कोरोना महामारी को लेकर चौतरफा घिर गया है चीन, वुहान के लैब से कैसे निकला वायरस? अब तसल्ली से होगी जांच

अभी हाल ही में अमेरिकी खुफिया एजेंसी ने बड़ा खुलासा करते हुए यह कहा है कि चीन ने कोरोना वायरस का इस्तेमाल जैविक हथियार के तौर पर किया है. उसने इस वायरस के जरिए पूरी दुनिया के साथ अघोषित तृतीय विश्व युद्ध छेड़ दिया है. मीडिया की खबरों के अनुसार, चीन की सेना पीपल लिबरेशन आर्मी से जुड़े वैज्ञानिक और हथियार विशेषज्ञों ने भी अमेरिका खुफिया विभाग के दावों का समर्थन किया है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 15, 2021 10:44 AM

लंदन : चीन के वुहान स्थित रिसर्च लैब से कोरोना वायरस का दुनिया भर में फैलने के मामले की गंभीरता के साथ जांच होगी. अमेरिका और ब्रिटेन के वैज्ञानिकों के एक ग्रुप ने कोरोना महामारी की उपज का पता लगाने के लिए और अधिक गंभीरता से जांच करने की अपील की है. चीन की ओर से लगातार यह तर्क दिया जा रहा है कि वुहान शहर स्थित वायरस रिसर्च लैब से इत्तफाकन कोरोना महामारी फैलाने वाला कीटाणु (वायरस) बाहर निकल गया और फिर वह वुहान के जानवर मार्केट से लोगों को संक्रमित करना शुरू कर दिया, जिससे पूरी दुनिया में महामारी फैल गई.

अमेरिकी खुफिया विभाग ने किया चीन के जैविक हमले का खुलासा

उधर, दूसरी ओर अभी हाल ही में अमेरिकी खुफिया एजेंसी ने बड़ा खुलासा करते हुए यह कहा है कि चीन ने कोरोना वायरस का इस्तेमाल जैविक हथियार के तौर पर किया है. उसने इस वायरस के जरिए पूरी दुनिया के साथ अघोषित तृतीय विश्व युद्ध छेड़ दिया है. मीडिया की खबरों के अनुसार, चीन की सेना पीपल लिबरेशन आर्मी से जुड़े वैज्ञानिक और हथियार विशेषज्ञों ने भी अमेरिका खुफिया विभाग के दावों का समर्थन किया है.

अमेरिका और चीन के ट्रेड वार का नतीजा तो नहीं कोरोना का जैविक हमला?

चीन की इस हरकत के पीछे का तर्क यह है कि वर्ष 2019 के पहले से ही अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वार शुरू हो गया था. चीन की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से धराशायी होने लगी थी. उसका जीडीपी ग्रोथ 6.5 फीसदी से भी नीचे पहुंच गया था और आर्थिक वृद्धि में हुए नुकसान के पीछे चीन अमेरिका को सबसे बड़ा जिम्मेवार मानता है. ऐसी स्थिति में यह पहले से ही लग रहा था कि इन दोनों महाशक्तियों में जिस प्रकार का कारोबारी जंग छिड़ी हुई है, वह कहीं सैनिक युद्ध में तब्दील न हो जाए.

दिसंबर 2019 से चीन में फैला कोरोना

इसी बीच, दिसंबर 2019 में चीन वुहान शहर स्थित वायरस रिसर्च लैब से कोरोना का कीटाणु बाहर निकल जाता है और वह वहां के जानवर बाजार में प्रवेश कर जाता है. इसके बाद वह केवल चीन के वुहान शहर तक ही सीमित नहीं रहता है, बल्कि धीरे-धीरे कोरोना का वायरस भारत समेत पूरी दुनिया में फैलकर महामारी का सबब बन जाता है और वह लगातार अब तक अपना स्वरूप बदल-बदल कर तबाही मचा रहा है. कभी वह ब्रिटेन का स्ट्रेन बन जाता है, तो कभी ब्राजील का और अब तो विश्व स्वास्थ्य संगठन पूरी दुनिया को यह बताने लगा है कि भारत का स्ट्रेन दुनिया के 44 देशों में फैल गया है.

दुनिया भर में 36 लाख लोगों को लील चुका है कोरोना

पूरी दुनिया में इस समय कोरोना से 16 करोड़ लोग संक्रमित हैं और करीब 36 लाख मरीजों की जान जा चुकी है. इनमें से 6 करोड़ कोरोना के मामले अकेले भारत और अमेरिका में हैं और सबसे ज्यादा मौतें इन्हीं दो देशों में हुई हैं. चीन के दुनिया में सबसे बड़ा दुश्मन भारत और अमेरिका है. इसलिए सवाल यह उठ रहा है कि इस महामारी को पूरी दुनिया में फैलाने के पीछे चीन की कोई बहुत बड़ी साजिश तो नहीं है.

