चीन का मुकाबला करने के लिए अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया ने एक नये त्रिपक्षीय सुरक्षा गठबंधन ऑकस (AUKUS) का गठन किया है. इस गठबंधन का उद्देश्य हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव के बीच अपने साझा हितों की रक्षा करना है. साथ ही रक्षा क्षमताओं को बेहतर तरीके से साझा करना भी है. इस महत्वाकांक्षी सुरक्षा पहल की घोषणा गुरुवार संयुक्त बयान द्वारा अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया ने की.
इस गठबंधन की घोषणा के बाद फ्रांस और यूरोपीय संघ (ईयू) नाराज है. फ्रांस और यूरोपीय संघ को ऐसा महसूस हो रहा है कि इस गठबंधन के दौरान उन्हें दरकिनार किया गया है, यही वजह है कि वे जो बाइडेन के इस फैसले को अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शासनकाल से कर रहे हैं.
फ्रांस के विदेश मंत्री ने इस गठबंधन को समझ से परे बताया और कहा कि जो बाइडेन ने जो विश्वास उन्हें दिलाया था उसे कायम रखने में वे नाकाम साबित हुए हैं. फ्रांस ने इस गठबंधन को अमेरिका द्वारा धोखा देना बताया गया है.
वहीं यूरोपीय संघ ने भी यह कहा है कि यह गठबंधन बनाने ने पहले अमेरिका ने उनसे कोई परामर्श नहीं किया. जबकि हम उनके सहयोगी हैं और बाइडेन ने यह कहा था कि वे सहयोगियों को साथ लेकर चलेंगे. अफगानिस्तान के मुद्दे पर भी अमेरिका ने अकेले ही फैसला किया, इस वजह से उनका पुराना सहयोगी नाराज है.
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ऑकस गठबंधन से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता कायम होगी और इस गठबंधन में शामिल देशों के हितों की रक्षा होगी. इस गठबंधन में शामिल देश सैन्य क्षमताओं का विकास करेंगे साथ ही तकनीक को भी साझा करेंगे. अमेरिका और ब्रिटेन की मदद से ऑस्ट्रेलिया परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियों का एक बेड़ा बनाएगा, जिसका मकसद हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता को बढ़ावा देना होगा.
ऑकस गठबंधन पर भारत की ओर से अबतक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गयी है, लेकिन दि वीक में छपी खबर के अनुसार विशेषज्ञों का मानना है कि यह भारत के लिए फायदेमंद स्थिति है. भारत चीन के साथ एक अनसुलझे सीमा मुद्दे का सामना कर रहा है और पूर्वी लद्दाख में दोनों पक्षों के बीच 18 महीने से चल रहे सैन्य गतिरोध का समाधान होना बाकी है. भारतीय पर्यवेक्षक इस गठबंधन को इस क्षेत्र में गेम-चेंजर बता रहे हैं.
Posted By : Rajneesh Anand