भारत और चीन को उचित तरीके से मतभेद सुलझाने चाहिए: शी

बीजिंग : चीनी नेताओं ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के साथ बैठकों में कहा कि भारत और चीन को अपने मतभेदों को उचित तरीके से सुलझाना चाहिए और शीर्ष नेताओं की रणनीतिक वार्ताओं के जरिए राजनीतिक भरोसे को मजबूत करना चाहिए. सरकारी संवाद समिति शिंहुआ ने कल यहां बताया कि चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 27, 2016 4:26 PM

बीजिंग : चीनी नेताओं ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के साथ बैठकों में कहा कि भारत और चीन को अपने मतभेदों को उचित तरीके से सुलझाना चाहिए और शीर्ष नेताओं की रणनीतिक वार्ताओं के जरिए राजनीतिक भरोसे को मजबूत करना चाहिए.

सरकारी संवाद समिति शिंहुआ ने कल यहां बताया कि चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने मुखर्जी के साथ बैठक में कल कहा, ‘‘दोनों पक्षों को आपसी मतभेदों से उचित तरीके से निपटना चाहिए.’ शी ने मुखर्जी को ‘‘अनुभवी राजनेता’ और ‘‘चीन का एक पुराना मित्र’ बताते हुए भारत के साथ रणनीतिक एवं सहकारी भागीदारी बढाने का संकल्प लिया और प्रस्ताव पेश किया कि दोनों पक्ष देश के नेताओं के बीच सामरिक संवाद स्थापित करके और द्विपक्षीय वार्ता के विभिन्न तंत्रों का उपयोग करके राजनीतिक भरोसे को मजबूत करें.
चीन के प्रधानमंत्री ली क्विंग ने मुखर्जी के साथ बैठक में कहा कि दोनों देशों के विकास ने एक दूसरे के लिए अवसर पैदा किए हैं. शिंहुआ ने कहा कि ली ने सुझाव दिया कि दोनों पक्ष चीन की ‘मेड इन चाइना 2025′ की मुहिम एवं ‘इंटरनेट प्लस’ की पहल को भारत की ‘मेक इन इंडिया’ एवं ‘डिजिटल इंडिया’ मुहिमों के साथ जोडें.
ली ने कहा कि चीन और भारत के बीच सहयोग एवं विकास से एक तिहाई वैश्विक जनसंख्या को ही लाभ नहीं होगा बल्कि वैश्विक स्तर पर आर्थिक सुधार एवं विकास में भी मदद मिलेगी. मुखर्जी की चीन की चार दिवसीय यात्रा स्टेट काउंसर यांग जिएची के साथ बैठक के बाद आज समाप्त हो गई. यांग भारत के साथ सीमा संबंधी वार्ताओं के लिए चीन के विशेष प्रतिनिधि भी हैं.विदेश मंत्रालय के एशिया विभाग के महानिदेशक शिओ कियान ने मुखर्जी-शी की वार्ता के बारे में मीडिया को जानकारी देते हुए कहा कि दोनों नेताओं ने हर प्रयास के जरिए मतभेदों को सुलझाने की दिशा में काम करने पर सहमति जताई लेकिन साथ ही व्यावहारिक दृष्टिकोण रखने की बात की.
उन्होंने कल कहा, ‘‘इसका अर्थ यह हुआ कि वे बहुत कम समय में नहीं सुलझाए जा सकने वाले मामलों से इस तरीके से निपटेंगे जिससे ये मतभेद हमारे विकास एवं सहयोग के रास्ते में नहीं आएं.’ शिओ ने कहा कि दोनों नेताओं ने विशेष प्रतिनिधियों के खाके के तहत सीमा वार्ताओं को और आगे ले जाने पर भी सहमति जताई ताकि सीमा क्षेत्र की शांति बनाई रखी जा सके.
उन्होंने कहा कि सीमा विवाद ‘‘इतिहास से विरासत में मिला प्रश्न है. हमने हमारे विशेष प्रतिनिधियों के तंत्र के खाके में सीमा वार्ताओं को आगे बढाने पर सहमति जताई है लेकिन सीमा संबंधी प्रश्न से अंतिम रुप से निपटने से पहले हम सीमा क्षेत्र में शांति बनाए रखने के लिए कदम उठाएंगे.’ शिंहुआ के अनुसार शी ने हालिया वर्षों में द्विपक्षीय संबंधों में हुए विकास की प्रशंसा करते हुए मुखर्जी से कहा कि दोनों पक्षों को दोनों देशों के लोगों के हित एवं भारत-चीन संबंधों को मजबूत करने के लिए पडोसियों के बीच मित्रता एवं परस्पर सहयोग की राह पर चलना चाहिए.
उन्होंने रेलवे, औद्योगिक पार्क, स्मार्ट सिटी, नव उर्जा, पर्यावरणीय सुरक्षा, सूचना प्रौद्योगिकी, मानव संसाधन, औद्योगिक क्षमता, निवेश, पर्यटन एवं सेवाओं के क्षेत्र में भारत और चीन के बीच व्यावहारिक सहयोग की क्षमताओं का दोहन करने का भी प्रस्ताव रखा. चीन के राष्ट्रपति ने दोनों देशों लोगों के बीच लोगों के आपसी संबंधों एवं सांस्कृतिक संबंधों को और मजबूत बनाने के साथ साथ कानून प्रवर्तन एवं सुरक्षा सहयोग को बढाने की इच्छा व्यक्त की.
चाइनीज एसोसिएशन फॉर साउथ एशियन स्टडीज के निदेशक सुन शिहाई ने मुखर्जी की यात्रा पर टिप्पणी करते हुए कहा कि भारतीय राष्ट्रपति की यात्रा से पहले शी ने 2014 में भारत की यात्रा की थी और मुखर्जी की यह यात्रा इस बात का संकेत देती प्रतीत होती है कि दोनों देश उच्च स्तरीय वार्ताओं की लय बनाए रखने के इच्छुक हैं. चाइना इंस्टीट्यूट ऑफ कंटेम्पररी इंटरनेशनल रिलेशंस में साउथ एशियन स्टडीज के एक विद्वान फु शिओकिआंग ने सरकारी समाचार पत्र ‘चाइना डेली’ से कहा कि मुखर्जी को चीन की अच्छी समझ है. उन्होंने विभिन्न पदों पर रहते हुए कई बार चीन की यात्रा की है. ये अनुभव उन्हें चीनी नेताओं के साथ बेहतर तरीके से जुडने में मदद करेंगे.
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सितंबर में जी20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने की संभावना है जिसके बाद गोवा में ब्रिक्स सम्मेलन होगा जिसमें शी संभवत: शामिल होंगे. फु ने कहा, ‘‘दोनों देशों के नेताओं की इस वर्ष की यात्राएं द्विपक्षीय राजनीतिक भरोसे को मजबूत करने, आर्थिक संबंधों को मजबूत करने और लोगों के बीच आदान प्रदान बढाने में मदद करेंगी .’

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