यरुशलम : इस्राइल ने प्रणब मुखर्जी के आगामी दौरे को ‘मील का ऐतिहासिक पत्थर’ करार देते हुए कहा है कि राष्ट्रपति का यहूदी देश का तीन दिवसीय दौरा दोनों देशों की मित्रता को और अधिक गहरा तथा उनके बीच द्विपक्षीय संबंधों और अधिक मजबूत करेगा. मुखर्जी 13 अक्तूबर से 15 अक्तूबर तक इस्राइल के दौरे पर रहेंगे. यह दौरा पश्चिम एशिया की उनकी छह दिवसीय यात्रा का हिस्सा है जिस दौरान वह जॉर्डन और फलस्तीनी प्राधिकरण भी जाएंगे. इस्राइल मुखर्जी का गर्मजोशी से स्वागत करने के लिए तैयार है. विभिन्न क्षेत्रीय और द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा करने के लिए इस्राइल के राष्ट्रपति रुवेन रिवलिन, प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू, नेसेट (संसद) के स्पीकर यूली एडेलस्टाइन और विपक्षी नेता इसाक हेरजोग उनसे मुलाकात करेंगे.
रिवलिन ने कहा ‘भारत के राष्ट्रपति का आगामी दौरा दोनों देशों के संबंधों में मील के महत्वपूर्ण पत्थर से कहीं ज्यादा मायने रखता है. यह दौरा हमारे देशों के बीच आर्थिक, विज्ञान, चिकित्सा और कृषि के क्षेत्रों में मित्रता को और अधिक गहरा करेगा.’ उन्होंने कहा ‘मैं उनसे मिलने के लिए उत्सुक हूं. यह मुलाकात इस्राइली और भारतीय जनता के बीच संबंधों की एक झलक दिखाएगी.’ दोनों देशों के बीच संबंधों की गर्मजोशी जाहिर करने वाले दुर्लभ संकेत के तौर पर मुखर्जी इस्राइली संसद ‘‘नेसेट” की विशेष बैठक को संबोधित करेंगे. इसके अलावा यरुशलम का प्रतिष्ठित हिब्रू विश्वविद्यालय उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान करेगा.
मुखर्जी का इस्राइल दौरा ऐसे समय पर हो रहा है जब क्षेत्र में इस्राइली सुरक्षा बलों और फलस्तीनियों के बीच एक बार फिर अशांति बढ गई है और तेल अवीव क्षेत्र के समीप स्थित, इस्राइल के केंद्रीय इलाके इसकी गिरफ्त में आ रहे हैं. राजग सरकार के सत्ता के आने के बाद पिछले साल न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान नेतन्याहू ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मुलाकात में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय सहयोग की संभावना को ‘असीमित’ बताया था. तब से स्थानीय मीडिया में भारत इस्राइल संबंध काफी चर्चा में रहे हैं. बताया जाता है कि दोनों नेता एक दूसरे के लगातार संपर्क में हैं और इस्राइली मीडिया ने हाल ही में यूएनएचआरसी में इस्राइल के खिलाफ प्रस्ताव पर मतदान के दौरान भारत की गैरमौजूदगी को दोनों नेताओं के बीच विकसित हो रहे बेहतर तालमेल का नतीजा बताया था.
जुलाई में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में एक प्रस्ताव पर मतदान में भारत ने हिस्सा नहीं लिया था. इस प्रस्ताव में उस रिपोर्ट का समर्थन किया गया था जिसमें वर्ष 2014 के दौरान हुए गाजा युद्ध के दौरान इस्राइल के आचरण की आलोचना की गयी थी. भारत के इस कदम से फलस्तीन ‘‘हतप्रभ” रह गया था और इस्राइल के लिए यह ‘‘अप्रत्याशित उपलब्धि” थी. बाद में भारत ने स्पष्ट किया था कि मतदान एक ‘‘सैद्धांतिक” रुख था, इससे भारत के मतदान संबंधी आचरण का पता नहीं चलता और इसे फलस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास ‘‘समझ गये तथा स्वीकार कर लिया.’