अनुसंधानकर्ताओं ने उन स्थानों का पता लगाने के लिए एक नयी, गैर आक्रामक रणनीति विकसित की है जो उन संभावित क्षेत्रों को इंगित करेंगे जहां से कोविड-19 के प्रसार का जोखिम अधिक होगा. इसके लिए वे मौजूदा सेलुलर (मोबाइल) वायरलैस नेटवर्कों से डेटा का प्रयोग करेंगे.
यह ऐसी उपलब्धि है जो वैश्विक महामारी की रोकथाम में मददगार साबित हो सकती है. अमेरिका की कोलोराडो स्टेट यूनिवर्सिटी के एडविन चोंग समेत अन्य वैज्ञानिकों के मुताबिक यह नयी तकनीक सबसे अधिक भीड़-भाड़ वाले स्थानों की पहचान में मदद करेगा जहां वायरस के ऐसे वाहकों के कई स्वस्थ लोगों से करीब से संपर्क में आने की आशंका बहुत ज्यादा होगी जिनमें रोग के लक्षण नजर नहीं आते हैं.
इस तकनीक से उन क्षेत्रों को ऐसे परिदृश्यों से बचने में मदद मिलेगी जहां वायरस किसी देश के घनी आबादी वाले इलाकों में विनाशकारी प्रभाव डालता है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इस रणनीति का इस्तेमाल कर वे यह समझने की उम्मीद करते हैं कि मोबाइल उपयोगकर्ता किसी क्षेत्र में कैसे आवागमन करते हैं और जुटते हैं.
इसके लिए वे हैंडओवर और सेल (पुन:) चयन प्रोटोकॉल का उपयोग करते हैं. इस तकनीक का संपूर्ण ब्योरा ‘आईईईई ओपन जर्नल ऑफ इंजीनियरिंग इन मेडिसिन एंड बायोलॉजी’ में दिया गया है. बता दें कि अभी तक कोरोना वायरस से लड़ने के लिए कोई भी वैक्सीन नहीं बन पाई है, लेकिन 13 तरह की वैक्सीन अभी भिन्न भिन्न स्टेज पर हैं. ऑक्सफर्ड के AstraZeneca Plc. वैक्सीन अभी ट्रायल पर है जो कि आखिरी स्टेज में पहुँच चुका है. वो दुनिया कि ऐसी पहली वैक्सीन है जो कि आखिरी स्टेज है. भारत की तरफ से सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने भी इसकी कवायद शुरू कर दी है. और इसके लिए 100 मिलियन डॉलर इनवेस्ट किए गए हैं. ChAdOx1 nCov-19 शुरूआत में 10 हजार 260 लोगों पर ट्रायल की जाएगी.
Posted By : Sameer Oraon