बांग्लादेश की शीर्ष अदालत ने जमात के नेता का मृत्युदंड रखा बरकरार

ढाका : बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ देश के मुक्ति संग्राम के दौरान युद्ध अपराधों को अंजाम देने के मामले में एक शीर्ष इस्लामी नेता की मौत की सजा आज बरकरार रखी और इसके साथ ही दोषी नेता को दी गयी सजा की तामील का रास्ता साफ हो गया है. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 8, 2016 1:16 PM

ढाका : बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ देश के मुक्ति संग्राम के दौरान युद्ध अपराधों को अंजाम देने के मामले में एक शीर्ष इस्लामी नेता की मौत की सजा आज बरकरार रखी और इसके साथ ही दोषी नेता को दी गयी सजा की तामील का रास्ता साफ हो गया है. प्रधान न्यायाधीश सुरेंद्र कुमार सिन्हा ने जमात-ए-इस्लामी के प्रमुख नेता एवं मीडिया क्षेत्र के दिग्गज मीर कासिम अली की याचिका खारिज करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले की घोषणा की. मीर कासिम अली को बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम में हत्या और अपहरण करने का दोषी ठहराया गया है.

सिन्हा ने अदालत कक्ष में मौजूद लोगों की भीड के बीच घोषणा की, ‘सजा (मृत्युदंड) बरकरार रखी गयी है.’ शीर्ष न्यायालय के पांच सदस्यों की पीठ ने यह फैसला सुनाया है. देश के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ने 63 वर्षीय अली को 16 महीने पहले मौत की सजा सुनायी थी. अली ने इस फैसले को चुनौती दी थी. अली को कई लोगों की हत्या करने वाले मिलिशिया यातना सेल अल बद्र का संचालन करने का दोषी ठहराया गया है. न्यायालय ने उसके खिलाफ अधिकतर आरोप सही पाए हैं.

बांग्लादेश को 1971 में मिली स्वतंत्रता का विरोध करने वाली पार्टी जमात की नीति की तर्ज पर पाकिस्तानी सैन्य बलों के समर्थन में हत्या करने और यातना देने के मामले में अली के खिलाफ लगे आरोप भी सही पाये गये. अली 2012 में गिरफ्तार किये जाने से पहले जमात के साथ गठबंधन वाले मीडिया कॉरपोरेशन का प्रमुख था. वह जमात ए इस्लामी प्रमुख मतीउर रहमान निजामी और महासचिव अली एहसान मोहम्मद मुजाहिद के बाद अल बद्र का तीसरा सबसे महत्वपूर्ण कार्यकर्ता था.

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि उसकी वित्तीय मदद ने जमात को स्वतंत्र बांग्लादेश में अपने पैर मजबूती से जमाने में मदद की. आधिकारिक आंकडों के अनुसार 1971 के मुक्ति संग्राम में पाकिस्तानी सेना और बांग्ला बोलने वाले उसके सहयोगियों ने 30 लाख लोगों की हत्या की थी. यदि न्यायालय अली के मामले की समीक्षा नहीं करता है या राष्ट्रपति उसकी सजा माफ नहीं करते हैं तो उसे कुछ महीनों के भीतर फांसी दी जा सकती है. युद्ध अपराधों के मामले में दिसंबर 2013 से जमात के तीन वरिष्ठ अधिकारियों और मुख्य विपक्षी दल के एक नेता को मृत्युदंड दिया जा चुका है.

Next Article

Exit mobile version