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श्रीलंका में कल होगा चुनाव, राजपक्षे को मिल रही कडी चुनौती

कोलंबो : श्रीलंका में नया राष्ट्रपति चुने जाने के लिए कल चुनाव होगा. देश में दशकों बाद राष्ट्रपति पद के लिए इस बार कडा मुकाबला है. पार्टी में फूट और अपने शासन को लेकर आलोचना के बीच निवर्तमान राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे रिकार्ड तीसरी बार जीतने की उम्मीद लगाए हुए हैं. विपक्ष में खेमेबाजी के चलते […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 7, 2015 5:46 PM

कोलंबो : श्रीलंका में नया राष्ट्रपति चुने जाने के लिए कल चुनाव होगा. देश में दशकों बाद राष्ट्रपति पद के लिए इस बार कडा मुकाबला है. पार्टी में फूट और अपने शासन को लेकर आलोचना के बीच निवर्तमान राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे रिकार्ड तीसरी बार जीतने की उम्मीद लगाए हुए हैं.

विपक्ष में खेमेबाजी के चलते आसान जीत की उम्मीद की वजह से जल्दी चुनाव की घोषणा करने वाले 69 वर्षीय राजपक्षे को इस बार प्रतिद्वंद्वी पार्टियों के गठबंधन से कडी चुनौती मिल रही है. इस विपक्षी गठबंधन की अगुवाई कर रहे हैं मैत्रीपाला सिरीसेना, जो कभी राजपक्षे के सहयोगी थे. देश की 2.1 करोड आबादी में 15,86,598 मतदाता हैं.

वोटिंग लिए 1,076 मतदान केंद्र बनाए गए हैं. राजपक्षे ने तीसरी बार जीत की आस में तय समय से दो साल पहले ही चुनाव कराने का फैसला किया. 74 प्रतिशत सिंहली बहुसंख्यकों में राजपक्षे लोकप्रिय नेता हैं. लिट्टे के खिलाफ अपने सैन्य अभियान के लिए उन्हें नायक माना जाता है.

चुनाव के ऐलान के एक दिन बाद ही पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सिरीसेना (63 वर्ष) ने चुनावी मुकाबले में आने के अपने फैसले से सबको हैरान कर दिया. सिरिसेना के चुनाव मैदान में उतरने के फैसले के बाद, चुनाव से अपने लिए कोई उम्मीद नहीं देख रहे विपक्ष में भी जान आ गयी.

बगावत के क्रम में अचाला जगोडा ने भी विपक्ष के उम्मीदवार सिरीसेना से हाथ मिला लिया. इस तरह विपक्षी खेमे से जुडने वाले वह 26 वें सांसद बन गए. राष्ट्रपति और उनके प्रतिद्वंद्वी दोनों बहुसंख्यक सिंहली बौद्ध समुदाय से आते हैं. ऐसे में यह ज्यादा महत्वपूर्ण होगा कि अल्पसंख्यक तमिल और मुस्लिम किसे वोट देते हैं.

बडे तमिल राजनीतिक समूहों ने सिरीसेना की उम्मीदवारी की हिमायत की है. हालिया वर्षों में कुछ कट्टरपंथी बौद्ध समूहों के सामने आने से हिंसा के कारण चिंतित मुस्लिम पार्टियां भी विपक्ष से जुड गयी है. तमिलों की शिकायत है कि उत्तरी इलाके में श्रीलंकाई फौज की अभी भी भारी मौजूदगी है और स्थानीय स्तर पर राजनीतिक स्वायत्ता नहीं है.

विपक्षी दल राजपक्षे पर भाई-भतीजावाद, कुशासन, भ्रष्टाचार और निरंकुश शासन का आरोप लगा रहे हैं. सोमवार को अपनी अंतिम चुनावी रैली में सिरीसेना ने कहा, ‘मैं राजपक्षे परिवार का शासन खत्म करुंगा.’

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