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भारत-अमेरिका परमाणु करार : सरकारी गारंटी भी दे सकता है भारत

लंदन : अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा से पहले भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु सहयोग करार को अमल में लाने आने वाली अडचनों को दूर करने के लिए भारत सरकार सरकारी गारंटी दे सकती है ताकि परमाणु दुर्घटनाओं में मुआवजे परियोजना आपूर्तिकर्ता कंपनी पर मुआवजे की जिम्मेदारी की चिंता दूर की जा सके. जिस एक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 23, 2015 8:41 PM

लंदन : अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा से पहले भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु सहयोग करार को अमल में लाने आने वाली अडचनों को दूर करने के लिए भारत सरकार सरकारी गारंटी दे सकती है ताकि परमाणु दुर्घटनाओं में मुआवजे परियोजना आपूर्तिकर्ता कंपनी पर मुआवजे की जिम्मेदारी की चिंता दूर की जा सके. जिस एक अन्य विकल्प पर विचार किया जा रहा है उसमें आपदा बांड या आपदा बांड तथा सरकारी गारंटी की मिली जुली व्यवस्था शामिल है. सरकारी सूत्रों ने यह जानकारी देते हुए कहा कि आपदा बांड का विचार बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (इरडा) ने सुझाया है.

सरकारी सूत्रों ने बताया कि परमाणु क्षति में सिविल दायित्व (सीएलएनडी) कानून, 2010 के तहत दायित्व संबंधी प्रावधान को लेकर भारत व अमेरिका के बीच गतिरोध को दूर करने के लिए परमाणु उर्जा विभाग (डीएई) दैनिक रूप से वित्त मंत्रालय के साथ मिल कर काम कर रहा है. भारत व अमेरिका के अधिकारियों के बीच कल रात यहां संपन्न हुई बैठक में एक इस मुद्दे पर भी विचार हुआ. सूत्रों ने बताया कि भारत अमेरिका संपर्क समूह की दो दिन की बैठक के दौरान प्रगति हुई है, लेकिन कुछ मुद्दे ऐसे हैं जिन्‍हें राजनीतिक स्तर पर सुलझाने की जरुरत है.

सीएलएनडी कानून, 2010 के तहत परिचालक को सिविल दायित्वों को पूरा करने के लिए 1,500 करोड रुपये की अलग से व्यवस्था रखनी जरुरी है ताकि प्रभावित लोगों को भुगतान किया जा सके. इस कानून में इसके लिए परियोजना की परिचालक कंपनी को परियोजना की आपूर्तिकर्ता से मदद लेने का कानूनी अधिकार दिया गया है. इसके चलते परमाणु उर्जा संयंत्र लगाने वाली विदेशी कंपनियों को कदम आगे बढाने में कठिनाई हो रही है.

सरकार ने जनरल इंश्योरेंस कंपनी (जीआईसी) से परमाणु बिजली रिएक्टरों का बीमा करने को कहा है, लेकिन भारत में परमाणु बिजलीघरों की परिचालक सरकारी कंपनी के पास बीमा करने की पर्याप्त वित्तीय क्षमता नहीं है. सूत्रों ने बताया कि विदेशी बीमा कंपनियों को अनुमति देने से बचने के लिए सरकार ने परमाणु बीमा पूल बनाने का फैसला किया है. इसमें कई कंपनियां रिएक्टरों का बीमा करने के लिए पूल में संसाधन डाल सकती हैं.

एक अन्य सूत्र ने कहा कि यदि चारों सरकारी बीमा कंपनियां अपने संसाधनों की पूलिंग करें, तो भी वे 750 करोड रुपये से अधिक के बीमा संरक्षण की व्यवस्था नहीं कर सकती हैं जोकि कानून के तहत 1,500 करोड रुपये की व्यवस्था का 50 फीसद ही है. कारण यह है कि वैश्विक नियमों के अनुसार ये बीमा कंपनियां किसी नये पूल के गठन के लिए अपने नेटवर्थ का मात्र तीन फीसद धन की प्रतिबद्धता ही जता सकती हैं.

वित्त मंत्रालय ने इस अंतर को पाटने के लिए सरकारी गारंटी देने से मना करते हुए कहा है कि मंत्रालय इस साल में पहले ही अपनी वित्तीय सीमाओं को पार कर चुका है. सूत्रों ने बताया कि अब वित्तीय सेवा विभाग ने डीएई को सूचित किया है कि इस कमी को पूरा करने के लिए वह सरकारी गारंटी देने को तैयार है. आपदा बांड का चलन आमतौर पर अमेरिका व यूरोप में है. कोई बडी आपदा आने पर अपने कुछ जोखिम को कम करने के लिए बीमा कंपनियां आपदा बांड जारी करती हैं.

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