Bangladesh Protest: आंदोलन की वजह से बीते दो महीने में 300 की हो चुकी है मौत, 1000 करोड़ रुपये नुकसान

प्रधानमंत्री हसीना के इस्तीफे और उनके देश छोड़ने की घोषणा के बाद देशभर में उत्साही प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर गये और जम कर जश्न मनाया. वहीं उनके सरकारी आवास पर भी कब्जा जमा लिया.

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 6, 2024 10:23 AM
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रांची : बांग्लादेश में पिछले दो महीने से जारी आरक्षण विरोधी हिंसक आंदोलन सोमवार को और उग्र हो गया. हजारों प्रदर्शनकारियों ने सैन्य कर्फ्यू का उल्लंघन करते हुए प्रधानमंत्री शेख हसीना के सरकारी आवास पर धावा बोल दिया. इसके बाद प्रदर्शनकारियों ने उनके आवास में लूटपाट और तोड़फोड़ की. वहीं, कुछ प्रदर्शनकारियों ने उनके पिता शेख मुजीबुर्रहमान की प्रतिमा को हथौड़ों से तोड़ दिया और उनकी पार्टी अवामी लीग के कार्यालयों में आग लगा दी. वीडियो फुटेज में प्रदर्शनकारियों को हसीना के आधिकारिक आवास ‘गणभवन’ में तोड़फोड़ और लूटपाट करते हुए दिखाया गया है. वे गणभवन परिसर में हाथ हिला कर जश्न मनाते दिख रहे हैं. उनमें से कई लोग गणभवन का सामान लेकर जाते भी दिखे. वहीं, प्रदर्शनकारियों ने ढाका में जमकर उत्पात मचाया.

दरअसल, प्रधानमंत्री हसीना के इस्तीफे और उनके देश छोड़ने की घोषणा के बाद देशभर में उत्साही प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर गये और जम कर जश्न मनाया. वहीं, ढाका की सड़कों पर उतरे हजारों प्रदर्शनकारी हसीना के सरकारी आवास पर पहुंच गये और उस पर कब्जा जमा लिया. उनके आवास में मौज-मस्ती भी की. इधर, गृह मंत्री के घर में भी तोड़फोड़ की गयी. बता दें कि पिछले दो महीने से जारी आंदोलन में अब तक 300 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 1000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है.

हसीना के जीजा हैं सेना प्रमुख जनरल जमां, चलायेंगे सरकार

शेख हसीना के इस्तीफे के बाद बांग्लादेश में सेना ने मोर्चा संभाला लिया. अब सेना प्रमुख जनरल वकार उज जमां सत्ता की बागडोर संभालेंगे. सेना ने देश की कानून-व्यवस्था को संभाल लिया है. जनरल जमां हसीना के जीजा हैं. मुस्तफिजुर रहमान की बेटी बेगम साराहनाज कमालिका रहमान से उनकी शादी हुई है. मुस्तफिजुर रहमान शेख हसीना के चाचा थे, जो 24 दिसंबर 1997 से 23 दिसंबर 2000 तक बांग्लादेश के सेना अध्यक्ष रहे. जनरल जमां ने जून, 2024 में देश के रक्षा बलों का नेतृत्व संभाला था. उन्होंने डिफेंस सर्विसेज कमांड एंड स्टाफ कॉलेज से ग्रेजुएशन की है.

मां हसीना अब राजनीति में नहीं लौटेंगी : पुत्र जॉय

हसीना के बेटे सजीब वाजेद जॉय ने कहा कि मां अब राजनीति में नहीं लौटेंगी. उन्होंने कहा कि उनकी मां ने परिवार के आग्रह पर अपनी सुरक्षा के लिए देश छोड़ा है. वह रविवार से ही इस्तीफा देने पर विचार कर रही थीं. 15 साल तक बांग्लादेश पर शासन करने वालीं मां बहुत निराश थीं कि उनकी इतनी मेहनत के बाद भी लोग उनके खिलाफ उठ खड़े हुए हैं.

‘लॉन्ग मार्च टू ढाका’ के दौरान हिंसा, आगजनी

सोमवार को ‘लॉन्ग मार्च टू ढाका’ के तहत हजारों प्रदर्शनकारी ढाका सेंट्रल शहीद मीनार पर एकत्रित हुए. यहां प्रदर्शनकारियों ने पीएम हसीना के खिलाफ नारेबाजी की. प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे. इसके बाद हिंसक झड़प हो गयी. इसमें आधा दर्जन से अधिक लोगों की मौत हो गयी, कई जख्मी हो गये.

