Bangladesh Coup: बांग्लादेश में एक बार फिर तख्तापलट हो गया है. चुनी हुई प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इस्तीफा दे दिया है. खबर है कि वो भारत आ गई है. यहां से वो लंदन जाने की तैयारी कर रही हैं. रविवार को छात्रों और लोगों के जोरदार प्रदर्शन के बाद बांग्लादेश में बड़ा बवाल छिड़ गया है. साल 1975 में अगस्त के महीने में ही बांग्लादेश में बलवा हुआ था. इसमें कई लोगों को जान चली गई थी. खुद शेख हसीना के पिता और भाइयों की जान चली गई थी. उनके पिता शेख मुजीबुर रहमान जब देश के पीएम थे उस समय भी सेना ने तख्तापलट कर दिया था. तख्ता पलट के दौरान शेख हसीना के लगभग पूरे परिवार को खत्म कर दिया था. किसी तरह किसी तरह शेख हसीना और उनकी बहन की जान बच पाई थी.
तख्तापलट में गई थी शेख मुजीब की जान
49 साल पहले अगस्त महीने में ही बांग्लादेश में तख्तापलट हुआ था. 15 अगस्त 1975 को शेख मुजीबुर रहमान समेत उनके परिवार की तख्ता पलट के दौरान हत्या कर दी गई थी. उस समय बड़ी मुश्किल से शेख हसीना और उनकी बहन की जान बच पाई थी. भारत ने हसीना को राजनीतिक शरण दी थी. शेख हसीना 1981 तक दिल्ली में रही थीं. इसके बाद वापस बांग्लादेश जाकर हसीना ने अपने पिता की राजनीतिक विरासत को संभाला था. तख्तापलट में उनके पिता, मां और 3 भाई मारे गए थे.
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मेजर जनरल जिया उल रहमान ने संभाली सत्ता
15 अगस्त 1975 को शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या और उनकी सरकार का तख्तापलट कर दिया गया था. बांग्लादेश में सेना की बगावत के बाद कुछ हथियारबंद लड़ाके शेख हसीना के घर में घुसे और उनके माता-पिता और भाईयों की क्रूरता से हत्या कर दी. शेख हसीना के परिवार को खत्म करने के बाद मेजर जनरल जियाउर रहमान ने सत्ता की बागडोर अपने हाथ में ले ली. उन्होंने सैन्य शासन की तरह देश को संभाला. हालांकि, इस हमले में शेख हसीना और उनकी बहन बच गईं.
1981 में भी किया गया था प्रयास
बांग्लादेश में अपने कार्यकाल के दौरान जियाउर रहमान की 30 मई 1981 को हत्या कर दी. उनके छह बॉडीगार्ड और दो सहयोगी की बी सेना की एक टुकड़ी ने हत्या कर दी. इसके बाद सेना के कुछ अधिकारियों ने सत्ता पर कब्जा जमाने की कोशिश की. हालांकि उनकी कोशिश सफल नहीं हो सकी. बांग्लादेश में चुनावों के जरिए एक बार फिर लोकतांत्रिक व्यवस्था को कायम किया गया.
1996 में तख्तापलट की नाकाम कोशिश
बांग्लादेश में 1996 में भी तख्तापलट की कोशिश की गई थी, हालांकि यह भी सफल नहीं हुई थी. लेफ्टिनेंट जनरल अबू सालेह मोहम्मद नसीम ने 1996 में बांग्लादेश के कार्यवाहक सरकार के खिलाफ एक असफल तख्तापलट किया था. 19 मई 1996 को कार्यवाहक सरकार के दौरान राष्ट्रपति अब्दुर रहमान बिस्वास ने लेफ्टिनेंट जनरल अबू सालेह मोहम्मद नसीम को दो वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों को जबरन सेवानिवृत्त करने का आदेश दिया था. लेफ्टिनेंट जनरल नसीम ने आदेश मानने से इनकार कर दिया था. इसके बाद राष्ट्रपति बिस्वास ने उसे बर्खास्त कर दिया. इससे नाराज होकर जनरल नसीम ने सैनिकों को ढाका की ओर कूच करने का आदेश दिया. हालांकि यह तख्तापलट की कोशिश कामयाब नहीं हो सकी. बाद में जनरल नसीम को गिरफ्तार कर लिया गया.
2007 में कार्यवाहक सरकार के खिलाफ तख्तापलट की कोशिश
साल 2007 में भी सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल मोईन अहमद ने 11 जनवरी 2007 को सैन्य तख्तापलट की कोशिश की थी. सैन्य समर्थित कार्यवाहक सरकार का गठन संवैधानिक प्रावधानों से अलग किया गया था. सैन्य सरकार की ओर से दिसंबर 2008 में चुनाव आयोजित करने और सत्ता का हस्तांतरण अवामी लीग को सौंपे जाने के बाद यह तख्तापलट 2008 में खत्म हुआ. इसके अलावा भी बांग्लादेश में कई और बार विद्रोह करने और तख्तापलट करने की कोशिश की. 2009 में इसी तरह बांग्लादेश राइफल्स ने विद्रोह किया था. इसके बाद 2011 में भी तख्तापलट की कोशिश की गई थी. हालांकि यह भी सफल नहीं हो सकी थी.