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हांगकांग में जारी है विरोध, प्रदर्शनकारियों के खिलाफ बढ़ी चीन की बौखलाहट
स्वायत्तता के उल्लंघन और प्रत्यर्पण विधेयक के विरोध में हांगकांग में बीते कई महीनों से अशांति का दौर जारी है. लगातार चीन के बढ़ते हस्तक्षेप के खिलाफ हांगकांग में लोकतंत्र समर्थकों से लेकर आम जनमानस तक आक्रोश व्याप्त है और लाखों की तादाद में लोग सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं. चीनी अर्थव्यवस्था की रीढ़ […]
स्वायत्तता के उल्लंघन और प्रत्यर्पण विधेयक के विरोध में हांगकांग में बीते कई महीनों से अशांति का दौर जारी है. लगातार चीन के बढ़ते हस्तक्षेप के खिलाफ हांगकांग में लोकतंत्र समर्थकों से लेकर आम जनमानस तक आक्रोश व्याप्त है और लाखों की तादाद में लोग सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं. चीनी अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहे जानेवाले इस शहर में चीनी कार्रवाई को लेकर दुनिया की आशंकाएं बढ़ रही हैं. हांगकांग के मौजूदा हालात, विरोध-प्रदर्शन के मुख्य कारण और चीन की भूमिका की पड़ताल पर आधारित है आज का इनडेप्थ पेज
लाखों लोग उतरे सड़कों पर
बीते तीन अप्रैल को हांगकांग सरकार ने एक विधेयक पेश किया था. इसके अनुसार आरोपियों को चीन में प्रत्यारोपित किया जा सकेगा.
विधेयक के खिलाफ पहला प्रदर्शन 9 जून को हुआ. लगभग 10 लाख लोग सरकारी मुख्यालय पर प्रदर्शन के लिए एकत्रित हुए. इस शांतिपूर्ण प्रदर्शन के बाद 12 जून को एक बार फिर लोगों ने प्रदर्शन किया. पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर आंसू गैस और रबर के बुलेट दागे. प्रदर्शन के तीन दिन बाद हांगकांग की मुख्य कार्यकारी कैरी लाम ने प्रत्यर्पण विधेयक को अनिश्चित काल के लिए स्थगित करने की घोषणा कर दी. बिल को पूरी तरह से वापस लेने और लाम के इस्तीफे की मांग को लेकर बीस लाख लोग सड़कों पर उतर आये.
प्रदर्शनकारियों ने 21 जून को 15 घंटे के लिए पुलिस मुख्यालय को अवरुद्ध कर दिया और गिरफ्तार लोगों को छोड़ने की मांग की. एक जुलाई को हांगकांग को ब्रिटेन द्वारा चीन को सौंपे जाने की वर्षगांठ पर प्रदर्शनकारियों ने लेजिस्लेटिव बिल्डिंग पर भित्ति चित्र बनाये, औपनिवेशिक काल के झंडे प्रदर्शित किये. लोगों का विरोध-प्रदर्शन जारी रहा. दो अगस्त को हजारों की संख्या में लोक सेवक भी इस प्रदर्शन में शामिल हो गये.
प्रदर्शनकारियों की नयी मांगें
प्रत्यर्पण कानून के खिलाफ प्रदर्शनकारियों का कहना है कि इससे हांगकांग की स्वायत्तता का उल्लंघन होगा. इससे चीनी सरकार विरोधियों को निशाना बना सकती है. उग्र होते प्रदर्शन के मद्देनजर सरकार ने बीते जून माह में प्रस्तावित विधेयक को वापस ले लिया था. लेकिन, अब प्रदर्शनकारी इसे पूर्ण रूप से खारिज करने की मांग कर रहे हैं.
क्या हैं मांगें
प्रत्यर्पण विधेयक को पूर्ण रूप से खारिज करने का मांग
‘दंगे’ के तौर पर दर्ज किये गये 12 जून के विरोध-प्रदर्शन को निरस्त करने की मांग
गिरफ्तार किये गये सभी प्रदर्शनकारियों की रिहाई की मांग
पुलिस बर्बरता की स्वतंत्र जांच की मांग
हांगकांग के मुख्य कार्यकारी (शहर के नेता) और विधान परिषद के चुनावों में सार्वभौमिक मताधिकार की मांग
कुछ लोग मौजूदा मुख्य कार्यकारी कैरी लाम की इस्तीफे की मांग कर रहे हैं. लाम को बीजिंग का समर्थन हासिल है.
