि वह जी-20 देशो की सितंबर मे होने वाली आर्थिक शिखर वार्ता रूस मे न करवाने का प्रस्ताव करे.

हालांकि इस मामले के बाद राष्ट्रपति पुतिन ने यह कहा था कि हम स्नोडेन को लेकर अमेरिका से अपने संबंधों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते. स्नोडेन को लेकर हम अमेरिका के साथ अपने संबंधों को कमजोर नहीं कर सकते. उन्होंने कहा था कि अमेरिका के साथ हमारे जो संबंध हैं, वे स्नोडेन की तुलना में ज्यादा महत्वपूर्ण हैं.

3. रुस का जी-8 से निष्कासन

आर्थिक शक्तियों के समूह जी-7 ने रूस को क्रीमिया पर कब्जे के मद्देनजर रूस को इसी वर्ष शक्तिशाली समूह जी-8 से बाहर निकाल दिया और धमकी दी कि यदि मास्को यूक्रेन में घुसपैठ जारी रखता है तो दूरगामी प्रभाव वाले प्रतिबंध लगाए जाएंगे. अमेरिका और छह अन्य आर्थिक शक्तियों ने जून में रूस की अध्यक्षता में सोची में होने वाली जी-8 की बैठक रद्द कर दी ताकि रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन पर यूक्रेन में उनकी सैन्य कार्रवाई के संबंध में दबाव बनाया जा सके. रूस को 16 साल पहले इस विशिष्ट जमात में शामिल किया गया था. इस फैसले से रुस कहीं न कहीं अपने आप को अपमानित महसूस किया होगा और दोनों के संबंधों में एक बार फिर कड़वाहट पैदा हो गयी.

4.रुस के प्रति अमेरिका नीतियां

हालांकि प्रारंभ से ही अमेरिका की नीतियां रुस के प्रति नकारात्मक ही रही है किन्तु विशेषकर यूक्रेन मामले व स्नोडेन मामले को लेकर दोनों के संबंध में और भी खटास पड़ गयी है. अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के समय राष्ट्रपति के एक और प्रत्याशी मिट रुमानी ने रुस को अमेरिका का भूराजनीतिक दुश्मन बताया था.

अमेरिका ने रुस पर कार्यवाही करते हुए रूस के कुछ बैंकों, सैन्य और ऊर्जा कंपनियों पर प्रतिबंध लगा दिया. हथियारों का निर्माण करने वाली रूसी कंपनी क्लाशिंकोफ भी उन कंपनियों में शामिल है जिन पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगाया है. इसको लेकर भी रुस का अमेरिका के प्रति सोंच बदला रहा होगा. यहां तक कि रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने चेतावनी दी कि इन प्रतिबंधों का समुचित जवाब दिया जायेगा और एसी नीति अपनाई जायेगी जिससे इन प्रतिबंधों के पीछे जिनका हाथ है उनके लिए वह नीति बहुत दर्दनाक सिद्ध होगी.

5.रुस की मजबूत होती अर्थव्यव्स्था

सोवियत रुस के विघटन के बाद से अब फिर से रुस की अर्थव्यवस्था सुदृढ हो रही है. एक आंकडे के अनुसार केवल अमेरिका के साथ ही उसका निर्यात में एक अरब 250 मिलियन डालर से अधिक की वृद्धि हुई है. यूरोपीय संघ के साथ भी रुस का व्यापार बेहतर स्थिति में है. इससे अब रुस की अर्थव्यवस्था सुधरी है. और कहीं न कहीं रुस फिर अपने आप को मजबूत स्थिति में देख रहा है और अमेरिका की चुनौती स्वीकार करने के लिए तैयार है.

6. कहीं दो धुरी में तो नहीं बंट रहा है विश्व

अमेरिका रुस के साथ संबंधों को खत्म करने व अन्य प्रतिबंध लगाने के लिए यूरोपीय संघ के देशों को भी आगे आने को कह रहा है. अमेरिकी सरकार ने यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के राजदूतों को वाइट हाउस आमंत्रित किया था और उनसे मांग की थी कि वे रूस के विरुद्ध वाशिंग्टन की नीतियों में अमेरिका का साथ दें. वाशिंग्टन ने प्रयास किया कि मास्को विरोधी अपनी नीति में यूरोपीय संघ के दूसरे सदस्य देशों को अपनी नीति में हां में हां मिलाने पर बाध्य कर सके.

वहीं दूसरी ओर संघ के नौ सदस्य देशों ने अमेरिकी नीति का विरोध किया है. इटली, फ्रांस, जर्मनी, लग्जमबर्ग, आस्ट्रिया, बुल्गारिया, यूनान, साइप्रेस और स्लोवेनिया ने अपने आर्थिक कारणों से रूस के विरुद्ध आर्थिक प्रतिबंधों के कड़ा करने का विरोध किया. साथ ही ब्रिटेन और पोलैंड रूसी सरकार के विरुद्ध प्रतिबंधों के मूल समर्थक हैं और उन्होंने इसमें उन्होंने सदैव वृद्धि किये जाने की मांग की है. इसको देखकर लगता है कि कहीं विश्व फिर दो धुरी में न बंट जाए और विश्व समुदाय को कही तीसरे विश्वयुद्ध का सामना ना करना पडे.

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