रुचि सांघवी फेसबुक की पहली महिला इंजीनियर

कार्नेगी मेलन विश्वविद्यालय से कंप्यूटर साइंस की इंजीनियर रुचि ने उसी साल की शुरुआत में वॉल स्ट्रीट पर एक बैंक की नौकरी सिर्फ़ तीन हफ़्तों बाद ही छोड़ दी थी.वह कहती हैं, "मैं अचानक घबरा गई थी. दरअसल मैं ऐसी जगह काम करना चाहती थी जहाँ मुझे अपनी क्षमताओं का सही इस्तेमाल करने का मौक़ा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 24, 2013 11:49 AM

कार्नेगी मेलन विश्वविद्यालय से कंप्यूटर साइंस की इंजीनियर रुचि ने उसी साल की शुरुआत में वॉल स्ट्रीट पर एक बैंक की नौकरी सिर्फ़ तीन हफ़्तों बाद ही छोड़ दी थी.वह कहती हैं, "मैं अचानक घबरा गई थी. दरअसल मैं ऐसी जगह काम करना चाहती थी जहाँ मुझे अपनी क्षमताओं का सही इस्तेमाल करने का मौक़ा मिलता."

वह इसके बाद कैलिफ़ोर्निया पहुँचीं, जहाँ उन्होंने ‘ऑरैकल’ में इंटरव्यू दिया और काम शुरू किया. तभी उन्हें एक दोस्त ने फ़ेसबुक के बारे में बताया.रुचि बताती हैं, "मुझे उनके (फ़ेसबुक के) बारे में ज़्यादा पता नहीं था. मुझे ये भी नहीं पता था कि वे अब कैलिफ़ोर्निया से काम कर रहे हैं. मुझे लगा था कि वे अब भी बोस्टन में हार्वर्ड से ही काम कर रहे हैं."

वे मुझे ये सब बातें सैनफ़्रांसिस्को में ‘ड्रॉपबॉक्स’ कंपनी के अपने दफ़्तर में बैठकर बता रही थीं. 31 साल की रुचि अब ‘ड्रॉपबॉक्स’ में ऑपरेशंस की वाइस प्रेसिडेंट हैं.

इस कंपनी के दफ़्तर में कर्मचारी, गलियारों से स्केट्स पहनकर या पैर से धक्का देकर चलने वाले छोटे दोपहिया साधन से आते-जाते हैं. इसी बीच में कुछ लोग अपने काम से ब्रेक लेकर पूल खेल रहे हैं या वीडियो गेम्स में लगे हैं. लोगों को इन व्यस्त पलों में कुछ आराम देने के लिए बेहतरीन संगीत का भी एक कमरा है.

रुचि कहती हैं, "मैंने जब फ़ेसबुक में काम शुरू किया तो वहाँ सिर्फ़ 20 ही लोग थे. मैंने उसे हज़ार कर्मचारियों तक बढ़ते देखा और ये भी देखा कि फ़ेसबुक का इस्तेमाल करने वाले भी कैसे 50 लाख से बढ़कर एक अरब हो गए. मैंने देखा कि कैसे सिर्फ़ कॉलेज के छात्र-छात्राओं को जोड़ने का काम करने वाली एक सर्विस पूरी दुनिया में फैल गई."

वह बताती हैं, "काफ़ी अफ़रा-तफ़री भरा समय था वो, मगर साथ ही बेहद ख़ूबसूरत अनुभव भी. मैंने सब कुछ वहीं सीखा."फ़ेसबुक में आपको जो न्यूज़ फ़ीड दिखती है, उसे बनाने वाली टीम का हिस्सा थीं रुचि.तो आख़िर फ़ेसबुक की पहली महिला इंजीनियर होने का अनुभव कैसा था, मैंने उनसे पूछा?