धैर्य खो रहा है बीजिंग
एयरपोर्ट पर उग्र प्रदर्शन के बाद बीजिंग ने विरोधियों के खिलाफ कड़ा रुख अख्तियार कर लिया है. चीन इस बर्ताव को आतंकी घटना के रूप में बता रहा है.
बीते हफ्ते एक बार फिर से चीनी अधिकारियों ने प्रदर्शनकारियों की तुलना आतंकियों से की. चीन की प्रदर्शनकारियों के खिलाफ बौखलाहट बढ़ रही है. प्रेक्षकों का मानना है कि चीन द्वारा कुछ कड़े कदम उठाये जाने के संकेत मिल रहे हैं. शेन्जेन सीमा पर हजारों की संख्या में हथियारबंद जवानों की तैनाती कर दी गयी है.
चीनी अधिकारियों का कहना है कि अगर प्रदर्शन को नियंत्रित करने में हांगकांग सरकार असफल होती है, तो चीनी सरकार किसी हद तक जाकर प्रदर्शन पर काबू पा सकती है.
क्या था प्रस्तावित प्रत्यर्पण कानून
कानून में हांगकांग से चीन प्रत्यर्पण करने की प्रक्रिया को आसान बनाने का प्रावधान किया गया था. कानून समर्थकों का तर्क है कि इससे हांगकांग अपराधियों की शरणस्थली नहीं बनेगा, जबकि विरोधियों का तर्क है कि बीजिंग राजनीतिक विपक्षियों प्रत्यर्पण के लिए इस कानून का दुरुपयोग कर सकता है. विधेयक में सात साल या अधिक जेल की सजा वाले दोषियों को प्रत्यर्पित किये जाने का प्रावधान किया गया था.
हांगकांग वासियों को स्वायत्तता खोने का डर
हांगकांग के ज्यादातर लोगों का मानना है कि प्रस्तावित कानून ‘एक देश, दो तंत्र’ की नीति का अंत कर देगा. इससे हांगकांग के निवासियों को मिलनेवाले सिविल अधिकार खत्म हो जायेंगे, जो ब्रिटेन द्वारा चीन को 1997 में संप्रभुता के हस्तांतरण के समय से मिले हुए हैं.
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि वे चीन पर विश्वास नहीं कर सकते, क्योंकि वह आलोचकों के साथ गैर-राजनीतिक अपराध करता है. उनका मानना है कि हांगकांग के अधिकारी बीजिंग की मांग को खारिज नहीं कर सकते. कानूनी पेशेवरों का मानना है कि इससे प्रत्यर्पित किये हुए लोगों के अधिकार खतरे में पड़ जायेंगे.
चीनी अदालतों द्वारा सजा देने की दर 99 प्रतिशत है. वहां ऐच्छिक गिरफ्तारी, यातना और आरोपी को कानूनी अधिकारों से वंचित करना आम बात है.
क्यों हिचक रहा है चीन
हांगकांग में हो रहे विरोध प्रदर्शन को अगर चीन जबरन रोकने की कोशिश करता है, तो उसे इसकी बड़ी कीमत चुकानी होगी. हांगकांग एशिया के महत्वपूर्ण वित्तीय केंद्रों में से एक है. विशेष प्रशासनिक क्षेत्र के रूप में चीनी अर्थव्यवस्था को इससे बहुत फायदा मिला है. वाणिज्यिक और वित्तीय, दोनों ही तरह से हांगकांग चीनी अर्थव्यवस्था की रीढ़ रहा है. यही वजह है कि हांगकांग में पिछले 11 सप्ताह से जारी विरोध-प्रदर्शन का असर उसकी अर्थव्यवस्था पर महसूस किया जा रहा है.
