जिनेवा : संयुक्त राष्ट्र ने ऑस्ट्रेलिया सरकार से सैकडों शरणार्थियों को नौरु न भेजने की अपील की है. वैश्विक संस्था की ओर से यह अपील ऐसे समय पर आई है जब अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इस बात पर चिंता जतायी है कि इन्हें नौरु भेजने से अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून का उल्लंघन होने का खतरा है. वहीं, ऑस्ट्रेलिया बाल शरणार्थियों को नौरु न भेजने के अंतरराष्ट्रीय दबाव के आगे झुकने से इंकार कर रहा है. ऑस्ट्रेलिया के एक मंत्री ने आज कहा कि यदि उन्हें देश में रुकने दिया जाता है तो इससे और अधिक शरणार्थी नावों को जरिए यहां आने के लिए प्रेरित होंगे.
ऑस्ट्रेलिया के तटों पर नौकाओं के जरिए पहुंचने की कोशिश करने वाले शरणार्थियों के रहने का प्रबंध छोटे प्रशांत देश नौरु में करने के लिए ऑस्ट्रेलिया इस देश को धन देता है. यह उसकी तीन वर्ष पुरानी नीति है. इस नीति को चुनौती दी गयी थी और हाईकोर्ट ने देश की कडी आव्रजन नीति को खारिज करने से इंकार करते हुए नीति के पक्ष में फैसला दिया. अदालत के फैसले से 267 शरणार्थियों पर नौरु भेजे जाने का खतरा मंडरा रहा है. ये वे लोग हैं, जो अपना या परिवार के किसी सदस्य का इलाज कराने के लिए नौरु से ऑस्ट्रेलिया आए हैं. इनमें वे महिलाएं भी शामिल हैं, जिनका वहां कथित तौर पर यौन उत्पीडन किया गया था.
संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार एजेंसी के प्रवक्ता रुपर्ट कोलविले ने कहा, ‘हमारा मानना है कि इन 267 लोगों को स्थानांतरित करने से ऑस्ट्रेलिया उत्पीडन के खिलाफ समझौते के तहत किये गये अपने उस वादे का उल्लंघन कर सकता है, जिसके अनुसार, किसी भी व्यक्ति को क्रूर, अमानवीय या बुरे बर्ताव वाली स्थिति में नहीं लौटाया जाना चाहिए.’ उन्होंने कहा कि बच्चों को नौरु भेजने से बाल अधिकार समझौते के तहत ऑस्ट्रेलिया के वादों का उल्लंघन हो सकता है.
वहीं, ऑस्ट्रेलिया के आव्रजन मंत्री पीटर डटन ने आज कहा कि एक बार उपचार पूरा हो जाने के बाद बच्चों समेत सभी शरणार्थियों को वापस नौरु भेज दिया जाएगा. सरकार ने इस सप्ताह कहा था कि वह एक डॉक्टर की इस रिपोर्ट पर गौर कर रही है, जिसमें कहा गया था कि इस समय ऑस्ट्रेलिया में मौजूद पांच साल के एक लडके के साथ नौरु में दुष्कर्म किया गया था. कैनबरा की कठिन आव्रजन नीति के तहत, नावों के जरिए ऑस्ट्रेलिया पहुंचकर शरण चाहने वालों को या तो लौटाया जा सकता है या फिर उन्हें नौरु या पापुआ न्यू गिनी स्थित शिविरों में भेजा जा सकता है.
इस नीति के तहत, शरणार्थियों को ऑस्ट्रेलिया में बसने से रोका जा सकता है. हाईकोर्ट में यह मामला एक बांग्लादेशी महिला ने उठाया था, जो एक गैर कानूनी नौका पर सवार होकर आई थी और उसे नौरु भेज दिया गया था. इसके बाद गर्भवती होने पर उसे आपात उपचार के लिए ऑस्ट्रेलिया लाया गया था. एमनेस्टी इंटरनेशनल, यूनिसेफ और शरणार्थियों के वकीलों ने शरणार्थियों को नौरु लौटाए जाने की संभावना पर चिंता जतायी थी क्योंकि वहां शरणार्थियों के बलात्कार समेत विभिन्न उत्पीडनों के आरोपों की संख्या में इजाफा हुआ है.