-मुकुंद हरि-
(वरिष्ठ पत्रकार)
यूक्रेन और रूस की सीमा पर मलेशियाई विमान एमएच-17 को मार गिराये जाने के दुर्भाग्यपूर्ण हादसे ने अब वैश्विक परिदृश्य में बड़ा रूप ले लिया है. रूस और यूक्रेन के झमेलों की वजह से पहले ही अमेरिका रूस के विरोध में था.
अब अमेरिकी राष्ट्रपति के हवाले से न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी खबरों के मुताबिक, बराक ओबामा का मानना है कि एमएच-17 विमान हादसे के लिए रूस जिम्मेदार है. अमेरिका का कहना है कि सतह से हवा में मार करने की क्षमता वाली जिस मिसाइल का उपयोग दस हज़ार मीटर की ऊंचाई पर उड़ रहे एमएच-17 यात्री-जहाज को मार गिराने के लिए किया गया है, वो रूस की थीं और अमेरिका को लगता है कि उन्हें रूस ने ही यूक्रे न के अलगाववादियों को मुहैया कराया था.
जाहिर है अमेरिका की तरफ से रूस पर लगाये गए ये आरोप आग में घी का काम कर सकते हैं. दूसरी तरफ रूस, यूक्रेन को इस घटना का दोषी मान रहा है. रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने कहा है कि चूंकि, यूक्रेन की सीमा रेखा में यह त्रासदी हुई है तो इसकी जिम्मेदारी भी यूक्रेन को ही लेनी चाहिए.
पुतिन के मुताबिक यूक्रेन के दक्षिण-पूर्व में सैन्य अभियानों को शुरू नहीं किया गया होता तो यह त्रासदी नहीं होती.इसके साथ ही रूस ने यह भी कहा है कि रूस इस हादसे की जांच में हर संभव सहयोग करने को तैयार है. रूस ने यूक्रेन से ये सवाल भी पूछा है कि यूक्रेन ने अब तक इस हादसे की जांच के लिए किसी अंतर्राष्ट्रीय कमीशन का गठन क्यों नहीं किया ?
एमएच-17 विमान को मार गिराए जाने की घटना को यूक्रेन ने आतंकवादी घटना करार दिया है. ऐसा माना जा रहा है कि इस विमान को गिराए जाने में बक मिसाइल का उपयोग किया गया है जो आसमान में काफी ऊंचाई तक के लक्ष्य को मार गिराने में सक्षम है. विद्रोहियों के पास ऐसी मिसाइलें होने का अनुमान अभी तक किसी को नहीं था क्योंकि ये रूसी मिसाइलें हैं. अब ऐसे में अगर अमेरिका का आरोप सही साबित होता है तो अंतरराष्ट्रीय पटल पर रूस को भारी बेइज्जती का सामना करना पड़ सकता है.
गहराई से सोचा जाये तो एमएच-17 जैसे बड़े यात्री जहाज को मार गिराया जाना कोई छोटी-मोटी घटना नहीं है. निश्चित रूप से ये या तो किसी बड़ी अंतरराष्ट्रीय साजिश का हिस्सा हो सकती है या फिर यह तभी हो सकता है जब ऐसी कोई मिसाइल विद्रोहियों के हाथ लगी हो.दरअसल, यूक्रेन -रूस विवाद सिर्फ इन दोनों देशों के बीच का विवाद नहीं है बल्कि इससे भी बढ़कर ये दो महा-शक्तियों के आपसी अहम का मुद्दा बन चुका है.
पूर्व सोवियत संघ के विघटन के बाद यूक्रेन रूस से अलग देश बना. अलगाव के बाद रूस के कई महत्वपूर्ण आणविक और सैन्य-क्षेत्र यूक्रेन के हिस्से में चले गए. रूस की आर्थिक-स्थिति खस्ता हाल हो चुकी थी.फिर आया पुतिन का दौर और नयी सोच के साथ काम करते हुए पुतिन ने रूस की आर्थिक स्थिति में सुधार करने का काम शुरू किया. रूस में पेट्रोलियम और गैस के जो भंडार थे वो रूस के लिए आर्थिक रूप से बहुत फायदे के साबित हुए और इसका फायदा पुतिन के दौर में हुआ.
रूस ने इस सम्पदा के बल पर अपनी हालत बेहतर की. अर्थव्यवस्था के लिहाज से ये सारे बदलाव पिछले सात-आठ सालों में तब हुए जब पुतिन सत्ता में थे. नतीजा ये हुआ कि रूस में पुतिन को अपार जन-समर्थन मिला. वर्तमान हालत में रूस अपने तेल और गैस भंडार का सत्तर फीसदी हिस्सा निर्यात करता है और ये उसकी कमाई का सबसे बड़ा जरिया बन चुका है. फिलहाल भारत समेत कई देश रूस में विभिन्न नए गैस और आयल फील्ड्स के क्षेत्रों की खोज में लगे हुए हैं.