रुचि कहती हैं कि उन्हें अपने संस्थानों में अल्पसंख्यक होने की आदत थी, क्योंकि उनके इंजीनियरिंग स्कूल में भी 150 लोगों की क्लास में सिर्फ़ पाँच ही लड़कियां थीं.फ़ेसबुक के अपने अनुभव के बारे में वह कहती हैं, "आपको ये सुनिश्चित करना होता था कि आपकी बात सुनी जाएगी, आपको सवाल पूछने होते थे. कई बार लोग आपसे कहेंगे कि आपने बहुत ही बेवकूफ़ी की बात की है तो आपको फिर से काम शुरू करना होगा. मगर कुल मिलाकर ये मेरिट के आधार पर तय होता था कि कौन आगे जाएगा, कौन नहीं. वहाँ सीखने के लिए बहुत ही अच्छा माहौल था."

फ़ेसबुक में ही उनकी मुलाक़ात उनके भावी पति से भी हुई. रुचि जहाँ फ़ेसबुक में पहली महिला इंजीनियर थीं तो उनके पति वहाँ पहले भारतीय इंजीनियर थे.फ़ेसबुक के संस्थापकों में से एक और मुख्य कार्यकारी मार्क ज़करबर्ग के बारे में जब मैंने पूछा तो उन्होंने कुछ सोच-विचार के बाद कहा कि उन्हें ज़करबर्ग के बारे में बात करना ज़्यादा पसंद नहीं है. लेकिन फिर उन्होंने बात की.

उन्होंने बताया कि कैसे फ़ेसबुक ने जब न्यूज़ फ़ीड शुरू किया तो उसके ख़िलाफ़ यूज़र्स में ग़ुस्सा भड़का और उसे ख़त्म करने की माँग ने ज़ोर पकड़ लिया था.रुचि के अनुसार, "जब न्यूज़ फ़ीड आया तो लगभग एक करोड़ लोग फ़ेसबुक का इस्तेमाल करते थे. मार्क इसकी घोषणा करने के लिए एक संवाददाता सम्मेलन में थे और लाखों लोगों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया."

पिछले ही साल रुचि ने उस घटना के बारे में ब्यौरा दिया भी था, "उस समय ‘मुझे फ़ेसबुक से नफ़रत है’ या ‘रुचि इसके लिए दोषी है’ जैसे ग्रुप बन गए थे. लोग हमारे दफ़्तर के बाहर कैंप लगाकर जमा हो गए थे और विरोध कर रहे थे. मगर फिर हमें लगा कि हमारे विरोध करने वाले और इसे नापसंद करने वाले लोग दरअसल फ़ेसबुक के न्यूज़ फ़ीड के ज़रिए ही अपनी बात और ज़्यादा लोगों तक पहुँचा पा रहे थे." रुचि बताती हैं कि उस समय मार्क ज़करबर्ग अपने फ़ैसले पर अडिग रहे.

वह कहती हैं, "किसी और कंपनी में देखें तो अगर आपके 10 फ़ीसदी इस्तेमाल करने वाले लोग किसी उत्पाद का बहिष्कार कर दें तो निश्चित रूप से आप या तो फ़ैसला बदल देंगे या उस बारे में कुछ करेंगे. लेकिन मार्क अपनी सोच और न्यूज़ फ़ीड के भविष्य को लेकर अड़े हुए थे."

रुचि ने जब साल 2010 में फ़ेसबुक छोड़ी तो कंपनी में डेढ़ हज़ार से ज़्यादा कर्मचारी थे और उसे इस्तेमाल करने वालों की तादाद 50 करोड़ तक पहुँच चुकी थी. उस समय रुचि अपनी कंपनी शुरू करना चाहती थीं इसलिए उन्होंने फ़ेसबुक को अलविदा कहा. पुणे शहर में बड़ी हुई इस लड़की ने पारिवारिक कारोबार सँभालने का सपना देखा था. उनके पिता दूसरी पीढ़ी के व्यापारी हैं और एक कंपनी चलाते हैं. उनके दादा का स्टेनलेस स्टील का बिज़नेस था.

रुचि कहती हैं कि भारत में कुछ करना अगर आसान होता तो वह ज़रूर करतीं वे कहती हैं, "हम एक उद्यमी परिवार के लोग हैं." लेकिन अब वह अमरीका में थीं और कंप्यूटर साइंस पढ़ने और फ़ेसबुक में काम करने के बाद उनके लिए दुनिया के दरवाज़े खुल गए.

(साभार बीबीसी)

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