न्यूयार्क : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जलवायु परिवर्तन मामले में ‘जलवायु न्याय’ पर जोर देते हुये कहा कि समानता का मानदंड अपनाते हुये विकासशील देशों की उनकी विकासात्मक गतिविधियों के लिये आलोचना नहीं की जानी चाहिये. प्रधानमंत्री ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के मामले में साझी लेकिन विवेदकारी जवाबदेही होनी चाहिये. एक शीर्ष अधिकारी ने यह जानकारी दी. जलवायु न्याय की अवधारणा के पीछे ‘समानता के सवाल’ की बात है जिसमें मूल सिद्धांत तो साझा होगा लेकिन उसकी जवाबदेही के स्तर में फर्क होगा.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरुप ने कल यहां प्रधानमंत्री मोदी के संयुक्त राष्ट्र सतत विकास शिखर सम्मेलन को संबोधित करने के बाद कहा, ‘हम स्वीकार करते हैं कि मॉं धरती को बचाने के लिये हमारी साझा जिम्मेदारी है, लेकिन इसके साथ ही यह भी समझने की जरुरत है कि यह जवाबदेही अलग-अलग होनी चाहिये. आपको इस मामले में विभिन्न देशों के विकास के स्तर पर गौर करना होगा. आपको उन्हें विकास गतिविधियों को जारी रखने की अनुमति देनी होगी ताकि वह भी मध्यम और विकसित देश बन सकें.’
उन्होंने कहा, ‘जब भी बात उत्सर्जन की होती है, तो इसमें प्रति व्यक्ति उत्सर्जन पर गौर किया जाना चाहिये. भारत का प्रति व्यक्ति उत्सर्जन अभी 1.7 ही है जबकि अमेरिका में यह 16 और 17 तक है. ऐसे में बात न्याय और समानता की है. ऐसे में आप विकासात्मक गतिविधियों को आगे बढाने के लिये विकासशील देशों की आलोचना नहीं कर सकते हैं जिनमें कार्बन उत्सर्जन स्तर काफी नीचे है. स्वरुप ने कहा कि मोदी ने इस दौरान लगातार सतत विकास पर जोर दिया और इस मामले में भारत अपने दायित्व को लेकर सजग है.
उन्होंने इस संबंध में भारत द्वारा 175 गीगावाट अक्षय ऊर्जा की दिशा में की जा रही पहल के बारे में बताया लेकिन साथ ही यह भी कहा कि इसका मतलब यह नहीं है कि भारत विकास के अपने विकल्पों को छोड देगा. उन्होंने कहा, ‘जलवायु परिवर्तन की एतिहासिक जिम्मेदारियों को समझने की जरुरत है. आज जो स्थिति है उसके लिये कौन देश जिम्मेदार है यह बिल्कुल स्पष्ट है.’ स्वरुप ने कहा कि प्रधानमंत्री द्वारा जलवायु न्याय की बात मौलिक रूप से अलग नहीं है जैसा कि विकासशील देश यह कहते रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन के लिये एतिहासिक रूप से जिम्मेदारी तय होनी चाहिये.
विकासशील देशों को केवल उत्सर्जन के आधार पर उनकी विकास गतिविधियों को रोकने के लिये नहीं कहा जाना चाहिये. मोदी ने यह भी कहा कि जोर नकारात्मक एजेंडा पर नही होना चाहिये. ऐसा नहीं होना चाहिये जिसमें विभिन्न देशों को उत्सर्जन की सीमा तय करने को कहा जाये. चीजों को इस तरह नहीं सोचा जाना चाहिये. वास्तव में फोकस सकारात्मक एजेंडा को लेकर होना चाहिये जिसमें विकासशील देशों को वित्त और आधुनिक प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण किया जाये.
जिससे कि वह सतत विकास में भागीदार बनकर आगे बढ सकें. जलवायु न्याय से यही तात्पर्य है कि विकासशील देशों को ऐसे संसाधनों को उपलब्ध कराना है जिससे वे विकास गतिविधियों को वहनीय बना सकें. स्वरुप ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर विस्तारपूर्वक बडा वक्तव्य दिसंबर में पेरिस में होने वाले जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में दिया जायेगा.