भारत ने संयुक्त राष्ट्र से कहा, आतंकवादियों से निबटने के लिए सोशल मीडिया पर निगरानी जरुरी

संयुक्त राष्ट्र : भारत ने कहा है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की जरुरी सुरक्षा के साथ सोशल मीडिया पर सावधानी से निगरानी की जरुरत है क्योंकि आतंकवादी समूह अपने उग्रवादी मंसूबों को पूरा करने के लिए ऐसे मंचों का उपयोग युवाओं को आकर्षित करने के लिए कर रहे हैं.संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई प्रतिनिधि […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 12, 2016 3:57 PM

संयुक्त राष्ट्र : भारत ने कहा है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की जरुरी सुरक्षा के साथ सोशल मीडिया पर सावधानी से निगरानी की जरुरत है क्योंकि आतंकवादी समूह अपने उग्रवादी मंसूबों को पूरा करने के लिए ऐसे मंचों का उपयोग युवाओं को आकर्षित करने के लिए कर रहे हैं.संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने ऐसे मंचों पर ‘‘नफरत के लक्षित प्रचार’ पर भी चिंता जताई.

अकबरुद्दीन ने ‘‘आतंकवाद के विमर्शों और विचारधाराओं का निरोध’ पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की खुली चर्चा में कहा कि आतंकवादी समूहों के हाथों सोशल मीडिया के दुरुपयोग के मद्देनजर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की जरुरी सुरक्षा के साथ सोशल मीडिया पर सावधानी से निगरानी की जरुरत है. उन्होंने कहा, ‘‘लोगों को एक साथ लाने के लिए बनाए गए सोशल मीडिया के फैलते नेटवर्कों पर नफरत के लक्षित प्रचार से मदद पा कर महाद्वीपों के विकासशील और विकसित देशों में एक समान आतंकवाद के हाइड्रा जैसे राक्षस का फैलाव जारी है.’

अकबरुद्दीन ने कहा आईएसआईएस में विदेशी आतंकवादी लडाके शामिल हो रहे हैं जिनमें से ज्यादातर 15 से 25 साल के युवक हैं जो व्यापक विविधता वाले जातीय समूहों और आर्थिक श्रेणियों से आते हैं और इसका फैलाव इसके ‘‘पुश ऐंड पुल फैक्टर’ की जबरदस्त जटिलता का प्रतीक है. ‘पुश फैक्टर’ में जंग, अकाल, राजनीति असहिष्णुता और चरमपंथी धार्मिक गतिविधियां जैसे कारक शामिल होते हैं जिसके चलते कोई उस जगह से विस्थापित होता है. ‘पुल फैक्टर’ में बेहतर आर्थिक अवसर, ज्यादा रोजगार, बेहतर जीवन की आशा जैसे कारक हैं जो लोगों को आकर्षित करते हैं.
अकबरुद्दीन ने कहा, ‘‘युवाओं को चरमपंथ में दीक्षित होने से केवल तभी बचाया जा सकता है जब वे मुख्यधारा के सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक परिवेश से अपना जुडाव विकसित कर सकें . चरमपंथ के रास्ते से लौटे लोगों की दीर्घकालीन देख-भाल भी आतंकवाद के संभावित रंगरुटों को यह एहसास दिलाने के लिए एक अहम पहलू है कि उनके लिए विकल्प उपलब्ध हैं.’ सुरक्षा परिषद ने एक अध्यक्षीय वक्तव्य में रेखांकित किया कि आईएसआईएस और अल-कायदा जैसे आतंकवादी समूहों ने हिंसा का औचित्य जताने के लिए धर्म की गलत परिभाषा और गलत प्रस्तुति पर आधारित विकृत विमर्श तैयार किए.
अफगानिस्तान के स्थाई प्रतिनिधि नजीफुल्ला सालारजई ने वस्तुत: पाकिस्तान का जिक्र करते हुए 1994 में तालिबान के गठन के लिए आरोप लगाया. सालारजई ने पाकिस्तान का नाम नहीं लिया लेकिन उसकी तीखी आलोचना करते हुए कहा कि अल-कायदा, अल-शबाब, बोको हरम और आईएसआईएस से पहले तालिबान आया और उसको समर्थन प्रदान करने वालों ने महिलाओं को संगसार करने, लडकियों के स्कूल बंद करने और आत्मघाती हमले करने समेत इस तरह के आतंकवादी काम किए.

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