पाकिस्तान में नोबेल विजेता मलाला की भी कोई अहमियत नहीं
इस्लामाबाद : तालिबान के खिलाफ संघर्ष करने वाली पाकिस्तान की 17 वर्षीया लड़की मलाला यूसुफजई की पाकिस्तान में कोई अहमियत नहीं है. भले ही पूरी दुनिया आज उनसे प्रेरणा ले रही हो और उनके द्वारा शांति, लड़कियों की शिक्षा के लिए बुलंद की गयी आवाज से दूसरे प्रेरणा ले रहे हों, पर उनके अपने देश […]
इस्लामाबाद : तालिबान के खिलाफ संघर्ष करने वाली पाकिस्तान की 17 वर्षीया लड़की मलाला यूसुफजई की पाकिस्तान में कोई अहमियत नहीं है. भले ही पूरी दुनिया आज उनसे प्रेरणा ले रही हो और उनके द्वारा शांति, लड़कियों की शिक्षा के लिए बुलंद की गयी आवाज से दूसरे प्रेरणा ले रहे हों, पर उनके अपने देश पाकिस्तान में उसकी कोई अहमियत नहीं है.
पाकिस्तान में मलाला व उनके परिवार के आलोचक कह रहे हैं, उनके पिता ने अपनी बेटी को पैसों और शोहरत की खातिर आगे बढ़ाया है. पाकिस्तानी अखबार डेली टाइम्स के मुताबिक मलाला के आलोचक न सिर्फ स्वात घाटी में बल्कि पूरे देश में हैं. उनका कहना है कि यह सब एक साजिश के तहत किया गया है. बताया जाता है कि मलाला के गृह नगर में उनके पिता के कई स्कूल चलते हैं. उन पर अब आलोचक आरोप लगा रहे हैं.
आलोचकों का कहना है कि उनकी शादी बचपन में तय हो गयी थी और जब उन्होंने शादी तोड़ने की जिद की तो ससुराल वालों ने उन पर गोलियां चलायी, जो उनके माथे पर लगी. इस तरह के आरोप भी उनके पिता पर लग रहे हैं कि उन्होंने तालिबानियों को बदनाम करने के लिए प्रचार किया.
हालांकि दूसरी ओर ऐसे भी लोग हैं, जो मलाला का समर्थन करते हैं. वे कहते हैं कि ये सब बातें मूर्खतापूर्ण हैं. एक पत्रकार के अनुसार, मलाला के परिवार पर लगे सभी आरोप झूठे हैं. मलाला विरोधी यह भी प्रचारित कर रहे हैं कि मलाला की किताब मैं हूं मलाला इस्लाम विरोधी है. हालांकि जब एक पत्रकार ने स्थानीय लोगों से पूछा तो उन्होंने कहा कि उन्होंने यह किताब अभी पढ़ी नहीं है.
मलाला की आलोचना ने वहां के उदारपंथी बहुत हैरान हैं. ऐसे लोग अफसोस प्रकट करते हैं कि उनके देश में अब भी मध्यकालीन मानसिकता है और लोग लड़कियों को आगे बढ़ते नहीं देखना चाहते.