आरक्षण आंदोलन को समर्थन देने वाले संगठन

आरक्षण विरोधी आंदोलन को हिंसक बनाने में चरमपंथी संगठन जमात-ए-इस्लामी की भूमिका रही है. माना जा रहा है कि बीते दिनों बांग्लादेश सरकार की ओर से कट्टरपंथी दल जमात-ए-इस्लामी पर लगाये गये बैन के कारण ही छात्रों का यह प्रदर्शन हिंसा में बदल गया. जमात-ए-इस्लामी एक राजनीतिक पार्टी है, जिसे बांग्लादेश में कट्टरपंथी माना जाता है. यह राजनीतिक पार्टी पूर्व पीएम खालिदा जिया की समर्थक पार्टियों में शामिल है. जमात-ए-इस्लामी की स्थापना 1941 में ब्रिटिश शासन के तहत अविभाजित भारत में हुई थी.

बांग्लादेश नेशनल पार्टी

आंदोलन को विपक्षी पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने भी खुल कर समर्थन किया था. बांग्लादेश की प्रधानमंत्री व बीएनपी नेता खालिदा जिया के बेटे तारिक रहमान ने तख्तापलट के बाद प्रदर्शनकारी छात्रों को बधाई दी है. बीएनपी की स्थापना एक सितंबर, 1978 को दिवंगत बांग्लादेशी राष्ट्रपति जियाउर रहमान द्वारा राष्ट्रवादी विचारधारा वाले लोगों को एकजुट करने के उद्देश्य से की थी. 1981 में रहमान की हत्या के बाद उनकी पत्नी खालिदा जिया ने पार्टी का नेतृत्व संभाला और 2018 में अपने कारावास तक अध्यक्ष के रूप में अध्यक्षता की.

पीएम हसीना का इस्तीफा जनता की ताकत को किया साबित : बीएनपी

मुख्य विपक्षी पार्टी बीएनपी के कार्यकारी अध्यक्ष तारीक रहमान ने ‘एक्स’ पर लिखा कि शेख हसीना का इस्तीफा जनता की ताकत को साबित करता है. यह आने वाली पीढ़ियों को दिखाने के लिए एक उदाहरण होगा कि लोगों का साहस अत्याचारों पर कैसे काबू पा सकता है. समाज के सभी वर्गों के छात्रों और प्रदर्शनकारियों को बधाई.

हिंसक आंदोलन के दो महीने पूरे

05 जून
हाइकोर्ट ने स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों और अन्य को 56% आरक्षण देने का आदेश दिया. इसके खिलाफ आंदोलन शुरू हुआ.
15 जुलाई
बांग्लादेश में हिंसक प्रदर्शन शुरू हो गया. प्रदर्शनकारी सड़कों पर तोड़फोड़ और आगजनी की. दर्जनभर लोगों की मौत हो गयी.
17 जुलाई
प्रधानमंत्री शेख हसीना ने हिंसा की न्यायिक जांच की घोषणा की. साथ ही प्रदर्शनकारियों से शांति बनाने की अपील की.

आरक्षण के खिलाफ सड़कों पर उतरे थे लाखों छात्र

19 जुलाई
हिंसक आंदोलन उग्र हो गया. एक ही दिन में 66 लोगों की मौत. सेना की तैनाती.
21 जुलाई
सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की सीमा 56 प्रतिशत से घटा कर 07 प्रतिशत कर दिया.
23 जुलाई
सरकार ने बदलाव से जुड़ा परिपत्र जारी किया, जिसे प्रदर्शनकारियों ने ठुकरा दिया.
01 अगस्त
सरकार ने जमात-ए-इस्लामी, इस्लामी छात्र शिबिर पर प्रतिबंध लगाया.
04 अगस्त
आंदोलन में मारे गये लोगों के लिए न्याय और पीएम हसीना के इस्तीफे की मांग को लेकर स्टूडेंट्स अगेंस्ट डिस्क्रिमिनेशन प्लेटफॉर्म का सविनय अवज्ञा आंदोलन, 100 की मौत.
05 अगस्त
प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इस्तीफा दिया और देश छोड़ा. सेना ने संभाली देश की कमान.

