अफगानिस्तान में सक्रिय आतंकवादी संगठनों से तत्काल निपटे सुरक्षा परिषद : भारत

संयुक्त राष्ट्र : भारत ने कहा कि पाकिस्तान आधारित लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी समूह सीमा पार से मिलने वाले व्यवस्थागत सरकारी सहयोग के बिना अफगानिस्तान में सक्रिय नहीं रह सकते और सुरक्षा परिषद को सुरक्षा पर मंडराने वाले इन खतरों से तत्काल निपटना चाहिए. अफगानिस्तान में डटे रहने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हुए भारत ने सुरक्षा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 17, 2015 2:19 PM
संयुक्त राष्ट्र : भारत ने कहा कि पाकिस्तान आधारित लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी समूह सीमा पार से मिलने वाले व्यवस्थागत सरकारी सहयोग के बिना अफगानिस्तान में सक्रिय नहीं रह सकते और सुरक्षा परिषद को सुरक्षा पर मंडराने वाले इन खतरों से तत्काल निपटना चाहिए.
अफगानिस्तान में डटे रहने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हुए भारत ने सुरक्षा परिषद से कहा कि युद्ध प्रभावित देश में अस्थिरता का मुख्य कारक जातीय प्रतिद्वंद्विताएं नहीं, आतंकवाद है.
अफगानिस्तान के भीतर की सुरक्षा स्थिति पर चिंता जाहिर करते हुए भारत ने संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की-मून की हालिया रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि वर्ष 2011 में अल-कायदा नेता ओसामा बिन लादेन के निष्प्रभावी हो जाने के बाद वर्ष 2014 में अफगानिस्तान में सुरक्षा संबंधी घटनाओं की संख्या शीर्ष से दूसरे स्थान पर रही.
संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत अशोक मुखर्जी ने कल सुरक्षा परिषद में अफगानिस्तान के लिए संयुक्त राष्ट्र के सहायता मिशन पर बहस के दौरान कहा, महासचिव की रिपोर्ट हमारे इस विचार को सही ठहराती है कि अफगानिस्तान में असुरक्षा और अस्थिरता का मुख्य स्रोत आतंकवाद है न कि कबायली मतभेद या जातीय प्रतिद्वंद्विताएं.
मुखर्जी ने कहा कि अफगान नेशनल सिक्योरिटी फोर्स और अंतरराष्ट्रीय गठबंधन बलों के साहसी जवानों के प्रयासों के बावजूद लश्कर-ए-तैयबा समेत आतंकी समूह सक्रिय हैं.
मुखर्जी ने कहा, यह स्पष्ट है कि उनकी यह सक्रियता अफगानिस्तान की सीमा पार से व्यवस्थागत सरकारी सहयोग मिले बिना तो बनी रह नहीं सकती. उन्होंने कहा कि रिपोर्टें दिखाती हैं कि पहले ही आतंकवाद से प्रभावित इस क्षेत्र में ये समूह और भी उग्र रुप अख्तियार कर रहे हैं.
मुखर्जी ने कहा, परिषद को इस खतरे के खिलाफ तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान के सुधार के लिहाज से यह दशक बेहद महत्वपूर्ण है और इसके साथ ही उन्होंने युद्ध प्रभावित इस देश में भारत के डटे रहने की प्रतिबद्धता को दोहराया.
उन्होंने कहा, भारत को अपने आप को अफगानिस्तान का पहला रणनीतिक सहयोगी कहने पर गर्व है. हम अफगान जनता के एक मजबूत, स्वतंत्र, एकजुट और समृद्ध देश की दृष्टि में साझीदार हैं. भारत इस महान दृष्टि को साकार करने के लिए अफगान सरकार और इसकी जनता के साथ अपनी क्षमताओं और साधनों के लिहाज से हर संभव कार्य करने के लिए तैयार खडा है. मुखर्जी ने 15 देशों की परिषद को सूचित किया कि भारत, अफगानिस्तान और ईरान इस बात पर विचार कर रहे हैं कि अफगानिस्तान को बाहरी दुनिया से जोडने के लिए किस तरह से ईरान के मौजूदा बंदरगाह चाबहार को विकसित किया जा सकता है.
भारत ने अफगान ट्रकों और सामान को भारत-पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा के इस ओर अटारी तक आने का भी एकपक्षीय प्रस्ताव दिया है. अभी तक इनके पास सिर्फ पाकिस्तान की ओर वाघा तक आने का ही अधिकार था.
मुखर्जी ने कहा, इस प्रस्ताव के क्रियान्वयन से अफगानिस्तान को इस क्षेत्र के सबसे तेज गति से विकसित होते आर्थिक बाजारों में से एक बाजार तक महत्वपूर्ण पहुंच हासिल होगी. उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय संगठन दक्षेस के प्रस्तावित मोटर वाहन समझौते से सामान और लोगों के अफगानिस्तान से आवागमन में सुविधा होगी.
मुखर्जी ने इस बात पर जोर दिया कि काबुल में जल्द से जल्द सरकार के गठन का काम पूरा करना एक प्राथमिकता है ताकि सभी मंत्रालयों की सामान्य तरीके से कार्यशीलता सुनिश्चित की जा सके.
उन्होंने यह भी उम्मीद जताई कि चुनावी सुधारों के महत्वपूर्ण राजनीतिक काम और संवैधानिक लोया जिर्गा के संगठन का काम भी जल्द ही पूरा हो सकेगा.

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