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टूटते प्रोटोकॉल के बीच नजदीक आते भारत- नेपाल के रिश्ते

नयी दिल्लीः नेपाल के प्रधानमंत्री सुशील कोइराला ने प्रोटोकॉल तोड़कर एयरपोर्ट पर मोदी का स्वागत किया. नेपाल के स्वागत से अभिभूत नरेंद्र मोदी कहां पीछे रहने वाले थे, नेपाल की राजधानी काठमांडू के एक व्यस्त बाजार में बगैर पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के मोदी रुके और वहां लोगों से बातचीत की. टूटते प्रोटोकॉल और एक दूसरे […]

नयी दिल्लीः नेपाल के प्रधानमंत्री सुशील कोइराला ने प्रोटोकॉल तोड़कर एयरपोर्ट पर मोदी का स्वागत किया. नेपाल के स्वागत से अभिभूत नरेंद्र मोदी कहां पीछे रहने वाले थे, नेपाल की राजधानी काठमांडू के एक व्यस्त बाजार में बगैर पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के मोदी रुके और वहां लोगों से बातचीत की. टूटते प्रोटोकॉल और एक दूसरे के ज्यादा नजदीक आने की कोशिश इस बात का साक्ष्य है कि भारत और नेपाल एक दूसरे के बेहद करीब आने और विकास के पथ पर कंधे से कंधा मिलाकर चलने को तैयार है. मोदी दूसरे ऐसे विदेशी नेता हैं, जिन्हें नेपाल की संसद को संबोधित करने का गौरव प्राप्त हुआ. 1990 में जर्मन चांसलर हेल्मट कोल ने संबोधित किया था

दोनों देश के प्रधानमंत्री 17 साल से बनी दूरी को खत्म करने के लिए प्रोटोकॉल को ताक पर रखने को तैयार है. मोदी ने नेपाली संसद में संबोधन के दौरान भी कहा कि हमें नजदीक आते- आते 17 साल लग गये. मैं वादा करता हूं कि अब ऐसा नहीं होगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नेपाल यात्रा कई मायनों में बेहद सफल रही.

क्यों बनी रही नेपाल और भारत के बीच दूरी

नरेंद्र मोदी पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने नेपाली संसद को संबोधित किया. 17 साल से किसी प्रधानमंत्री ने नेपाल की तरफ रुख नहीं किया. दोनों देशों के संबध को सुधारने के लिए इससे पहले भारत के पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल थे, जो 1997 में आए थे. अटल बिहारी वाजपेयी 2002 में सार्क सम्मेलन में हिस्सा लेने काठमांडू आए थे. इस अंतराल में भारतीय नेतृत्व ने नौकरशाही और ख़ुफ़िया तंत्र को नेपाल से जुड़े मामलों में दखलंदाज़ी की छूट दी, जिसने नेपालियों में एक नकारात्मक भावना की ज़मीन तैयार की.

इस बीच चीन नेपाल से अपनी नजदीकी बढ़ाता रहा. नेपाल को आपसी सहयोग और वहां के विकास में हरसंभव मदद का आश्वासन तो भारत हमेशा से देता रहा. लेकिन नेपाल ने भारत से उतनी नजदीकि शायद महसूस नहीं की. भारत और नेपाल के रिश्तों को अगर और गहराई से समझने की कोशिश करें तो इसके लिए हमें इतिहास के पन्नों को पलटना होगा दोनों देशों के बीच व्यापार, निवेश, संस्कृति के रिश्ते काफी पुराने हैं. भारत में साठ लाख से ज्यादा नेपाली काम कर रहे हैं और करीब छ लाख से ज्यादा ऐसे भारतीय हैं जिन्होंने नेपाल को अपना घर बना लिया है.

इन दो देशों के नागरिकों के बीच इतनी सहजता है कि इन्हें दोनों देशों में शायद ही कोई विशेष फर्क नजर आता हो. नेपाली भारत में बिना किसी वर्क परमिट के काम कर सकते हैं, बैंक खाता खोल सकते हैं. फ्री बॉर्डर होने से दोनों देशों के बीच लोगों की आवाजाही बेरोकटोक चलती है. नेपाल जाने वाले सभी पर्यटकों में बीस फीसदी से ज्यादा भारतीय होते हैं. नेपाल के विदेश व्यापार का दो तिहाई भारत के साथ होता है, जिसमें द्विपक्षीय व्यापार करीब 4.7 बिलियन डॉलर का है. 1996 के बाद से, भारत में नेपाल के निर्यात में ग्यारह गुना वृद्धि हुई है और द्विपक्षीय व्यापार सात गुना से अधिक बढ़ा है. इन सभी व्यापारिक और सांस्कृतिक रिश्तों के बीच भारत और नेपाल के बीच रिश्तों की डोर टूट रही थी. मोदी की दो दिवसीय यात्रा ने इन रिश्तों में नयी जान फूंक दी है.

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