Narendra Modi: पीएम मोदी को प्रधानमंत्री पद से हटाना चाहता था अमेरिका, बहुत बड़ा खुलासा

Narendra Modi: अमेरिका के पूर्व विदेश विभाग अधिकारी माइक बेंज ने आरोप लगाया है कि अमेरिका भारत और बांग्लादेश सहित कई देशों की आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप कर रहा है.

By Aman Kumar Pandey | February 12, 2025 6:00 AM
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Narendra Modi: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद निशिकांत दुबे ने हाल ही में अमेरिकी एजेंसी ‘यूएसएड’ (USAID) पर गंभीर आरोप लगाए हैं. उन्होंने दावा किया कि यह संस्था भारत को विभाजित करने के लिए विभिन्न संगठनों को धन उपलब्ध कराती है. दुबे ने केंद्र सरकार से इस मुद्दे की गहन जांच कराने और दोषियों को जेल भेजने की मांग की. इस आरोप को अमेरिका के एक पूर्व अधिकारी माइक बेंज के हालिया खुलासों से और बल मिला है.

अमेरिकी अधिकारी माइक बेंज का बड़ा खुलासा

अमेरिका के पूर्व विदेश विभाग अधिकारी माइक बेंज ने आरोप लगाया है कि अमेरिका भारत और बांग्लादेश सहित कई देशों की आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप कर रहा है. उन्होंने कहा कि अमेरिका मीडिया प्रभाव, सोशल मीडिया सेंसरशिप और विपक्षी आंदोलनों को वित्तीय सहायता के जरिए इन देशों की राजनीति को प्रभावित करता रहा है. बेंज का दावा है कि अमेरिकी सरकार से जुड़ी संस्थाओं ने ‘लोकतंत्र को बढ़ावा देने’ की आड़ में चुनावों को प्रभावित करने, सरकारों को अस्थिर करने और अपने रणनीतिक हितों के अनुरूप विदेशी सरकार बनाने का काम किया.

2019 के भारतीय आम चुनाव में हस्तक्षेप का आरोप

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, बेंज ने दावा किया कि अमेरिकी विदेश नीति से जुड़े इस कांड में यूएसएड, थिंक टैंक और बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियां शामिल थीं. उन्होंने कहा कि इन समूहों ने 2019 के भारतीय आम चुनाव को प्रभावित करने का प्रयास किया. उनका दावा है कि अमेरिकी संगठनों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के खिलाफ चुनावी नैरेटिव तैयार किया और इसे बढ़ावा देने के लिए संसाधन मुहैया कराए.

बेंज ने कहा कि अमेरिकी संगठनों ने इस धारणा को मजबूत करने की कोशिश की कि मोदी की राजनीतिक सफलता गलत सूचना के कारण है. इसके आधार पर उन्होंने एक व्यापक सेंसरशिप वातावरण तैयार किया, जिससे भाजपा समर्थक आवाजों को दबाया जा सके.

सोशल मीडिया पर दबाव डालने का आरोप

बेंज का कहना है कि अमेरिकी विदेश विभाग ने फेसबुक, वॉट्सऐप, यूट्यूब और ट्विटर जैसी बड़ी टेक कंपनियों पर प्रभाव डालकर मोदी समर्थक कंटेंट पर अंकुश लगाने का प्रयास किया. जनवरी 2019 में वॉट्सऐप द्वारा मैसेज फॉरवर्डिंग की सीमा को कम करने की नीति को भाजपा की डिजिटल पहुंच को रोकने का एक उदाहरण बताया गया. उन्होंने कहा कि अमेरिकी संगठनों ने मोदी समर्थकों को फर्जी खबरें फैलाने के लिए रणनीतिक रूप से फंसाया ताकि भारत के डिजिटल स्पेस में हस्तक्षेप को उचित ठहराया जा सके.

बेंज ने यह भी दावा किया कि यूएसएड से जुड़े संगठनों ने प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मीडिया और डिजिटल फोरेंसिक समूहों के साथ मिलकर भारत में गलत सूचना के संकट का एक भ्रम तैयार किया. उनका तर्क है कि यह मोदी समर्थक कंटेंट को दबाने का बहाना बन गया.

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भाजपा सांसद निशिकांत दुबे का आरोप

भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने शून्यकाल में इस मुद्दे को उठाते हुए कहा कि अमेरिका में नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यूएसएड को पूरी तरह बंद कर दिया है क्योंकि यह संस्था वर्षों से विभिन्न सरकारों को गिराने के लिए पैसे खर्च कर रही थी. उन्होंने विपक्ष से सवाल किया कि क्या यूएसएड ने जॉर्ज सोरोस की ‘ओपन सोसाइटी फाउंडेशन’ को भारत को विभाजित करने के लिए 5000 करोड़ रुपये दिए थे.

