पहले के मुकाबले आज ”गांधी” का दर्शन ज्यादा प्रासंगिक लगता है : इला गांधी
मेलबर्न : अहिंसा और साधारण जीवनशैली का महात्मा गांधी का दर्शन पहले के मुकाबले आज ज्यादा प्रासंगिक है क्योंकि इस्लामोफोबिया, आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन शांति के आडे आ रहे हैं. यह बात महात्मा गांधी की 74 वर्षीय पौत्री इला गांधी ने कही. उन्होंने कहा कि उनके दादा के आदर्श चरमपंथी हिंसा और पर्यावरण विनाश सहित […]
मेलबर्न : अहिंसा और साधारण जीवनशैली का महात्मा गांधी का दर्शन पहले के मुकाबले आज ज्यादा प्रासंगिक है क्योंकि इस्लामोफोबिया, आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन शांति के आडे आ रहे हैं. यह बात महात्मा गांधी की 74 वर्षीय पौत्री इला गांधी ने कही.
उन्होंने कहा कि उनके दादा के आदर्श चरमपंथी हिंसा और पर्यावरण विनाश सहित आज के समाज की कुछ सबसे बडी चुनौतियों के समाधान की चाबी हैं.
शांति कार्यकर्ता एवं पूर्व दक्षिण अफ्रीकी सांसद ने कहा, शायद कुछ महत्वपूर्ण सवाल ये हैं कि हम जीवन के लिए कितना सम्मान रखते हैं ? हम खुद में और दूसरों में कितना विश्वास रखते हैं ? हम अगली पीढी को क्या पढाते हैं ? उन्होंने यह बात पिछले हफ्ते सिडनी में यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू साउथ वेल्स के वार्षिक गांधी व्याख्यान में कही.
इला ने कहा कि मानवता ने अति उपभोग के बारे में 82 साल पहले महात्मा गांधी द्वारा दी गई चेतावनियों पर ध्यान नहीं दिया. उन्होंने कहा, आज हम जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से पीड़ित नहीं होते और इस बारे में चिंता नहीं कर रहे होते कि हम अपने ग्रह का संरक्षण कैसे करें. मैं अक्सर आश्चर्यचकित होती हूं जब हम विश्व के सामने मौजूद पानी की कमी के संकट पर बात करते हैं, अब भी हम मध्यम वर्ग के विस्तार के साथ विश्व में हर जगह बनाए जा रहे निजी तरणतालों के बारे में कुछ नहीं कर रहे हैं.
इला ने कहा कि गांधी लगातार कहते थे कि कृत्य और कर्ता के बीच अंतर किए जाने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा, ‘‘आज हम जो देखते हैं वह बिल्कुल उल्टा है, हम न सिर्फ कृत्य और कर्ता की निन्दा करते हैं, बल्कि निन्दा को लोगों के एक समूचे समूह तक विस्तारित कर देते हैं जिससे हम कर्ता को जोडते हैं. इस तरह हम इस्लामोफोबिया, नस्ली अपराध और पूर्वाग्रहों को बढावा देते हैं.’’
शांति कार्यकर्ता ने कहा, ‘‘गांधी जी की शिक्षा यह थी कि ईश्वर खुद को एक इमारत में कैद करने की बात नहीं कहते, चाहे यह मंदिर हो या मस्जिद या फिर चर्च हो. वह खुद को कैद करने की बात नहीं कहते. वह हर जगह हैं.’’ इला ने कहा कि विश्व जटिल समस्याओं के जल्द समाधान की राह देख रहा है और दक्षिण अफ्रीका के सच एवं मेलमिलाप आयोग के साथ उनका खुद का अनुभव यह था कि अंतिम बदलाव के लिए धैर्य और विश्वास की आवश्यकता है.
उन्होंने कहा, ‘‘यद्यपि बहुत से लोग ऐसे रहे जिन्होंने माफ किया और अपराध करने वालों तथा अपराधियों जिन्होंने अपने द्वारा किए गए अपराध को महसूस किया और अपनी आदतों को बदला, के साथ मिलकर रहने में सफल रहे, लेकिन ऐसा होने में बहुत समय लगता है.’’
यह पूछे जाने पर कि उनके दादा आधुनिक दुनिया के हथियारों, ड्रोन विमानों और सोशल मीडिया के बारे में क्या सोचते, इला ने कहा कि वह खुद कभी हथियार नहीं उठाते, लेकिन ‘‘निश्चित तौर पर, मेरा मानना है कि यदि तब फेसबुक होता तो, वह इसका इस्तेमाल बडी बुद्धिमानी से कर रहे होते.’’ उन्होंने कहा कि हालांकि खेल के बहिष्कार से रंगभेद खत्म करने में मदद मिली, लेकिन गांधी खेल के प्रति आज के युग की दीवानगी को शायद स्वीकार नहीं करते.
इला ने कहा, ‘‘गांधी जी प्रतिस्पर्धा को पसंद नहीं करते थे. हालांकि उनकी एक फुटबाल टीम थी, उनके ज्यादातर खेल लुत्फ के लिए थे और ये प्रतिस्पर्धा के लिए नहीं थे. उन्होंने महसूस किया कि जब आप एक बार प्रतिस्पर्धा शुरु कर देते हो तो इसका परिणाम शत्रुता तथा हिंसा के रुप में निकलता है.’’ गांधी की पौत्री इला दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ संघर्ष के दौरान नौ साल तक नजरबंद रही थीं.