Anura Kumara Dissanayake : दिहाड़ी मजदूर के घर जन्मे अनुरा कुमारा दिसानायके ने श्रीलंका के राष्ट्रपति पद की शपथ ली
Anura Kumara Dissanayake : अनुरा कुमारा दिसानायके ने श्रीलंका के राष्ट्रपति पद की शपथ ले ली है. उन्होंने नौवें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली. जानें उनके बारे में खास बातें
Anura Kumara Dissanayake : अनुरा कुमारा दिसानायके ने सोमवार को श्रीलंका के राष्ट्रपति पद की शपथ ली. वामपंथी दल नेशनल पीपुल्स पावर के नेता कुमारा दिसानायके को रविवार को श्रीलंका का नया राष्ट्रपति चुना गया था. दिसानायके ने नौवें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली है. उनको 57,40,179 यानी 42.31% वोट मिले हैं, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी सजीथ प्रेमदासा को 45,30,902 यानी 32.8% वोट मिले.
श्रीलंका की इतिहास में पहली बार सेकेंड राउंड के वोटों की गिनती के बाद राष्ट्रपति पद के चुनाव के नतीजे घोषित किये गये. सेकेंड राउंड के वोटों की गिनती में दिसानायके के सामने समागी जन बालवेगया दल के सजीथ प्रेमदासा थे. निवर्तमान राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे पहले दौर में ही बाहर हो गये. उन्हें सिर्फ 17.27% वोट मिले थे. इससे पहले, निर्वाचन आयोग ने दूसरे दौर की गिनती का आदेश दिया था, क्योंकि शनिवार को हुए चुनाव में किसी भी उम्मीदवार को विजेता घोषित करने के लिए आवश्यक 50% से अधिक मत हासिल नहीं हुए थे.
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श्रीलंका में कभी भी कोई चुनाव मतगणना के दूसरे दौर तक नहीं पहुंचा है, क्योंकि प्रथम वरीयता मतों के आधार पर हमेशा प्रत्याशी विजेता बनता रहा है. 2022 में देश में आर्थिक संकट के कारण गोटबाया राजपक्षे को सत्ता से हटाने के बाद यह पहला चुनाव था.
एकेडी के नाम से मशहूर हैं दिसानायके
एकेडी के नाम से मशहूर दिसानायके का शीर्ष पद पर पहुंचना 50 साल पुरानी पार्टी जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) के लिए एक उल्लेखनीय बदलाव है, जो लंबे समय से हाशिये पर नजर आती रही थी. वह श्रीलंका में मार्क्सवादी पार्टी के पहले नेता हैं, जो राष्ट्र के प्रमुख बने हैं. 2019 के राष्ट्रपति चुनाव में उसे सिर्फ 3% वोट मिले थे.
जानें अनुरा कुमारा दिसानायके के बारे में खास बात
अनुरा कुमारा दिसानायके चीन समर्थक हैं जिनका जन्म थंबुट्टेगामा में एक दिहाड़ी मजदूर के घर हुआ था. दिसानायके ने 80 के दशक में छात्र राजनीति शुरू की. वह 1987 में ऐसे वक्त में नेशनल पीपुल्स पावर की मातृ पार्टी जेवीपी में शामिल हुए थे, जब उसका भारत विरोधी विद्रोह चरम पर था. जेवीपी ने 1987 के भारत-श्रीलंका समझौते का समर्थन करने वाले लोकतांत्रिक दलों के कई कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी थी. राजीव गांधी-जे आर जयवर्धने समझौता देश में राजनीतिक स्वायत्तता की तमिल मांग को हल करने के लिए प्रत्यक्ष भारतीय हस्तक्षेप था. जेवीपी ने भारतीय हस्तक्षेप को श्रीलंका की संप्रभुता के साथ धोखा करार दिया था.
(इनपुट पीटीआई)