अमेरिका व क्यूबा के रिश्तों की बर्फ पिघलना चीन के लिए है बड़ी चुनौती

अमेरिका और क्यूबा के बीच 50 सालों से जारी शीत युद्ध की अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा बुधवार को औपचारिक घोषणा किये जाने के बाद चीन की परेशानी और चिंताएं बढ़ गयी है. चीन फिलहाल क्यूबा सहित ज्यादातर लैटिन अमेरिकी देशों के साथ सबसे बड़ा व्यापार साझीदार है. अब जब अमेरिका और क्यूबा के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 18, 2014 4:03 PM
अमेरिका और क्यूबा के बीच 50 सालों से जारी शीत युद्ध की अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा बुधवार को औपचारिक घोषणा किये जाने के बाद चीन की परेशानी और चिंताएं बढ़ गयी है. चीन फिलहाल क्यूबा सहित ज्यादातर लैटिन अमेरिकी देशों के साथ सबसे बड़ा व्यापार साझीदार है. अब जब अमेरिका और क्यूबा के रिश्तों की बर्फ पिछल रही है, तो स्वाभाविक है कि उस पर से बहुत सारे प्रतिबंध हटाये जायेंगे. साथ अमेरिका के साथ उसका व्यापार वाणिज्य भी बढ़ेगा.
ज्यादातर चीनी विद्वान चीन के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका और क्यूबा के बीच राजनयिक संबंधों की बहाली को अवसर और चुनौती दोनों रूपों में देखते हैं. दोनों देशों के बीच मनमुटाव खत्म होने की खबर का लैटिन अमेरिका और अमेरिका के विशेषज्ञों ने भी स्वागत किया है. ओबामा ने भी कहा कि हमारा पांच दशकों का टकराव हमारे हितों को पूरा करने में विफल रहा है. अब हम पुराने दृष्टिकोण को खत्म करेंगे. इसके बजाय हम अपने देशों के बीच संबंधों को सामान्य करने के लिए प्रयास करेंगे.
चाइना डेली में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, चाइनिज एकेडमी ऑफ सोशल साइंस में लैटिन अमेरिकी मामलों पर शोध करने वाले वू ज्योपिंग कहते हैं – क्यूबा वर्तमान में व्यापार प्रतिबंध के कारण उत्पादों के आयात के लिए मुख्य रूप से चीन पर निर्भर है. अब जब अमेरिकी यह प्रतिबंध हटा लेगा तो उसके लिए अपने पड़ोस में ही अधिक विकल्प होंगे. इससे चीन का व्यापार प्रभावित होगा. चीन को अब अधिक प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा और क्यूबा के लिए अब उसकी एकल प्रदाता की भूमिका भी खत्म हो जायेगी. वे इसके दूसरे और चीन के लिए अधिक सकारात्मक पक्ष पर जोर देते हैं. कहते हैं कि जब क्यूबा पर से प्रतिबंध हटा लिया जायेगा तो चीन के साथ व्यापार को लेकर अधिक विकल्प मौजूद होगा और उसके पास अधिक क्रय क्षमता होगा.
चीन के विशेषज्ञों का मानना है कि चीन ने जब लैटिन अमेरिकी देशों में अमेरिका के आर्थिक वर्चस्व को खत्म कर दिया, तो ऐसी परिस्थिति में उसके रुख में बदलाव आया.
हालांकि कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका ने बीते सालों में एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका ने अधिक ध्यान केंद्रित किया और वह अपने क्षेत्र में प्रभाव व प्रभुत्व हासिल नहीं कर सका. लैटिन अमेरिका के ही कई देशों में चीन बड़ा व्यापार भागीदार है. अब उसके रुख में आया बदलाव उसकी इसी भूल या कमजोरी को दूर करने की दिशा में उठाया गया कदम है.
अमेरिकी संबंध का अध्ययन करने वाले एक और चीनी विद्वान ताओ वेनझाओ के अनुसार, ओबामा की यह पहल अमेरिका के लिए एक अहम विरासत होगी. दुनिया के दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका और चीन की एक साथ लैटिन अमेरिकी देशों में उपस्थिति एक नयी गतिशीलता उत्पन्न करने वाली साबित होगी.

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