मैं अहमद शाह मसूद का बेटा हूं और आत्मसमर्पण जैसे शब्द मेरी डिक्शनरी में नहीं हैं. हमने विरोध की शुरुआत कर दी है और हम संघर्ष करते रहेंगे. यह कहना है पंजशीर के शेर कहे जाने वाले अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद सीनियर का. अहमद मसूद का एक वीडियो सोशल मीडिया में शेयर किया गया है, जिसमें वे अपने लड़ाकों को संबोधित करते नजर आ रहे हैं.
फ्रांसिसी दार्शनिक बर्नाड हेनरी लेवी ने भी ट्वीट कर बताया कि उन्होंने अहमद मसूद से फोन पर बात की है और उन्होंने कहा कि वे तालिबान के सामने घुटने नहीं टेकेंगे. वे अपने पिता के नक्शेकदम पर चलेंगे.
I just spoke to Ahmad #Massoud on the phone. He told me: “I am the son of Ahmad Shah Massoud; surrender is not part of my vocabulary.” This is the start. The #Resistance has just begun. #Afghanistan #Panjshir #Kabul #LionOfPanjshir @ahmadmassoud01 pic.twitter.com/Xlj8mKKr1v
— Bernard-Henri Lévy (@BHL) August 21, 2021
अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा लगभग सभी प्रांतों पर हो गया है, लेकिन पंजशीर आज भी तालिबान के कब्जे से बाहर है. लेकिन कुछ दिन पहले तालिबान की ओर से यह कहा गया था कि पंजशीर के शेर कहे जाने वाले अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद सीनियर उनके साथ आ गये हैं.
अहमद मसूद ने बर्नाड हेनरी को पत्र लिखा जिसमें उन्होंने लिखा मेरे पिता, कमांडर मसूद, हमारे राष्ट्रीय नायक थे. उन्होंने मुझे एक विरासत सौंपी है और वह विरासत अफगानों की स्वतंत्रता के लिए लड़ना है. वह लड़ाई अब निश्चचत रूप से मेरी है. मैं और मेरे साथी अपना खून बहाने को तैयार हैं, हम सभी आजाद अफगानों से, उन सभी से, जो दासता को अस्वीकार करते हैं, हमारे गढ़ पंजशीर में शामिल होने का आह्वान करते हैं, जो हमारी त्रासद भूमि के अंतिम मुक्त क्षेत्र है. मैं सभी क्षेत्रों और कबीलों के अफगानों से कहता हूं: हमारे साथ लड़ो. मसूद ने 16 अगस्त को यह पत्र लिखा था.
तालिबान विरोधी आंदोलन का केंद्र रहा है. यह अफगानिस्तान के उत्तर में हिंदू कुश पर्वत श्रृंखला में स्थित है. यह क्षेत्र 1980 के दशक में सोवियत संघ और फिर 1990 के दशक में तालिबान के खिलाफ प्रतिरोध का गढ़ रहा था. इस इलाके को अबतक कोई जीत नहीं पाया है. 20 साल पहले भी पंचशीर पर तालिबान अपना कब्जा नहीं जमा पाया था. अहमद मसूद के पिता अहमद शाह मसूद की हत्या 2001 में तालिबान और अल-कायदा ने साजिश के तहत कर दी थी. उस वक्त अहमद मसूद सिर्फ 12 साल के थे.
पंजशीर घाटी 1996 से लेकर 2001 तक अफगानिस्तान पर तालिबान शासन के विरोध करने वालों का गढ़ रहा है. अहमद शाह मसूद, अमरुल्ला सालेह के साथ ही करीम खलीली, अब्दुल राशिद दोस्तम, अब्दुल्ला अब्दुल्ला, मोहम्मद मोहकिक एवं अब्दुल कादिर जैसे नेता तालिबान का विरोध करने वाले प्रमुख नेता थे.
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Posted By : Rajneesh Anand