यूएनएससी की प्रतिबंध प्रणाली की ‘गोपनीय दुनिया” में सुधार हो : भारत

संयुक्त राष्ट्र : भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की प्रतिबंध प्रणाली की ‘गोपनीय दुनिया’ में सुधार की मांग की है. भारत ने इसकी कार्यप्रणाली में पारदर्शिता के अभाव की आलोचना करते हुए कहा है कि इसके ‘अज्ञात और एकमतता’ वाले नियमों के कारण इसके सदस्य जवाबदेही से बच जाते हैं. संरा में भारत […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 20, 2016 1:47 PM

संयुक्त राष्ट्र : भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की प्रतिबंध प्रणाली की ‘गोपनीय दुनिया’ में सुधार की मांग की है. भारत ने इसकी कार्यप्रणाली में पारदर्शिता के अभाव की आलोचना करते हुए कहा है कि इसके ‘अज्ञात और एकमतता’ वाले नियमों के कारण इसके सदस्य जवाबदेही से बच जाते हैं.

संरा में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने ‘कामकाजी प्रणालियों’ पर सुरक्षा परिषद के सत्र में कहा कि, ‘परिषद के सहायक संगठनों की गोपनीय दुनिया में जो प्रक्रियाएं अपनाई जाती हैं उनमें बदलाव की जरुरत है. गोपनीय दुनिया से मेरा आशय उन 26 प्रतिबंध प्रणालियों से है जो परिषद की ओर से कार्य करती हैं.’

उन्होंने कहा कि ये 26 प्रतिबंध प्रणालियां प्रति वर्ष संयुक्त रुप से 1,000 फैसले लेती हैं लेकिन ऐसा शायद ही कभी होता है कि बैठक के बाद इन संगठनों के प्रमुखों की ओर से सदस्य राष्ट्रों या मीडिया को उनकी कार्रवाई के बारे में जानकारी दी जाती हो.

उन्होंने सवाल उठाया कि इस गोपनीय दुनिया में पारदर्शिता लाने के प्रयास क्यों नहीं किए जाते हैं जबकि औपचारिक बैठकों या अनौपचारिक परामर्श के मुकाबले कहीं अधिक फैसले इनमें लिए जाते हैं.

उन्होंने इस बात पर खेद व्यक्त किया कि परिषद की प्रतिबंध प्रणाली में इस बारे में कोई सफाई नहीं दी जाती है कि सदस्यों ने किस प्रकार मतदान किया है और उनकी स्थिति क्या है.

उन्होंने कल कहा, ‘ऐसा क्यों होता है कि गोपनीय दुनिया के सकारात्मक फैसलों के बारे में तो हमें आसानी से बता दिया जाता है लेकिन ऐसे नकारात्मक फैसले जिनमें प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया जाता है, के बारे में कभी भी कोई जानकारी नहीं दी जाती.’

उन्होंने कहा कि प्रतिबंध प्रणाली में सूचीबद्ध करने के अनुरोध को स्वीकार करने का कोई कारण नहीं बताया जाता है और न ही अस्वीकृत किए गए आवेदन सार्वजनिक तौर पर सामने आ पाते हैं.

अकबरुद्दीन ने कहा, ‘अनुरोध के समर्थन में कौन नहीं है, इस बारे में स्पष्ट संकेत नहीं दिए जाते हैं. अस्वीकृत प्रस्तावों की प्राप्ति सूचना दिए बगैर, यह बताए बगैर कि उन पर विचार भी हुआ था, उन्हें दफना दिया जाता है.’

उन्होंने कहा, ‘गोपनीय दुनिया में सभी फैसले आवश्यक तौर पर एकमत से लेने होते हैं हालांकि परिषद में इस तरह का चलन नहीं है. आजकल परिषद के अपने कामकाज में वीटो के इस्तेमाल को कम से कम करने के तरीके खोजे जाते हैं और यहां कई सदस्य ऐसे प्रयासों का समर्थन करते हैं. लेकिन गोपनीय दुनिया में परिषद के सभी सदस्यों ने प्रतिबंध समिति का सदस्य होने के नाते अपने लिए वीटो का इस्तेमाल किया है.’

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ‘सहायक संगठनों की गोपनीय दुनिया में अज्ञात और एकमतता के नियमों का पालन किए जाने से सदस्यों की व्यक्तिगत जवाबदेही खत्म हो जाती है. उन्होंने कहा कि सदस्य देशों की ओर से क्रियान्वयन की जो रिपोर्टें आई हैं उनसे पता चलता है कि ज्यादातर मामलों में वे बेहद पुरानी (साल 2003 की) हैं.

उन्होंने कहा, ‘इन संगठनों में अपनी सदस्यता से प्रभावित होकर अन्य सदस्य देशों ने भी शायद संगठनों की ओर से लिए गए फैसलों को लागू नहीं किया है.’ इससे पहले भारत ने संरा प्रतिबंध प्रणाली समिति को आडे हाथों लेते हुए कहा था कि आतंकवाद के साथ निबटने में ‘चयनात्मक दृष्टिकोण’ को अपनाया जा रहा है.

दरअसल संरा ने जैश-ए-मोहम्मद प्रमुख मसूद अजहर का नाम समिति की आतंकवादियों की सूची में शामिल करने के भारत के आवेदन को तकनीकी कारणों से रोक दिया था.

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