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2017-18 में चीन में तकरीबन 1.25 खरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश किया गया था, जिसमें 99 अरब डॉलर का निवेश हांगकांग की ओर से किया गया था. जो कुल विदेशी निवेश का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा था. ऐसा इसलिए है, क्योंकि हांगकांग उन कंपनियों के लिए सुरक्षितजगह है, जो सीधे तौर पर चीन में निवेश करने से बचना चाहते हैं.चीन के विदेशी मुद्रा भंडार में हांगकांग का महत्वपूर्ण योगदान है.
वर्तमान में चीन के पास दुनिया का सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार (3.1 बिलियन अमरीकी डॉलर) है.
चीन के सरकारी बैंकों के लिए हांगकांग सबसे बड़ा अपतटीय बाजार (ऑफशोर मार्केट) है, जिसकी कुल संपत्ति का लगभग सात प्रतिशत हिस्सा इसी शहर में है.
चीन की सैकड़ों कंपनियां हांगकांग में सूचीबद्ध हैं. वर्ष 2015 से चीनी कंपनियाें ने इस शहर से इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग के माध्यम से 100 बिलियन डाॅलर से अधिक की राशि जुटायी है.
हांगकांग में 15 हजार से ज्यादा बहुराष्ट्रीय कंपनियों के क्षेत्रीय मुख्यालय हैं.हांगकांग उत्तर को छोड़कर तीन तरफ से दक्षिण चीन सागर से घिरा हुआ है. उत्तर की तरफ से वह चीन से जुड़ता है. समुद्र के इन्हीं मार्गों द्वारा चीन विश्व के साथ व्यापार करता है.
क्या चीनी सेना हस्तक्षेप कर सकती है?
हांगकांग के वित्तीय और सामरिक महत्व को देखते हुए चीन के लिए सैन्य हस्तक्षेप आसान नहीं होगा. लेकिन सुरक्षा बलों की तैनाती की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. हांगकांग प्रशासन की ओर से विरोधाभासी बयान दिये जा रहे हैं. मुख्य प्रशासक कैरी लाम ने संवाद के माध्यम से आगे की राह निकालने के लिए एक मंच बनाने का वादा किया है, पर प्रदर्शनकारियों की मांग पर कोई छूट देने से इनकार भी किया है.
उन्होंने कहा है कि प्रदर्शनों के बारे में पुलिस शिकायत आयोग नामक स्वतंत्र संस्था के अध्ययन का दायरा बढ़ाया जायेगा. इस आयोग के प्रमुख एंथोनी न्योह ने कहा है कि मामले का राजनीतिक समाधान निकाला जाना चाहिए और शुरुआत प्रत्यार्पण विधेयक को पूरी तरह से वापस लेकर की जानी चाहिए.
उन्होंने कहा है कि प्रशासन को प्रदर्शनों को रोकने के लिए सिर्फ पुलिस के सहारे नहीं रहना चाहिए. इन बातों से उलट मुख्य प्रशासक कैरी लाम के आर्थिक सलाहकार एलेन जेमान ने कहा है कि अगर स्थिति बिगड़ती है, तो नियंत्रित करने के लिए चीनी सेना हांगकांग में प्रवेश कर सकती है. उन्होंने कहा है कि चीन के पास प्रदर्शनों को तुरंत काबू करने की क्षमता है. जेमान ने स्पष्ट कहा है कि भले हम पसंद करें या न करें, हांगकांग चीन का है. कुछ रिपोर्टों में बताया गया है कि हांगकांग-चीन सीमा पार शेंजेंग शहर में चीनी अर्द्धसैनिक बल प्रशिक्षण ले रहे हैं. इससे अंदेशा हो रहा है कि चीन इन्हें हांगकांग भेज सकता है.
प्रदर्शनकारियों से निपटने में नाकाम रहने और उनसे दुर्व्यवहार करने के आरोपों से जूझ रही हांगकांग पुलिस ने एक बयान में चीनी सुरक्षाबलों के तैनात होने की आशंकाओं को नकारते हुए कहा है कि उसे चीन की मदद की दरकार नहीं है. पुलिसकर्मियों को भी नागरिकों के अपशब्दों और अभद्रताओं का सामना करना पड़ रहा है. बड़ी संख्या में पुलिसकर्मियों की निजी सूचनाओं को हैकरों ने इंटरनेट पर सार्वजनिक कर दिया है.
