इतालवी मरीन मामला : अरुण जेटली ने कहा, सरकार के रूख में नहीं होगा कोई बदलाव

रोम/नयी दिल्ली :यूएन कोर्ट के इटली के नौसैनिकों को छोड़ने के फैसले के बाद सरकार ने लोकसभा में आज अपना रूख स्पष्ट किया. सरकार ने कहा कि इटली के मरीन को प्रक्रिया पूरी होने तक नहीं छोड़ा जा सकता है. लोकसभा में अरुण जेटली ने अपने बयान में कहा कि यह मामला भारत के प्राधिकार […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 3, 2016 9:10 AM

रोम/नयी दिल्ली :यूएन कोर्ट के इटली के नौसैनिकों को छोड़ने के फैसले के बाद सरकार ने लोकसभा में आज अपना रूख स्पष्ट किया. सरकार ने कहा कि इटली के मरीन को प्रक्रिया पूरी होने तक नहीं छोड़ा जा सकता है. लोकसभा में अरुण जेटली ने अपने बयान में कहा कि यह मामला भारत के प्राधिकार में है और हमारे रूख में कोई बदलाव नहीं होगा. एक राष्ट्र के तौर पर हम अंतर्राष्ट्रीय कानून का सम्मान करते है और इस मामले पर अपना पक्ष मध्यस्तथता अधिकरण के समक्ष रखेंगे.

संयुक्त राष्ट्र के एक मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने दो भारतीय मछुआरों की हत्या के आरोपी एक इतालवी मरीन के पक्ष में फैसला देते हुए उसे मध्यस्थता की कार्यवाही लंबित रहने तक भारत से स्वदेश लौटने की इजाजत दे दी है. सल्वातोर गिरोन और मस्सीमिलियानो लातोर वे दो इतालवी मरीन हैं जिन्होंने 2012 में करेल के तट से दूर दो भारतीय मछुआरों की कथित तौर पर हत्या कर दी थी. लातोर 2014 में इटली वापस आ गया था, जबकि गिरोन नयी दिल्ली स्थित भारतीय दूतावास में है. दोनों देशों ने संयुक्त राष्ट्र अदालत की ओर से मध्यस्थता पर सहमति जतायी है. रोम से मिली खबरों के अनुसार संयुक्त राष्ट्र न्यायाधिकरण ने फैसला दिया है कि मध्यस्थता की कार्यवाही लंबित रहने तक गिरोन को स्वदेश लौटने की इजाजत दी जा सकती है.

भारत ने कहा, ऐसा कोई फैसला नहीं आया

भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरुप ने एक बयान में कहा कि मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने सर्वसम्मति से यह कहा है कि भारत और इटली गिरोन की जमानत की शर्तों में ढील देने के लिए भारत के उच्चतम न्यायालय का रुख कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि न्यायाधिकरण ने गिरोन की जमानत की शर्तें तय करना उच्चतम न्यायालय पर छोड दिया है और यह कहा कि मध्यस्थता का मामला लंबित रहने तक मरीन इटली लौट सकता है, हालांकि वह भारत की सबसे बडी अदालत के प्राधिकार के अंतर्गत बना रहेगा. न्यायाधिकरण के फैसले को कल सार्वजनिक किया जा सकता है. बहरहाल, नयी दिल्ली में सूत्रों ने उन खबरों से इंकार किया कि मरीन को मुक्त किए जाने का आदेश आया है. सूत्रों ने कहा कि इटली उस आदेश को ‘गलत ढंग से पेश कर रहा है’ जिसमें इस मामले पर भारतीय उच्चतम न्यायालय के प्राधिकार पर जोर दिया गया है.

भारतीय सुप्रीम कोर्ट करेगा अंतिम फैसला

भारत तक पहुंचने वाली सूचना में कहा गया है, ‘भारत और इटली से कहा गया है कि वे गिरोन के लिए जमानत की शर्तों में राहत देने को लेकर उच्चतम न्यायालय का रुख करें. उसकी संभावित वापसी पूरी तरह से इटली की इस गारंटी की शर्त पर निर्भर है कि जरुरत पडने पर उसे भारत वापस आने दिया जाएगा.’ इतालवी विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया है, ‘विदेश मंत्रालय सूचित करता है कि हेग में स्थापित मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने अपने उस फैसले को लेकर आशा प्रकट की कि सरकार की ओर से 26 जून, 2015 से शुरू की गई मध्यस्थता की प्रक्रिया के पूरा होने तक गिरोन रायफलमैन को (इटली वापस आने की) इजाजत दी जाएगी. वापसी की शर्तों को लेकर इटली और भारत के बीच सहमति बनेगी.’

मानवाधिकार का हवाला

इटली ने मार्च महीने में संयुक्त राष्ट्र मध्यस्थता अदालत (पीसीए) के न्यायाधीशों से कहा था गिरोन को रिहा करने के लिए भारत को आदेश दिया जाए और साथ ही उसने यह भी कहा था कि अगर गिरोन को रिहा नहीं किया जाता तो उसे बिना किसी आरोप के चार वर्षों तक भारत में रहना पड सकता है जो ‘मानवाधिकार का घोर उल्लंघन होगा.’ पीसीए दोनों पक्षों की मौखिक दलीलें सुन रहा है. गिरोन घटना के बाद से कुछ संक्षिप्त राहत के अलावा भारत से आ नहीं सका है. दूसरा मरीन मस्सीमिलियानो लातोर 2014 में इटली वापस आ गया था. इतालवी समाचार एजेंसी अनसा के अनुसार इटली के प्रधानमंत्री मातेओ रेंजी ने कहा कि वह ‘भारत के महान लोगों और भारतीय प्रधानमंत्री (नरेंद्र मोदी) तक मित्रता एवं सहयोग का संदेश भेज रहे हैं.’ उन्होंने कहा, ‘हम हमेशा सहयोग करने के लिए तैयार हैं.’

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