मदर टेरेसा संत घोषित, पोप फ्रांसिस का ऐलान

पोप फ्रांसिस ने आज सेंट पीटर्स चौक पर एक सामूहिक समारोह में मदर टेरेसा को संत घोषित किया. उन्होंने लातीनी भाषा में कहा, ‘‘ब्लेस्ड त्रिनिटी के सम्मान के लिए.. हम कलकत्ता (कोलकाता) की पवित्र टेरेसा को संत घोषित करते हैं और उन्हें संतों की सूची में शामिल करते हैं, आदेश देते हैं कि सभी चर्च […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 4, 2016 7:58 AM

पोप फ्रांसिस ने आज सेंट पीटर्स चौक पर एक सामूहिक समारोह में मदर टेरेसा को संत घोषित किया. उन्होंने लातीनी भाषा में कहा, ‘‘ब्लेस्ड त्रिनिटी के सम्मान के लिए.. हम कलकत्ता (कोलकाता) की पवित्र टेरेसा को संत घोषित करते हैं और उन्हें संतों की सूची में शामिल करते हैं, आदेश देते हैं कि सभी चर्च उन्हें श्रद्धेय मानें.’ कल मदर टेरेसा की 19वीं बरसी थी.विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के नेतृत्व में केंद्र सरकार का एक 12 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल, दिल्ली से मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में तथा पं. बंगाल से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व में राज्य स्तरीय दल भी इस कार्यक्रम में शरीक होंगे.

नोबेल पुरस्कार विजेता दिवंगत मदर टेरेसा द्वारा स्थापित मिशनरी ऑफ चेरिटी की ननों के मुताबिक मदर की लोकप्रियता के कारण रोम में होने वाले इस समारोह का दुनियाभर में विशेष महत्व होगा.मिशनरी ऑफ चेरिटी की सुपीरियर जनरल सिस्टर मेरी प्रेमा के नेतृत्व में देश के विभिन्न हिस्सों से आई 40 से 50 ननों का समूह भी इस समारोह में मौजूद होगा.
कोलकाता के आर्चबिशप थॉमस डिसूजा के अलावा भारत भर से 45 बिशप इस समारोह के लिए वेटिकन में हैं. पोप फ्रांसिस ने मदर टेरेसा को संत का दर्जा देने की घोषणा मार्च में की थी. संत का दर्जा पाने के लिए दो चमत्कारों को मान्यता मिलना जरूरी होता है.
जितने गरीब और निराश्रित लोगों की मदर टेरेसा ने सेवा की है उनके लिए तो वे जीवित संत थीं. वेटिकन की दुनिया में भी कई लोगों का यही मानना होगा लेकिन कैथोलिक चर्च की किसी भी शख्सियत को संत घोषित करने की एक आधिकारिक प्रक्रिया है जिसके तहत बड़े पैमाने पर ऐतिहासिक शोध, चमत्कारों की खोज और उसके सबूत का विशेषज्ञों के दल के द्वारा आकलन किया जाता है.मदर टेरेसा के मामले में इस प्रक्रिया का समापन कल हो जाएगा जब पोप फ्रांसिस मदर को चर्च की सबसे नयी संत घोषित करेंगे.
जानिये क्या है पूरी प्रक्रिया
संत घोषित करने की प्रक्रिया की शुरुआत उस स्थान से होती है जहां वह रहे या जहां उनका निधन होता है. मदर टेरेसा के मामले में यह जगह है कोलकाता. प्रॉस्ट्यूलेटर प्रमाण और दस्तावेज जुटाते हैं और संत के दर्जे की सिफारिश करते हुए वेटिकन कांग्रेगेशन तक पहुंचाते हैं. कांग्रेगेशन के विशेषज्ञों के सहमत होने पर इस मामले को पोप तक पहुंचाया जाता है. वे ही उम्मीदवार के ‘‘नायक जैसे गुणों’ के आधार पर फैसला लेते हैं.
अगर प्रॉस्ट्यूलेटर को लगता है कि उम्मीदवार की प्रार्थना पर कोई रोगी ठीक हुआ है और उसके भले चंगे होने के पीछे कोई चिकित्सीय कारण नहीं मिलता है तो यह मामला कांग्रेगेशन के पास संभावित चमत्कार के तौर पर पहुंचाया जाता है जिसे धन्य माने जाने की जरुरत होती है. संत घोषित किए जाने की प्रक्रिया का यह पहला पड़ाव है.
चिकित्सकों के पैनल, धर्मशास्त्रीयों, बिशप और चर्च के प्रमुख (कार्डिनल) को यह प्रमाणित करना होता है कि रोग का निदान अचानक, पूरी तरह से और दीर्घकालिक हुआ है और संत दर्जे के उम्मीदवार की प्रार्थना के कारण हुआ है. इससे सहमत होने पर कांग्रेगशन इस मामले को पोप तक पहुंचाता है और वे फैसला लेते हैं कि उम्मीदवार को संत घोषित किया जाना चाहिए. लेकिन संत घोषित किए जाने के लिए दूसरा चमत्कार भी जरुरी होता है.
संत घोषित करने की प्रक्रिया की आलोचना भी होती है क्योंकि इसे खर्चीला, गोपनीय माना जाता है. यह भी माना जाता है कि इसका दुरुपयोग हो सकता है तथा राजनीति, वित्तीय और आध्यात्म क्षेत्र के दबाव के चलते किसी एक उम्मीदवार को कम समय में संत का दर्जा मिल सकता है जबकि कोई और सदियों तक इसके इंतजार में रहना पड सकता है.

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