काबुल: अफगानिस्तान में तालिबान ने मंगलवार (7 सितंबर) को अपनी नयी सरकार की घोषणा की. तालिबान की सरकार अंतरराष्ट्रीय बिरादरी से मान्यता पाने की कोशिशों में जुटा है, लेकिन अपने ही देश में उसके खिलाफ बहुत बड़ी बगावत हो गयी है. अफगानिस्तान के राजदूतों ने तालिबान की नयी सरकार को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है. अफगानिस्तान का नया नाम भी उन्हें मंजूर नहीं है.
जी हां, अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे से पहले तक चल रही अशरफ गनी सरकार के विदेश मंत्रालय की तरफ से बुधवार (8 सितंबर) को एक बयान जारी करके कहा गया है कि दुनिया भर के देशों में मौजूद सभी अफगानिस्तानी राजदूत पिछली सरकार को ही मानते हुए काम करते रहेंगे. इस बयान में यह भी कहा गया है कि अफगानिस्तानी राजदूत नयी तालिबानी सरकार को स्वीकार नहीं करते.
सभी दूतावासों के जरिये जारी साझा बयान में कहा गया है कि वे अफगानिस्तान के नये नाम को भी स्वीकार नहीं करेंगे. तालबान ने अफगानिस्तान को नया नाम दिया है- इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान. दूतावासों ने इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया है. बयान में यह भी कहा गया है कि तालिबान सरकार गैर-संवैधानिक है और सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा है.
इस बयान में कहा गया है कि अफगानिस्तान की नयी तालिबानी सरकार ने औरतों के हकों का हनन किया है. इसलिए वे इस सरकार को मानने से इंकार करते हैं. मामला यहीं खत्म नहीं हुआ. बयान में आगे कहा गया है कि इसस वक्त दुनिया के जितने देशों में अफगानिस्तान के राजदूत हैं, वे सभी अपने दूतावासों में तालिबान सरकार के नये झंडे की बजाय अफगानिस्तान के पुराने झंडे का ही इस्तेमाल करते रहेंगे.
राजदूतों के इस कदम के पीछे अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई और एक अन्य नेता डॉ अब्दुल्ला अब्दुल्ला के लगातार संपर्क में बने हुए हैं. राजदूतों की इस बगावत के पीछे हामिद करजई और डॉ अब्दुल्ला अब्दुल्ला का ही हाथ बताया जा रहा है. ज्ञात हो कि हामिद करजई और डॉ अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने तालिबान सरकार को स्वीकार कर लिया है, लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि उन्होंने भी दिल से इस सरकार को मंजूरी नहीं दी है.
Posted By: Mithilesh Jha