अमेरिका और ब्रिटेन का वैज्ञानिक समूह करेगा जांच, भारत के रवींद्र गुप्ता भी होंगे शामिल

अब जब पूरी दुनिया को महामारी के मुंह में धकेलने को लेकर चीन पर आरोप लग रहे हैं, तब अमेरिका और ब्रिटेन के प्रमुख वैज्ञानिक ग्रुप ने शुक्रवार को कोरोना महामारी की उत्पत्ति का पता लगाने के लिए और अधिक जांच करने का ऐलान किया है, जिसमें यह पता लगाया जाएगा कि चीन के वुहान शहर स्थित लैब से वायरस के दुर्घटनावश बाहर आया है या इसे जानबूझकर बाहर किया गया है. इन वैज्ञानिकों में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रतिरक्षाविज्ञान एवं संक्रामक रोग विशेषज्ञ भारतीय मूल के रवींद्र गुप्ता भी शामिल हैं.

ग्लोबल पॉलिसी बनाने के लिए जांच बेहद जरूरी

‘साइंस’ पत्रिका में प्रकाशित एक चिट्ठी में हार्वर्ड, स्टैनफोर्ड और एमआईटी जैसे दुनिया के प्रमुख विश्वविद्यालयों के विशेषज्ञों ने कहा है कि भविष्य के प्रकोपों ​​के जोखिम को कम करने के लिए ग्लोबल पॉलिसी बनाने के लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि कोरोना कैसे उभरा? इन विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि जब तक पर्याप्त आंकड़े न हों, तब तक प्राकृतिक तरीके से और लेबोरेटरी से वायरस के फैलने की परिकल्पनाओं को गंभीरता से लिया जाना चाहिए.

महामारी की उत्पत्ति का पता लगाना बेहद जरूरी

उन्होंने लिखा है कि प्रासंगिक विशेषज्ञता वाले वैज्ञानिकों के रूप में हम डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक, अमेरिका और 13 अन्य देशों एवं यूरोपीय संघ से सहमत हैं कि इस महामारी की उत्पत्ति के बारे में अधिक स्पष्टता प्राप्त करना आवश्यक और संभव है. कोरोा महामारी के इतिहास का जिक्र करते हुए इन वैज्ञानिकों ने कहा कि किस तरह 30 दिसंबर, 2019 को प्रोग्राम फॉर मॉनिटरिंग इमर्जिंग डिजीज ने दुनिया को चीन के वुहान में अज्ञात कारणों से होने वाले निमोनिया के बारे में सूचित किया था. इससे कारक प्रेरक एजेंट सीवीयर एक्यूट रेसपीरेटरी सिंड्रोम कोरोना वायरस 2 (एसएआरएस-सीओवी-2) की पहचान हुई थी.

कोरोना पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट पर्याप्त नहीं

मई 2020 में विश्व स्वास्थ्य सभा ने अनुरोध किया है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के महानिदेशक एसएआरएस-सीओवी-2 की उत्पत्ति का पता लगाने के लिए भागीदारों के साथ मिलकर काम करें. नवंबर 2020 में चीन-डब्ल्यूएचओ के संयुक्त अध्ययन के लिए संदर्भ की शर्तें जारी की गईं. अध्ययन के पहले चरण के लिए जानकारी, आंकड़े और नमूने एकत्र किए गए थे और टीम द्वारा संक्षेप में प्रस्तुत किए गए थे.

शक के दायरे में चीन और WHO महानिदेशक का बयान

हालांकि प्राकृतिक या किसी प्रयोगशाला से दुर्घटना वायरस के प्रसार के समर्थन में कोई स्पष्ट निष्कर्ष नहीं था. टीम ने चमगादड़ों से इस वायरस के मनुष्यों में फैलने के बारे में ‘संभावना’ जाहिर की थी, जबकि किसी लेबोरेटरी से यह फैलने को बेहद असंभव करार दिया. उन्होंने चेतावनी दी है कि इसके अलावा, दो सिद्धांतों को संतुलित विचार नहीं दिया गया. विशेषज्ञों ने डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक टेड्रस अधानम घेब्रेयेसस की उस टिप्पणी की ओर इशारा किया, जिसमें कहा गया कि रिपोर्ट में प्रयोगशाला दुर्घटना का समर्थन करने वाले साक्ष्य पर विचार अपर्याप्त था और संभावना का पूरी तरह से मूल्यांकन करने के लिए अतिरिक्त संसाधन प्रदान करने की पेशकश की.

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Posted by : Vishwat Sen

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