दुबे ने यह भी पूछा कि क्या यूएसएड ने राजीव गांधी फाउंडेशन को पैसा दिया और क्या इसने तालिबान को धन मुहैया कराया था. उन्होंने आरोप लगाया कि यह संस्था आतंकवादी और नक्सलवादी गतिविधियों को बढ़ाने वाले संगठनों को पैसा देती है. उन्होंने सरकार से अनुरोध किया कि इनकी जांच की जाए और जो भी दोषी पाए जाएं, उन्हें जेल भेजा जाए.

बांग्लादेश में अमेरिकी हस्तक्षेप

बेंज ने दावा किया कि अमेरिका ने बांग्लादेश की राजनीति में भी हस्तक्षेप किया और प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार को कमजोर करने के लिए यूएसएड का इस्तेमाल किया. उन्होंने कहा कि यह कदम बांग्लादेश और चीन के बढ़ते आर्थिक और रणनीतिक साझेदारी के कारण उठाया गया.

बेंज के अनुसार, अमेरिकी संगठनों ने सांस्कृतिक और जातीय तनावों का उपयोग करके बांग्लादेश में विभाजन पैदा करने और सरकार विरोधी प्रदर्शनों को बढ़ावा देने की योजना बनाई. उन्होंने कहा कि अमेरिका की रणनीति चीन के प्रभाव को रोकने, सैन्य ठिकाने सुरक्षित करने और आर्थिक पहुंच बनाए रखने की थी.

रैप संगीत के जरिए सरकार विरोधी भावनाएं भड़काने का आरोप

बेंज ने एक दिलचस्प आरोप लगाते हुए कहा कि अमेरिकी करदाताओं के पैसे का इस्तेमाल बांग्लादेश में ऐसे रैप संगीत को फंड करने के लिए किया गया, जो सरकार विरोधी भावनाओं को बढ़ावा देता था. उन्होंने कहा कि यह अमेरिका की वैश्विक रणनीति का हिस्सा था और इसका असली मकसद लोकतंत्र को बढ़ावा देना नहीं बल्कि अपने रणनीतिक हितों की रक्षा करना था.

अमेरिका की विदेश नीति और उसका प्रभाव

बेंज का कहना है कि ये गतिविधियां अक्सर अमेरिकी प्रशासन की अनुमति के बिना विदेश नीति प्रतिष्ठान के कुछ गुटों द्वारा संचालित की जाती हैं. उनके अनुसार, ट्रंप प्रशासन के दौरान भी इन गतिविधियों को अंजाम दिया गया, जबकि ट्रंप और मोदी के बीच अच्छे संबंध थे. बेंज ने यह भी कहा कि यह हस्तक्षेप सिर्फ भारत और बांग्लादेश तक सीमित नहीं है, बल्कि अमेरिका ने वेनेजुएला, यूक्रेन, मध्य पूर्व और उत्तर अफ्रीका जैसे कई देशों में भी इसी तरह की रणनीति अपनाई.

यूएसएड (USAID) क्या है?

यूएसएड (United States Agency for International Development) यानी संयुक्त राज्य अंतर्राष्ट्रीय विकास एजेंसी, अमेरिकी सरकार की एक स्वतंत्र संस्था है, जो विकासशील देशों में आर्थिक, सामाजिक और मानवीय सहायता प्रदान करती है. इसकी स्थापना 1961 में तत्कालीन राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी के कार्यकाल में की गई थी.

यूएसएड का मुख्य उद्देश्य दुनिया भर में गरीबी उन्मूलन, स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार, शिक्षा का विस्तार, लोकतंत्र को बढ़ावा देना और मानवीय आपदाओं में सहायता प्रदान करना है. हालांकि, इस पर कई बार आरोप लगे हैं कि यह संगठन राजनीतिक दखल देने और अमेरिकी विदेश नीति के एजेंडे को लागू करने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है.

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कौन हैं माइक बेंज?

माइक बेंज अमेरिकी विदेश विभाग के पूर्व अधिकारी हैं, जिन्होंने 2020 से 2021 तक अंतर्राष्ट्रीय संचार और सूचना प्रौद्योगिकी के लिए उप सहायक सचिव के रूप में कार्य किया. इस भूमिका में वे साइबर सुरक्षा और डिजिटल नीति से जुड़े मुद्दों पर अमेरिकी नीति तैयार करने और बड़ी टेक कंपनियों के साथ समन्वय स्थापित करने की जिम्मेदारी संभाल रहे थे. सरकारी सेवा छोड़ने के बाद, बेंज ने ‘फाउंडेशन फॉर फ्रीडम ऑनलाइन’ (FFO) नामक एक गैर-लाभकारी संगठन की स्थापना की. यह संस्था डिजिटल सेंसरशिप और सरकारों व संगठनों द्वारा ऑनलाइन नैरेटिव को नियंत्रित करने की रणनीतियों का विश्लेषण करती है. उन्होंने अपनी रिसर्च के आधार पर दावा किया कि अमेरिका द्वारा लोकतंत्र को बढ़ावा देने के नाम पर मीडिया हेरफेर, सोशल मीडिया सेंसरशिप और विपक्षी समूहों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती रही है.

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