China|Artificial Moon| आखिरकार चीन ने नकली सूरज के बाद अब नकली ‘चांद’ (Artificial Moon) भी बना लिया है. चीन (China News) ने कहा है कि इससे बिजली खर्च में कटौती होगी, तो कई वैज्ञानिक शोध में भी फायदे मिलेंगे. चीन ने कहा है कि गुरुत्वाकर्षण संबंधी एक प्रयोग के लिए उसने चांद बनाया है. चीन ने कहा है कि उसके चांद पर ग्रैविटी बिल्कुल नहीं है. चीन का चांद जीरो ग्रैविटी (Zero Gravity Moon) वाला है.
चीन के वैज्ञानिकों ने इसे छोटा प्रयोग बताया है. कहा है कि इस नकली चांद (Artificial Moon of China)पर उसने चुंबकीय शक्ति की परख की. उसने कहा है कि इसका उद्देश्य भविष्य में चुंबकीय शक्ति से चलने वाले यान तैयार करना है. यातायात के नये साधन खोजने हैं. साथ ही चांद पर बस्ती भी बसाना है, जहां लोगों का जीवन शुरू हो सके.
चाइना यूनिवर्सिटी ऑफ माइनिंग एंड टेक्नोलॉजी के जियोटेक्नीकल इंजीनियर ली रुईलिन ने कहा है कि साल के अंत तक यानी वर्ष 2022 के अंत तक वह एक बेहद शक्तिशाली चुंबकीय शक्ति वाला वैक्यूम चैंबर बनायेगा. इस वैक्यूम चैंबर का व्यास 2 फीट होगा. इस वैक्यूम चैंबर को पत्थरों और धूल से भर दिया जायेगा, जैसे चांद की सतह पर होती है. पहली बार चांद की ऐसी सतह धरती पर बनेगी.
चीन के वैज्ञानिक ली रुईलिन ने कहा है कि चीन इसका छोटा सफल प्रयोग पहले ही कर चुका है. अब लंबा प्रयोग करेंगे. इसके बाद इस प्रयोग को चांद पर भेजा जायेगा. चांद पर इंसानी बस्ती बनाने के नये तरीके खोजने के लिए चीन ने यह प्रयोग शुरू किया है. उसका कहना है कि चांद पर धरती से 6 गुणा कम गुरुत्वाकर्ण (Gravitation) है. इसलिए लोग सतह पर चल नहीं पाते. ऐसे में बस्ती बसाना संभव नहीं है.
चीन के वैज्ञानिकों ने कहा है कि यूनिवर्सिटी ऑफ मैनचेस्टर के फिजिसिस्ट आंद्रे गीम के प्रोजेक्ट से उन्हें वैक्यूम चैंबर का आइडिया आया. वर्ष 2000 में आंद्रे गीम को एक ऐसा यंत्र बनाने के लिए नोबेल पुरस्कार मिला था, जिसमें उन्होंने गुरुत्वाकर्षण यानी ग्रैविटी कम करके मेंढक को हवा में उड़ाया था.
बताया जा रहा है कि आंद्रे गीम के लैविटेशन ट्रिक का उपयोग करके ही चीनी वैज्ञानिकों ने नकली चांद बनाया है. इसे डायमैग्नेटिक लेविटेशन (Diamagnetic Levitation) कहते हैं.
चीन ने कहा है कि अगर वैक्यूम चैंबर का प्रयोग सफल रहा, तो इसे लूनर रोवर चांगई के अगले मून मिशन पर भेजा जायेगा. वर्ष 2019 और वर्ष 2020 में क्रमश: चीन चांगई-4 और चांगई-5 को चांद पर भेज चुका है. चांगई-5 तो चांद की सतह से सैंपल लेकर लौटा था. बता दें कि वर्ष 2029 तक चीन चांद के दक्षिण ध्रुव पर एक इंसानी रिसर्च सेंटर बनाने की योजना पर काम कर रहा है.
ऐसा नहीं है नकली चांद बनाने की कोशिश करने वाला चीन दुनिया का पहला देश है. इससे पहले भी रातों को रोशन करने के लिए ऐसे नकली चांद बनाने की योजनाएं बन चुकी हैं. वर्ष 1993 में रूस के वैज्ञानिकों ने 20 मीटर चौड़ा एक रिफ्लेक्टर मिरर स्पेस स्टेशन की तरफ भेजा था. नाम्या 2 नाम के एक सैटेलाइट को धरती के 5 किलोमीटर के व्यास पर रोशनी फैलाने के लिए भेजा गया था, जो जलकर राख हो गया. 90 के दशक में ही फिर से नाम्या का बड़ा मॉडल बनाने की कोशिश हुई, लेकिन इसमें भी सफलता नहीं मिली.
चीन के वैज्ञानिकों ने दावा किया था कि उनका यह नकली चांद स्ट्रीट लाइट पर आने वाले खर्च से भी सस्ता होगा. चेंगडु एयरोस्पेस के अधिकारियों ने तीन साल पहले बताया था कि पैसे बचाने के लिए ही नकली चांद बनाया जा रहा है. वैज्ञानिक ने कहा था कि 50 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में नकली चांद से होने वाली रोशनी से बिजली पर आने वाले खर्च में हर साल 1.2 अरब युआन यानी 17.3 करोड़ डॉलर की बचत होगी.
चीन के वैज्ञानिकों ने इसकी एक खासियत यह भी बतायी थी कि भीषण प्राकृतिक आपदा के वक्त भी उस क्षेत्र में कभी ब्लैकआउट नहीं होगा. यानी बाढ़, भूकंप जैसी स्थिति में भी यह नकली चांद रोशनी देता रहेगा. चीनी वैज्ञानिकों ने कहा था कि इसे एक निवेश के तौर पर देखा जा रहा है. अगर 15 साल तक एकमुश्त निवेश पर कोई चीज मुफ्त में बिजली देने लगे, तो यह बहुत सस्ता है.
Posted By: Mithilesh Jha