”विकासशील देशों को वैश्विक व्यवस्थाओं में अधिक प्रतिनिधित्व एवं भागीदारी मिले”

संयुक्त राष्ट्र : भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को ‘वैश्विक ताकत के अल्पाधिकार का सबसे असंगत उदाहरण’ बताते हुए कहा कि विकासशील देशों को प्रतिकूल अंतरराष्ट्रीय व्यवस्थाओं में ‘बहुत कम जगह’ मिली हुई है और वैश्विक शासन तंत्रों में उनके लिए ज्यादा प्रतिनिधित्व और भागीदारी होनी चाहिए. संयुक्त राष्ट्र में भारत के काउंसलर अमित […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 16, 2015 12:49 PM

संयुक्त राष्ट्र : भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को ‘वैश्विक ताकत के अल्पाधिकार का सबसे असंगत उदाहरण’ बताते हुए कहा कि विकासशील देशों को प्रतिकूल अंतरराष्ट्रीय व्यवस्थाओं में ‘बहुत कम जगह’ मिली हुई है और वैश्विक शासन तंत्रों में उनके लिए ज्यादा प्रतिनिधित्व और भागीदारी होनी चाहिए. संयुक्त राष्ट्र में भारत के काउंसलर अमित नारंग ने कल महासभा की सेकेंड कमिटी में ‘वैश्वीकरण और परस्पर निर्भरता’ विषय से जुडे एक सत्र में कहा, ‘यह सुनिश्चित करने के लिए कि दुनिया के सभी लोगों के सतत विकास के लिए वैश्वीकरण एक सकारात्मक शक्ति बना रहे, वैश्विक तंत्रों में प्रतिनिधित्व एवं भागीदारी के माध्यम से बहुपक्षवाद को बढावा देने की जरुरत है.’

उन्होंने कहा कि वैश्वीकृत दुनिया की मांग है ताकि वैश्विक शासन के अंतरराष्ट्रीय तंत्र समकालीन वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करें. नारंग ने कहा, ‘फिर भी विकासशील देशों को बहुत कम जगह देने वाली प्रतिकूल और अन्यायपूर्ण व्यवस्थाएं विकासशील देशों को वैश्वीकरण का पूरा फायदा उठाने से रोक रही हैं.’ उन्होंने कहा कि वैश्विक शासन में असमानता खुद में सतत विकास और वैश्वीकरण के कुशल प्रबंधन की राह में एक अवरोध है. नारंग ने कहा कि सुधार की जरुरत केवल सुरक्षा परिषद से जुडी नहीं है जो ‘वैश्विक शक्ति के अल्पाधिकर का सबसे असंगत उदाहरण है’ बल्कि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों सहित दूसरे संस्थानों में भी उतना ही वैध और जरुरी है, जहां वृद्धि संबंधी सबसे साधारण प्रस्ताव भी चयनात्मक विधायी जड़ता के तहत आगे नहीं बढ पा रहे.

उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय शासन तंत्रों पर करीब से ध्यान दिया जाना चाहिए और असमान शक्ति संरचनाओं और एकतरफा एवं पुराने मॉडलों में तत्काल सुधार की जरुरत है. नारंग ने कहा कि विकासशील देशों को वैश्विक तंत्रों में बराबरी का दर्जा देना समग्रता और कानून के नियमों की मांग है. उन्होंने साथ ही संस्कृतियों के परस्पर सम्मान की जरुरत पर भी जोर दिया जो सफल वैश्वीकरण का एक मूल आधार है. नारंग ने कहा, ‘भारतीय नजरिए से सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील रूख वह है जो भिन्नताओं को अपनाता है, विविधता को जगह देता है और परस्पर सम्मान को बढावा देता है.’

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