रूस का यूक्रेन पर आक्रामक रुख भी इसी कड़ी में आता है. रूस यूक्रेन में अपना दखल चाहता है ताकि वो यूक्रेन के उन हिस्सों पर अपना अधिकार कर सके जहां से उसे प्राकृतिक और सामरिक हितों में लाभ मिल सके. सनद रहे कि यूक्रेन भी तेल और गैस के प्राकृतिक भंडार से परिपूर्ण है और पूर्व सोवियत संघ के ज़माने के कई महत्वपूर्ण सामरिक ठिकाने भी उसके पास हैं. यही वो प्रमुख वजह है कि उसे रूस की दखलंदाजी का करना पड़ रहा है.
हालांकि, सोवियत-संघ से अलग होने के बाद यूक्रेन एक अलग संप्रभु देश बन चुका है और उसकी स्वतंत्रता और संप्रभुता की रक्षा होनी ही चाहिए मगर पिछले कुछ वर्षों से ये क्षेत्र विवादित बन चुका है.इसी कड़ी में अमेरिका ने रूस पर कठोर आर्थिक-प्रतिबंध लगाए हैं. वैश्विक तौर पर इससे प्रभावित होकर यूरोपियन-संघ ने भी अपनी तरफ से रूस पर ऐसे ही आर्थिक-प्रतिबंधों की घोषणा की है.
अगली कड़ी में यूक्रेन ने भी ये कह दिया है कि वो अब रूस को अपने यहां बने सामानों को निर्यात नहीं करेगा. फिलहाल यूक्रेन अपने कुल निर्यात का तकरीबन 24 प्रतिशत हिस्सा रूस को निर्यात करता है. जाहिर है, ये कदम यूक्रेन के लिए आर्थिक तौर पर मुश्किलें खड़ी कर सकता है और इस कमी को पूरा करने के लिए उसे नया बाजार तलाशना होगा क्योंकि यूक्रेन में मुद्रा-स्फीति वैसे ही बहुत ज्यादा है और अब अगर उसके निर्यात का इतना बड़ा हिस्सा कट जायेगा तो पूरी अर्थ-व्यवस्था चरमरा जायेगी.
दूसरी तरफ, रूस ने भी अपनी मंशा जाहिर कर दी है. रूस अपने बजट में रक्षा-क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि करने की सोच चुका है. फिलहाल उसका रक्षा बजट उसके सकल घरेलू उत्पाद का 17.5 प्रतिशत है जिसे वो साल 2017 तक 21 फीसदी करने जा रहा है. हालांकि, रूस का कहना है कि रक्षा-बजट बढ़ाने के पीछे यूक्रेन विवाद कारण नहीं है मगर अंतर्राष्ट्रीय-जगत में इसे रूस की ज्यादा प्रबल सामरिक तैयारी के तौर पर देखा जायेगा. रूस पहले ही आर्थिक-प्रतिबंध झेल रहा है जिसमें सामरिक क्षेत्र से जुड़े मुद्दे भी शामिल हैं. ऐसे में रूस का ये कहना कि रक्षा-बजट में उपरोक्त वृद्धि देश में सामरिक महत्व के उत्पादन के क्षेत्र में स्वावलंबन से जुड़ी है, ये साफ करता है कि रूस इन प्रतिबंधों का सामना करने की तैयारी में जुट चुका है.
बहरहाल, अब तक के परिदृश्य जो दिखा रहे हैं, उनमें साफ दिखाई देता है कि अमेरिका और यूरोप एक होकर रूस के विरोध में खड़े हैं और फिलवक्त पुतिन की अगुआई में रूस अलग-थलग दिखाई दे रहा है. ऊपर से एमएच-17 जहाज और उसमें सवार कई देशों के नागरिकों की क्रूर हत्या के प्रश्नों ने मामला और जटिल कर दिया है. जब तक एमएच-17 के हमलावरों का खुलासा नहीं हो जाता तब तक रूस के लिए मुश्किलें बरकरार ही रहेंगी. सबसे बड़ा डर ये है कि रूस और अमेरिका के नाम पर पुतिन और ओबामा का ये तनाव कहीं पूरी दुनिया के लिए परेशानी का सबब न बन जाए. ऐसे में, अगले कुछ हफ्ते अंतरराष्ट्रीय जगत के लिए बहुत महत्वपूर्ण होंगे और पूरी दुनिया की निगाहें इस पर रहेंगी.