हमारे ‘मिल्की वे” के पीछे छिपी हैं सैकड़ों आकाशगंगा

मेलबर्न : वैज्ञानिकों ने पृथ्वी से महज 25 करोड़ प्रकाश वर्ष दूर ऐसी सैकड़ों आकाशगंगाओं की खोज की है जो अब तक हमारी आकाशगंगा के ‘मिल्की वे’ के पीछे छिपी हुई थीं. इस खोज से ‘ग्रेट अट्रैक्टर’ के तौर पर जानी जाने वाली रहस्यमयी गुरुत्वाकर्षणीय अनियमितता और लाखों अरबों सूर्य के बराबर गुरुत्वाकर्षणीय बल वाले […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 10, 2016 3:13 PM

मेलबर्न : वैज्ञानिकों ने पृथ्वी से महज 25 करोड़ प्रकाश वर्ष दूर ऐसी सैकड़ों आकाशगंगाओं की खोज की है जो अब तक हमारी आकाशगंगा के ‘मिल्की वे’ के पीछे छिपी हुई थीं. इस खोज से ‘ग्रेट अट्रैक्टर’ के तौर पर जानी जाने वाली रहस्यमयी गुरुत्वाकर्षणीय अनियमितता और लाखों अरबों सूर्य के बराबर गुरुत्वाकर्षणीय बल वाले सैकडों हजारों अन्य आकाशगंगाओं को जानने में मदद मिलेगी.

ऑस्ट्रेलिया में ‘कॉमनवेल्थ साइंटिफिक एंड इंडस्टरीयल रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन’ (सीएसआईआरओ) के एक उन्नत रिसीवर से लैस पार्क्स रेडियो टेलीस्कोप की मदद से वैज्ञानिक तारों और मिल्की वे के गुबार के पार भी देखने में सक्षम रहे.‘इंटरनेशनल सेंटर फॉर रेडियो एस्ट्रोनॉमी रिसर्च’ (आईसीआरएआर) के केंद्र ‘यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया’ के प्रोफेसर लिस्टर स्टेवली-स्मिथ के मुताबिक, टीम ने 883 आकाशगंगाओं का पता लगाया जिसकी एक तिहाई को इससे पहले कभी नहीं देखा गया था.
स्टेवली-स्मिथ ने बताया कि वैज्ञानिक 1970 और 1980 के दशक में ब्रह्मांड विस्तार के कारण हुए प्रमुख विचलन के बाद से रहस्यमयी ‘ग्रेट अट्रैक्टर’ की तह तक पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं.उन्होंने बताया, ‘‘वास्तव में हमलोग अब तक यह समझ नहीं पाये हैं कि आकाशगंगा पर गुरुत्वाकर्षण में वृद्धि का कारण क्या है या यह कहां से आता है.’

उन्होंने बताया, ‘‘हमें मालूम है कि इस क्षेत्र में आकाशगंगाओं के कुछ बहुत बड़े समूह हैं जिन्हें हम झुंड या महाझुंड कह सकते हैं और हमारी पूरी आकाशगंगा 20 लाख किलोमीटर प्रति घंटा से अधिक की गति से उनके ईद गिर्द घूम रही है.’ इस शोध से कई नई संरचनाओं का पता चला, जिससे सम्मिलित रुप से तीन आकाशगंगाओं (एनडब्ल्यू1, एनडब्ल्यू2 और एनडब्ल्यू3) और दो नये झुंडों (सीडब्ल्यू1 और सीडब्ल्यू2) सहित ‘मिल्की वे’ की गतिविधि के बारे में पता लगाने में मदद मिलेगी.

अंतरिक्षविज्ञानी दशकों से ‘मिल्की वे’ के पीछे छिपे आकाशगंगा के विस्तार का मानचित्रीकरण करने की कोशिश कर रहे हैं.
दक्षिण अफ्रीका में यूनिवर्सिटी ऑफ केप टाउन में प्रोफेसर रेनी क्रान-कोर्टवेग ने बताया, ‘‘हमने कई तकनीक का इस्तेमाल किया है, लेकिन केवल रेडियो अवलोकन से ही हम अपने मिल्की वे के गुबारों और तारों की मोटी परत के आगे देखने में सफल हो पाए.’ उन्होंने बताया, ‘‘अमूमन एक औसत आकाशगंगा में 100 अरब तारे होते हैं, इसलिए ‘मिल्की वे’ के पीछे छिपे सैकडों नयी आकाशगंगाओं का पता लगना उन पुंजों की ओर इशारा करता है जिनका अब तक पता नहीं चल पाया है.’ यह अध्ययन ‘एस्ट्रोनोमिकल’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ था.

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