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UN सुरक्षा परिषद में तत्काल सुधार चाहता है भारत

संयुक्त राष्ट्र : भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में तत्काल सुधार की मांग करते हुए कहा है कि परिषद की मौजूदा बनावट पश्चिम एशिया में संघर्षों और आईएसआईएस के उभार समेत मौजूदा चुनौतियों से प्रभावशाली तरीके से निपटने में पूर्णतय: नाकाफी साबित हुई है. भारत से यहां आए सांसद मनसुख मंडाविया ने संयुक्त राष्ट्र […]

संयुक्त राष्ट्र : भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में तत्काल सुधार की मांग करते हुए कहा है कि परिषद की मौजूदा बनावट पश्चिम एशिया में संघर्षों और आईएसआईएस के उभार समेत मौजूदा चुनौतियों से प्रभावशाली तरीके से निपटने में पूर्णतय: नाकाफी साबित हुई है. भारत से यहां आए सांसद मनसुख मंडाविया ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर पर हस्ताक्षर किये जाने की 70वीं सालगिरह पर कल आयोजित समारोह में कहा, ‘संयुक्त राष्ट्र, मुख्य रूप से सुरक्षा परिषद की मौजूदा बनावट इन चुनौतियों से प्रभावशाली तरीके से निपटने में पूरी तरह से नाकाफी साबित हुई है. स्पष्ट रूप से, हम वह नहीं करते रह सकते जो हम अतीत में करते आये हैं.’ उन्होंने कहा कि शांति एवं सुरक्षा के लिए जिम्मेदार संयुक्त राष्ट्र के अहम अंग में व्यापक सुधार की तत्काल आवश्यकता है ताकि वह समकालीन भू-राजनीतिक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित कर सके.

मंडाविया ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र महासभा सुरक्षा परिषद में सुधार के लिए वार्ता के दस्तावेज को स्वीकार कर रही है, ऐसे में सदस्य देशों के पास अंतत: वार्ता करने के लिए एक दस्तावेज है. उन्होंने कहा, ‘यह आगे की ओर एक बडा कदम है लेकिन इसके बावजूद यह अब भी केवल पहला कदम है. हमें संयुक्त राष्ट्र महासभा के 70वें सत्र में ये वार्ताएं पूरी करने का लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए.’ मंडाविया ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र ने पिछले सात दशकों में शांतिपूर्ण माध्यमों के जरिए कई विवादों और संघर्षों के समाधान का समर्थन किया है लेकिन पिछले 70 वर्षों का रिकॉर्ड ऐसे उदाहरणों से भरा हुआ है जब संयुक्त राष्ट्र और शांति एवं सुरक्षा बनाए रखने के लिए जिम्मेदार इसका अहम अंग सुरक्षा परिषद, संघर्षों के मूक दर्शक बने रहे हैं. वे या तो कार्रवाई करने में सक्षम नहीं थे या इच्छुक नहीं थे.

उन्होंने कहा, ‘पश्चिम एशिया, उत्तरी अफ्रीका और यूरोप में संघर्षों और आईएसआईएस के उभार के कारण ऐसा शरणार्थी संकट पैदा हुआ है जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कभी नहीं देखा गया था. विश्व के कुछ हिस्सों में अत्यंत आर्थिक अभाव की स्थिति ने इस समस्या को और बढा दिया है.’ मंडाविया ने आतंकवाद का जिक्र करते हुए कहा कि यह समस्या वैश्विक बन गयी है लेकिन अंतरराष्ट्रीय समुदाय इसे रोकने के लिए एक वैश्विक प्रतिक्रिया देने में असमर्थ रहा है. उन्होंने कहा, ‘साइबर अपराध, महामारियों, कट्टरपंथी विचारधाराओं के प्रचार प्रसार और बढती असहिष्णुता की शक्ल में अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा को नये खतरे पैदा हो गये हैं.’ उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र शांतिरक्षा अभियानों के लिए शांतिरक्षा के मुख्य सिद्धांतों के प्रति दृढ प्रतिबद्धता की आवश्यकता है. निर्णय लेने की प्रक्रिया में अभियानों में भाग लेने वाले बलों में योगदान देने वाले देशों की बडी भूमिका होनी चाहिए.

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