नेपाल के विनाशकारी भूकंप में 1,60,786 मकान नष्ट, 7000 से अधिक लोगों की जान गयी
काठमांडू: नेपाल में भूकंप से 1,60,000 से ज्यादा मकान नष्ट हो गए हैं जो 1934 के भूकंप में नष्ट हुए मकानों की तुलना में दोगुना है. वर्ष 1934 का भूकंप देश का भीषणतम भूकंप था. पच्चीस अप्रैल को आये 7.9 तीव्रता के भूकंप में 7000 से अधिक लोगों की जान चली गयी जबकि 14,123 अन्य […]
काठमांडू: नेपाल में भूकंप से 1,60,000 से ज्यादा मकान नष्ट हो गए हैं जो 1934 के भूकंप में नष्ट हुए मकानों की तुलना में दोगुना है. वर्ष 1934 का भूकंप देश का भीषणतम भूकंप था. पच्चीस अप्रैल को आये 7.9 तीव्रता के भूकंप में 7000 से अधिक लोगों की जान चली गयी जबकि 14,123 अन्य घायल हुए. इस भूकंप का केंद्र काठमांडो के उत्तर पश्चिम में 80 किलोमीटर की दूरी पर था.
संयुक्त राष्ट्र मानवीय एजेंसी ओसीएचए (ऑफिस फार कोर्डिनेशन ऑफ ह्यूमैनटेरियन एफेयर्स) द्वारा जारी स्थिति रिपोर्ट के अनुसार गोरखा एवं सिंधुपालचौक जैसे बुरी तरह प्रभावित जिलों में नुकसान और ही ज्यादा हुआ है तथा वहां 90 फीसदी मकान नष्ट हो गए हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार के अनुसार भूकंप से (एक मई तक) 1,60,786 मकान नष्ट हो गए जबकि 1,43,642 क्षतिग्रस्त हुए. सरकार का एक अनुमान है कि नष्ट हुए मकानों की संख्या बढकर 5,00,000 तक जा सकती है.प्रभावित जिलों में सिंधुपालचौक में सबसे अधिक लोग हताहत हुए जहां 2000 लोगों की मौत हुई. गोरखा जिले में सैकडों लोगों की जान गयी जहां उस दिन भूकंप का केंद्र था.
रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि भूकंप प्रभावित नेपाल को मानवीय राहत के लिए 41.5 करोड डॉलर की जरुरत है.रिपोर्ट कहती है कि 81 साल पहले 1934 के भूकंप में 80,893 मकान नष्ट हुए थे.
वर्ष 1934 में नेपाल और बिहार में भीषण भूकंप आया था और उसका केंद्र माउंट एवरेस्ट के दक्षिण में 9.5 किलोमीटर की दूरी पर था। उस भूकंप ने हिमालय के दोनों ओर हजारों लोगों को मौत की नींद सुला दिया था और बिहार में मुंगेर, मुजफ्फरपुर और दरभंगा जिले के अलावा काठमांडो घाटी में हजारों मकान एवं भवन नष्ट हो गए थे.
पच्चीस अप्रैल का भूकंप कई मायनों में 1934 के भूकंप की याद दिलाता है जिसने ऐतिहासिक घंटाघर समेत देश की पुरातात्विक धरोहरों को नष्ट कर दिया.धरहरा टावर 1934 में भी नष्ट हुआ था लेकिन उसका बाद में फिर निर्माण कराया गया. इस बार भूकंप ने उसे फिर जमींदोज कर दिया.
सिंधुपालचौक में जिस तरह मकान ध्वस्त हुए हैं उससे आंगुतकों एवं बचावकर्मियों के रोंगटे खडे हो जाते हैं. काठमांडो से सिंधुपाल चौक तक जगह जगह लोग तिरपाल के नीचे नजर आ रहे हैं और कुछ लोगों ने तो नदी एवं खेतों में भी अस्थायी मकानों में शरण ले रखी है.
कावरे जिले में डोलाघाट इलाके की इक्कीस वर्षीय सालू ने कहा, ‘‘हमारे मकान में बडी बडी दरारें पैदा हो गयी हैं और यह नदी तट है. हम अपना सारा सामान घर में छोडकर आ गए हैं हम यहां सामुदायिक स्थल पर टेंटों में रह रहे हैं.बिजनेस मैनेजमेंट का छात्र उन्नीस वर्षीय सरोज श्रेष्ठ अपने परिवार एवं दोस्तों की मदद के लिए अपने गृहनगर अंधेरी वापस आ गया है. सन कोशी नदी के तट पर स्थित उसके परिवार का होटल अब भूकंप पीडितों के लिए आश्रय बन गया है.
उसने कहा कि हमारे इलाकों में लोग दुखी और डरे हुए हैं. इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ रेड क्रॉस और रेड क्रीसेंट सोसायटीज ने खबर दी है कि 25 राष्ट्रीय सोसायटियां नेपाली रेड क्रॉस सोसायटी को जीवन रक्षक राहत प्रदान कर रही हैं.