वाशिंगटन : भारत में ‘लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल वेब आब्जर्वेटरी’ (लीगो) स्थापित करने के लिए भारत और अमेरिका ने आज एक सहमतिपत्र (एमओयू) पर हस्ताक्षर किये जो भूगर्भीय तरंग खगोल विज्ञान के विभिन्न पहलुओं पर अग्रिम अनुसंधान को आगे बढाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. यह एमओयू केंद्रीय कैबिनेट द्वारा लंबे समय से प्रतीक्षित तीसरे लीगो इंटरफेरोमीटर निर्माण को मंजूरी दिये जाने के करीब एक महीने बाद हुआ है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और लीगो वैज्ञानिकों की यहां मौजूदगी में परमाणु ऊर्जा विभाग के सचिव शेखर बसु और अमेरिका के नेशनल साइंस फाउंडेशन (एनएसएफ) निदेशक फ्रांस कार्डोवा ने एमओयू पर हस्ताक्षर किये. लंबे समय से प्रतीक्षित तीसरे लीगो इंटरफेरोमीटर के निर्माण से गुरुत्वाकर्षण तरंगों के स्रोतों का सटीक पता लगाने और संकेतों के विश्लेषण करने के वैज्ञानिकों की क्षमता में महत्वपूर्ण सुधार होगा। उम्मीद है कि ये 2023 तक काम करने लगेगा.
परमाणु सुरक्षा सम्मेलन में शामिल हुए नरेंद्र मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिवसीय परमाणु सुरक्षा सम्मेलन (एनएसएस) में हिस्सा लेने के लिए अमेरिका में हैं. मोदी ने लीगो से जुडे वैज्ञानिकों से मुलाकात की जिन्होंने हाल में गुरुत्वाकर्षण तरंग सिद्धांत सिद्ध किया. मोदी ने इसके साथ उन भारतीय छात्र वैज्ञानिकों से भी बातचीत की जो लीगो परियोजना का हिस्सा हैं.
प्रधानमंत्री मोदी परमाणु सुरक्षा सम्मेलन में हिस्सा लेने यहां आए हैं जिसमें करीब 50 देशों के शीर्ष नेता परमाणु हथियारों और सामग्री के खतरे के आकलन और इस बारे में विचार साझा करेंगे. उल्लेखनीय है कि केंद्रीय कैबिनेट ने पिछले महीने भारत में तीसरे लीगो इंटरफेरोमीटर निर्माण को मंजूरी प्रदान की थी. इस परियोजना से वैज्ञानिकों एवं इंजीनियरों को भूगर्भीय तरंग के क्षेत्र में गहराई से शोध करने का अवसर मिल सकेगा और खगोल विज्ञान के नये आयाम के क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व को आगे बढाने में मदद मिलेगी.
भारतीय वैज्ञानिकों को मिलेगा प्रशिक्षण और कलपूर्जे
अमेरिका में दो लीगो वेधशालाएं हैं जो हैनफोर्ड, वाशिंगटन और लिविंग्सटन, लूसियाना में हैं. इनकी स्थापना अमेरिकी नेशनल साइंस फाउंडेशन ने की है. इसकी कल्पना, निर्माण एवं संचालन कैल्टेक एवं एमआईटी द्वारा किया जाता है. एक प्रेस बयान में कहा गया है कि लीगो भारतीय अनुसंधानकर्ताओं को पुर्जे और प्रशिक्षण मुहैया कराएगा ताकि वे एक नया उन्नत लीगो डिटेक्टर का निर्माण एवं उसका संचालन कर सकें, जिसका बाद में संचालन भारतीय टीम द्वारा किया जाएगा.
प्रधानमंत्री मोदी ने लीगो परियोजना को भारत अमेरिकी वैज्ञानिक सहयोग का एक बेहतरीन उदाहरण बताया और कहा कि इस परियोजना की सफलता से भारतीय वैज्ञानिकों की एक पूरी युवा पीढी को प्रेरणा मिल सकती है. उन्होंने लीगो परियोजना से जुडे भारतीय वैज्ञानिकों से अपील की कि वे जहां तक संभव हो भारतीय विश्वविद्यालयों की यात्रा करें और भारतीय छात्रों के साथ विचार विमर्श करें.
इस परियोजना के लिए कैबिनेट ने मंजूर किये हैं 1200 करोड़ रुपये
नरेंद्र मोदी ने कहा कि कैबिनेट ने पहले ही इस परियोजना के लिए 1200 करोड डालर की मंजूरी दी है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरुप ने कहा, ‘अब जबकि भारत ने इस परियोजना का हिस्सा बनने का निर्णय कर लिया है, संभावना है कि भारत लीगो परियोजना का केंद्र होगा, आंशिक रूप से इस कारण से कि भूगोल हमारे अनुकूल है.’
उन्होंने कहा, ‘उम्मीद है कि ये अगले पांच से सात वर्षों में आएगा.’ कोर्डोवा ने बताया कि भारत किस तरह से लीगो परियोजना के भविष्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है. उन्होंने कहा, ‘हमें इस प्रयास में अपने भारतीय सहयोगियों के साथ नजदीकी तौर पर काम करने का बेसब्री से इंतजार है ताकि हम ब्रह्मांड में अत्यंत ऊर्जावान घटना के बारे में अपना ज्ञान और बढा सकें.’
भारतीय छात्रों ने बताया बेहतरीन पहल
मोदी से मुलाकात करने वाले परियोजना से जुडे दो भारतीय छात्रों में से एक बोस्टन की नैंसी अग्रवाल ने कहा कि प्रधानमंत्री परियोजना के बारे में सुनने को काफी उत्सुक थे. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री की रुचि इस बात में भी थी कि यह परियोजना किस प्रकार देश में विज्ञान एवं विज्ञान शिक्षा को बढावा देने में मददगार साबित हो सकती है. एमआईटी, बोस्टन की शोध छात्रा नैंसी ने कहा कि चर्चा के दौरान मोदी ने कहा कि भारत और अमेरिका का मिलकर काम करना काफी अच्छा होगा और इससे भारतीय तकनीशियनों की नई पीढी तैयार करने में मदद मिलेगी.
उन्होंने कहा कि लीगो इंडिया से भारत में अवसरों की संभावना में खासी वृद्धि हो सकती है. जार्जिया इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी के भारतीय शोध छात्र करण पी जानी ने अपने जवाब से प्रधानमंत्री को प्रभावित किया. मोदी ने उनसे सवाल किया था कि अल्बर्ट आइंस्टीन अपनी खोज को लेकर इतने आश्वस्त क्यों थे जबकि ऐसा कोई आधुनिक वैज्ञानिक उपकरण उपलब्ध नहीं था. जानी ने उत्तर दिया कि इसका कारण यह था कि आइंस्टीन जिज्ञासु और आत्मविश्वासी थे और वह गणित में मजबूत थे. स्वरुप के अनुसार प्रधानमंत्री ने कहा कि यह गुजराती तरह का जवाब है.