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Exclusive Video : 7 करोड़ की 14 छिपकलियां! जानिए कितनी खास होती हैं ये और BSF जवानों को कहां मिलीं

West Bengal News, 14 Lizards Worth 7 Crores, Exclusive Photo: पश्चिम बंगाल में 7 करोड़ की 14 छिपकलियां मिली हैं. सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के जवानों ने दुर्लभ प्रजाति की इन छिपकलियों को बरामद किया है. छिपकलियां टेको गेको प्रजाति की हैं. इसे टोके गेको भी कहते हैं. इनकी कीमत करीब सात करोड़ रुपये है. छिपकलियों को उत्तर 24 परगना जिला के भारत-बांग्लादेश सीमा के पास से बरामद किया गया है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 9, 2020 9:00 PM

कोलकाता : पश्चिम बंगाल में 7 करोड़ की 14 छिपकलियां मिली हैं. सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के जवानों ने दुर्लभ प्रजाति की इन छिपकलियों को बरामद किया है. छिपकलियां टेको गेको प्रजाति की हैं. इसे टोके गेको भी कहते हैं. इनकी कीमत करीब सात करोड़ रुपये है. छिपकलियों को उत्तर 24 परगना जिला के भारत-बांग्लादेश सीमा के पास से बरामद किया गया है.

बीएसएफ ने बताया कि मंगलवार की शाम को बीएसएफ की 27वीं बटालियन के जवानों ने सीमा चौकी पारगुमटी अंतर्गत भारत-बांग्लादेश सीमा के पास एक व्यक्ति की संदिग्ध गतिविधि देखी. वह बांग्लादेश से भारतीय सीमा में घुस आया था. बीएसएफ के जवान उसकी ओर बढ़े, तो वह वापस बांग्लादेश की ओर से भाग गया.

इलाके की तलाशी लेने पर बीएसएफ के जवानों को प्लास्टिक का एक पैकेट मिला, जिसमें छिपकलियां रखी हुई थीं. भारत में इन दुर्लभ प्रजाति की छिपकलियों को रखना या इनका व्यापार करना भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची 4 के तहत अपराध है. ऐसा करने वाले को तीन से सात वर्ष के कारावास की सजा हो सकती है.

बरामद की गयीं छिपकलियों को वन विभाग को सौंप दिया गया है. उधर, जानकारों का कहना है कि टेको गेको या टोके टोके गेको प्रजाति की छिपकलियां सबसे ज्यादा एशिया में ही पायी जाती हैं. दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों मेंं इसे अच्छी किस्मत और समृद्धि का प्रतीक भी माना जाता है. इसलिए लोग इसे पालते हैं.

इन छिपकलियों की तस्करी दवा बनाने के लिए भी की जाती है. ऐसा माना जाता है कि इन छिपकलियों से बनायी गयी दवा किडनी और फेफड़े को मजबूत बनाती है. इन छिपकलियों से तेल भी बनाया जाता है. इतना ही नहीं, बताते हैं कि इस खास प्रजाति की छिपकली का इस्तेमाल मर्दानगी बढ़ाने वाली दवाइयां बनाने में होता है.

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इस छिपकली के मीट से डायबिटीज, नपुंसकता, एड्स और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के लिए दवाइयां बनायी जाती हैं. यही वजह है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी काफी मांग है. इसलिए इसकी कीमत भी बहुत ज्यादा है. उत्तर-पूर्वी राज्यों से पकड़कर दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में इसकी तस्करी की जाती है.

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दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में मांग वाली इस विशेष प्रजाति की छिपकलियां पूर्वोत्तर भारत के अलावा इंडोनेशिया, बांग्लादेश, फिलीपींस और नेपाल में पायी जाती हैं. एक छिपकली की कीमत एक करोड़ रुपये तक बतायी जाती है. तस्कर इस वन्य जीव को पकड़ने के बाद उसकी आंत निकाल लेते हैं. फिर सुखाकर इसे विदेशों में भेज दिया जाता है.

नेपाल और भूटान सीमा से भी होती है तस्करी

नेपाल और भूटान सीमा से भी टोके गेको छिपकलियों की तस्करी की जाती है. भारत-नेपाल और भारत-भूटान सीमा पर सीमा सुरक्षा बल (एसएसबी) को तैनात किया गया है, जो वन्यजीवों की तस्करी रोकने का काम भी करते हैं. नेपाल और भूटान से सटे भारतीय सीमा के सभी वन क्षेत्रों में 120 बाहरी सीमा चौकियां बनायी गयी हैं.

चीन और कोरिया के अरबपति खरीदते हैं टोके गेको

चीन और कोरिया के कोरिया के अरबपति इस छिपकली को खरीदते हैं. इनका मानना है कि इसकी मदद से अब तक की लाइलाज बीमारी एचआइवी को ठीक किया जा सकता है. कहा जाता है कि इसकी जीभ से बनी दवाई से एचआइवी रोगी को ठीक किया जा सकता है. इसलिए चीन और कोरिया के बाजारों में इसकी मांग भी अच्छी है और कीमत भी अच्छी मिल जाती है. ताइवान, हांगकांग, वियतनाम समेत कई देशों में इसकी तस्करी होती है.

Posted By : Mithilesh Jha

Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.

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