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रहा है लंबा इतिहास

बांग्लादेश में आरक्षण विरोधी आंदोलन के बाद भड़की हिंसा के मद्देनजर पीएम शेख हसीना ने इस्तीफा देकर देश छोड़ दिया है. उनके इस्तीफे के बाद सेना ने मोर्चा संभाल लिया है. हालांकि, 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद से कई बार वहां सेना तख्तापलट कर चुकी है. इसमें पूर्व राष्ट्रपति शेख मुजीबुर्रहमान और जियाउर रहमान की हत्या भी हो चुकी है. आइए जानते हैं बांग्लादेश में कब-कब तख्तापलट की घटनाएं हुईं…

15 अगस्त, 1975

बांग्लादेश में पहली बार 15 अगस्त, 1975 को तख्तापलट सेना के जूनियर अधिकारियों ने किया. इसका नेतृत्व मेजर सैयद फारूक रहमान और मेजर राशिद ने किया था. अधिकारियों ने राष्ट्रपति शेख मुजीबुर्रहमान की सरकार को खांडेकर मुश्ताक अहमद के नेतृत्व वाली इस्लामी सरकार से बदलने की योजना बनायी थी. इस तख्तापलट में राष्ट्रपति शेख मुजीबुर्रहमान समेत कई नेताओं की हत्या कर दी गयी.

03 नवंबर, 1975

खांडेकर मुश्ताक अहमद को 03 नवंबर, 1975 को तख्तापलट के जरिये सत्ता से हटा दिया गया. इस तख्तापलट का नेतृत्व ब्रिगेडियर खालिद मुशर्रफ, बीर उत्तम, 1971 में बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई के एक सम्मानित नेता ने किया था. इस तख्तापलट के बाद शेख मुजीबुर्रहमान के समर्थक खालिद मुशर्रफ ने मेजर जनरल जियाउर रहमान, सेना प्रमुख और स्वतंत्रता संग्राम के साथी नेता को नजरबंद कर दिया.

07 नवंबर,1975

इस घटना के ठीक तीन दिन बाद ही 07 नवंबर, 1975 को लेफ्टिनेंट कर्नल (रिटायर्ड) अबू ताहिर के नेतृत्व में सेना के सैनिकों ने मुशर्रफ की सरकार को उखाड़ फेंका और मेजर जनरल जियाउर रहमान को नजरबंदी से मुक्त कर दिया. इसमें खालिद मुशर्रफ और उनके साथियों की हत्या कर दी गयी. इसके बाद जियाउर ने देश की सत्ता संभाल ली.

30 मई, 1981

राष्ट्रपति जियाउर रहमान की हत्या सेना के अधिकारियों के एक गुट ने चटगांव में कर दी. रहमान अपनी पार्टी के नेताओं के बीच झड़प में मध्यस्थता करने के लिए चटगांव गये थे. 30 मई की रात को सेना के अधिकारियों के एक समूह ने चटगांव सर्किट हाउस पर कब्जा जमा लिया और उन्हें गोली मार दी. इसके बाद उपराष्ट्रपति अब्दुस सत्तार ने सत्ता संभाली.

24 मार्च, 1982

लेफ्टिनेंट जनरल इरशाद ने नये राष्ट्रपति अब्दुस सत्तार के प्रति वफादारी बनाये रखी. उन्होंने 1982 में बीएनपी को चुनावों में जीत दिलायी. हालांकि, बीएनपी सरकार अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रही थी. इसके बाद सेना पर दबाव बढ़ गया था. लेफ्टिनेंट जनरल इरशाद 24 मार्च, 1982 को तख्तापलट किया और खुद को चीफ मार्शल लॉ एडमिनिस्ट्रेटर घोषित कर दिया.

24 मार्च, 1982

सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल मोइन अहमद ने 11 जनवरी, 2007 को तख्तापलट किया. फखरुद्दीन अहमद सरकार के मुखिया बने. राष्ट्रपति इयाजुद्दीन अहमद को सैन्य शासन के दौरान बंदूक की नोंक पर राष्ट्रपति पद चलाना पड़ा. सैन्य सरकार द्वारा दिसंबर, 2008 में संसदीय चुनाव कराने के बाद तख्तापलट 2008 में समाप्त हुआ.

फरवरी, 2009

बांग्लादेश राइफल्स विद्रोह 25 व 26 फरवरी, 2009 को ढाका में बीडीआर की एक इकाई द्वारा किया गया. विद्रोही सैनिकों ने पिलखाना में बीडीआर मुख्यालय पर कब्जा कर लिया, जिसमें बीडीआर के महानिदेशक शकील अहमद के साथ 56 अन्य सैन्य अधिकारियों और 17 नागरिकों की हत्या कर दी गयी. हालांकि, सरकार के साथ बातचीत के बाद यह विद्रोह समाप्त हो गया.

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