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बांग्लादेश : फांसी के खिलाफ जमात ए इस्लामी नेता की आखिरी याचिका भी खारिज
ढाका : बांग्लादेश की जमात ए इस्लामी पार्टी के एक शीर्ष नेता की फांसी की सजा के खिलाफ दायर आखिरी याचिका भी आज खारिज हो गई. अब उसे फांसी दिए जाने का रास्ता साफ हो गया है. यह सजा उसे 1971 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लोगों पर अत्याचार करने के लिए सुनाई गई है. […]
ढाका : बांग्लादेश की जमात ए इस्लामी पार्टी के एक शीर्ष नेता की फांसी की सजा के खिलाफ दायर आखिरी याचिका भी आज खारिज हो गई. अब उसे फांसी दिए जाने का रास्ता साफ हो गया है. यह सजा उसे 1971 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लोगों पर अत्याचार करने के लिए सुनाई गई है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने पूर्ववर्ती फैसले को कायम रखते हुए हुए मोहम्मद कमर उज जमां की पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया. शीर्ष अदालत की चार सदस्यीय पीठ द्वारा जमात के 63 वर्षीय सहायक महासचिव की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई किए जाने के एक दिन बाद आज प्रधान न्यायाधीश सुरेंद्र कुमार सिन्हा ने याचिका को खारिज कर दिया.
फैसला आने के बाद अटार्नी जनरल महबूब-ए-आलम ने कहा कि मानवता के खिलाफ किए गए अपराधों के लिए कमर उज जमां को फांसी की सजा देने पर आगे बढने में अब सरकार के समक्ष कोई कानूनी अडचन नहीं है.
उन्होंने कहा कि कमर उज जमां अब एक निश्चित समयसीमा में राष्ट्रपति से क्षमादान की गुहार लगा सकता है. जमात कार्यकर्ताओं द्वारा उत्पात मचाए जाने की आशंका को देखते हुए अधिकारियों ने अर्द्धसैनिक बल बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश (बीजीबी) को सतर्क कर दिया है.
गृह मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, बीजीबी के जवान पुलिस और त्वरित कार्रवाई बटालियन (आरएबी) जैसी नियमित कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ मिलकर निगरानी रखेंगे. वर्ष 2013 में बांग्लादेश को हिंसक प्रदर्शनों का सामना करना पडा था जब कमर उज जमां के खिलाफ न्यायाधिकरण ने फैसला सुनाया था.
आलम ने पहले कहा था कि जेल संहिता के तहत साधारण मौत की सजा पाए अपराधी को फांसी दिए जाने से पहले तैयार होने के लिए 21 दिन का समय मिल जाता है लेकिन युद्ध अपराधियों पर यह व्यवस्था लागू नहीं होती क्योंकि उन पर सुनवाई एक विशेष कानून के तहत होती है जो कि आम अपराध प्रक्रिया संहिता से अलग होता है.
बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (आईसीटी) ने मई 2013 में कमर-उज-जमां को 1971 के मुक्ति संग्राम में पाकिस्तानी सेना का सहयोग करके मानवता के खिलाफ अपराध करने के लिए मौत की सजा सुनाई थी.
कमर-उज-जमां को केंद्रीय मेमनसिंह क्षेत्र में जनसंहार, हत्या, अपहरण, प्रताडित करना , बलात्कार, उत्पीडन और यातना के लिए उकसाने का दोषी पाया गया था. उसे उत्तरी शेरपुर में उनके गृहजिले के एक गांव में 164 लोगों की हत्या का दोषी पाया गया था.
सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले साल तीन नवंबर को उसकी मौत की सजा को बरकरार रखा था. हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने संपूर्ण फैसला 18 फरवरी को जारी किया था और इसे आईसीटी को भेज दिया था. आईसीटी ने इस पर तुरंत कार्रवाई करते हुए मृत्यु वारंट जारी कर दिया था लेकिन कमर-उज-जमां ने पांच मार्च को इस संबंध में आखिरी कदम उठाते हुए पुनर्विचार याचिका दायर की थी.
मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तानी सेना और उनके बांग्ला भाषी सहयोगियों ने लगभग 30 लाख लोगों को मौत के घाट उतार दिया था. बांग्लादेश में युद्ध अपराध के कथित आरोपियों पर देश के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण में एक विशेष कानून के तहत मुकदमा चलाया जा रहा है.
वर्ष 2010 में प्रधानमंत्री शेख हसीना की धर्मनिरपेक्ष सरकार द्वारा दो विशेष न्यायाधिकरणों का गठन किया गया. बांग्लादेश ने जब से युद्ध अपराधियों के खिलाफ सुनवाई को प्रारंभ किया है तब से अब तक 13 लोगों को मौत की सजा सुनाई जा चुकी है.
उनमें से सिर्फ एक जमात के संयुक्त महासचिव अब्दुल कादर मोलाह को फांसी पर लटकाया गया है. कमर-उज-जमां की फांसी के फैसले से देश में जारी हिंसा बढ सकती है. विपक्ष का कहना है कि युद्ध अपराधियों के खिलाफ की जा रही सुनवाई राजनीति से प्रेरित है.
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