हांगकांग को मिला है विशेष दर्जा
ब्रिटिश उपनिवेश का 150 साल तक हिस्सा रहे हांगकांग द्वीप को ब्रिटिश शासन ने 1997 में ‘एक देश, दो तंत्र’ नीति समेत कई विशेष प्रावधानों के साथ चीन को सौंप दिया था. चीन का हिस्सा होते हुए भी अगले 50 वर्षों के लिए हांगकांग को (विदेश और रक्षा मामलों को छोड़कर) उच्च स्तर की स्वायत्तता प्रदान की गयी है. नतीजतन, हांगकांग के पास स्वयं का विधि तंत्र, सीमा और संवैधानिक अधिकार है.
लगातार बढ़ रहा है चीन का हस्तक्षेप
चीन की मुख्य भूमि पर रहनेवाले नागरिकों से इतर हांगकांग के पास कुछ विशेष अधिकार हैं. लेकिन, अब हालात तेजी से बदल रहे हैं. चीन का हस्तक्षेप बढ़ रहा है, खासकर लोकतंत्र समर्थकों को निशाना बनाया जा रहा है.
विरोधियों और आलोचकों की गिरफ्तारी जैसे मामले सामने आ रहे हैं. हांगकांग के सदन में बीजिंग समर्थक सदस्यों का दबदबा बढ़ रहा है. हांगकांग का संविधान और बुनियादी कानून कहता है कि सदन के नेता और विधान परिषद का चुनाव लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत होगा. लेकिन, इस पर असहमति बढ़ रही है और लोकतंत्र समर्थकों पर कार्रवाई की जा रही है.
खुद को चीनी नहीं मानते
हांगकांग के लोग
हांगकांग में लोगों की चीनी नागरिकों के साथ नस्लीय समानता है, लेकिन ज्यादातर लोग खुद को चीनी नहीं मानते हैं. हांगकांग विश्वविद्यालय के एक सर्वेक्षण से स्पष्ट है कि लोग खुद चीनी स्वीकार करने के बजाय स्वयं को ‘हांगकांगर्स’ के तौर पर प्रस्तुत करते हैं.
मात्र 11 प्रतिशत लोग ही स्वयं को चीनी स्वीकार करते हैं. सर्वे में 71 प्रतिशत लोगों का मानना है कि चीनी नागरिक के तौर पर वे गर्व महसूस नहीं करते. हांगकांग के निवासी कानूनी, सामाजिक और सांस्कृतिक भिन्नता का भी हवाला देते हैं. चीनी हस्तक्षेप के विरोध में बीजिंग के खिलाफ हाल के वर्षों में तेजी से आक्रोश बढ़ा है.
अमेरिका की चेतावनी- चीन न करे हस्तक्षेप
चीन अगर हांगकांग में हस्तक्षेप करने का निर्णय भी लेता है, तो उसे बड़ी कीमत चुकानी होगी. इससे विदेशी निवेश प्रभावित होंगे. जो कंपनियां चीनी सरकार के दबाव में काम नहीं करना चाहेंगी और वे किसी अन्य देश का रुख सकती हैं.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप का कहना है कि चीन अगर हिंसक कार्रवाई करता है, तो इसका असर दोनों देशों के व्यापारिक रिश्ते पर पड़ेगा. इस बयान के बाद चीन किसी भी तरह की कार्रवाई करने से बचेगा. अमरीका के साथ चल रहे ट्रेड वार के कारण चीन की अर्थव्यवस्था पर काफी प्रभाव पड़ा है. इतना ही नहीं, चीनी वस्तुओं पर अमेरिका द्वारा आयात शुल्क की दर बढ़ा दिये जाने के कारण उसका निर्यात भी प्रभावित हुआ है.
विश्व की इस दो बड़ी अर्थव्ययवस्था के टकराव से वैश्विक स्तर पर भी मंदी का खतरा मंडराने लगा है. नतीजा, कंपनियां चीन से दूरी बनाने लगी हैं. जो कंपनियां वहां काम कर रही हैं, वे भी दूसरे देशों का रुख करने लगी हैं.
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