अफगानिस्तान में भारत की मुश्किलें, तालिबान से मिलकर चीन-पाकिस्तान बिगाड़ सकते हैं हालात
Afghanistan News: अफगानिस्तान में भारत के बड़े पैमाने पर किये गये व्यापारिक निवेश पर भी प्रतिकूल असर पड़ सकता है.
Afghanistan News: अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान (Taliban) के काबिज होने के बाद भारत की मुश्किलें बढ़ने की आशंका जतायी जा रही है. कूटनीति के जानकार बता रहे हैं कि भारत ने पिछले 20 साल में अफगानिस्तान में बड़ा निवेश किया है. लेकिन, तालिबान के वहां की सत्ता संभालने के बाद चीन और पाकिस्तान उससे मिलकर भारत का खेल बिगाड़ सकते हैं. यह कट्टरपंथी संगठन भारत के लिए गंभीर आतंकवादी चुनौतियां पेश कर सकता है.
अफगानिस्तान में भारत के बड़े पैमाने पर किये गये व्यापारिक निवेश पर भी प्रतिकूल असर पड़ सकता है. भारत के साथ बार-बार सीमा पर टकराव मोल लेने वाले पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान कभी भी तालिबान के साथ मिलकर रणनीतिक चुनौतियां पेश कर सकते हैं. यही वजह है कि विशेषज्ञ बता रहे हैं कि भारत को अब अफगानिस्तान को लेकर नये सिरे से रणनीति बनानी होगी.
दरअसल, भारत ने अफगानिस्तान में तीन बिलियन डॉलर (करीब 223 अरब रुपये) का निवेश किया है. चाबहार बंदरगाह के विस्तार पर भारत ने अच्छा-खासा निवेश कर रखा है. इन्हें सुरक्षित करने के लिए भारत को अब नये सिरे से विचार करना होगा. जानकार बताते हैं कि तालिबान अगर अपने पुराने कट्टरपंथी रुख पर अडिग रहा, तो जम्मू-कश्मीर में आईएसआई की मिलीभगत से वह भारत के लिए नयी सुरक्षा चुनौती पेश कर सकता है.
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इतना ही नहीं, पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) में चीन और अफगानिस्तान के जरिये बीआरआई के विस्तार की योजना बना सकता है. इसलिए अभी यह देखने की जरूरत है कि किसी समझौते के तहत तालिबान काबुल पहुंचा है या बंदूक की नोंक पर सत्ता पर काबिज हुआ है. तालिबान ने अगर आतंकवाद के सहारे काबुल और अफगानिस्तान पर कब्जा किया है, तो भारत सहित संयुक्त राष्ट्र के सभी देशों को इस सरकार को खारिज करना होगा.
वैकल्पिक योजना बनाये विश्व
एक बार यह स्पष्ट हो जाये कि तालिबान ने हथिया की नोंक पर और आतंक के सहारे अफगानिस्तान की सत्ता हथियायी है, तो विश्व के तमाम देशों और संयुक्त राष्ट्र को साझा वैकल्पिक योजना पर काम करना होगा. इसमें वित्तीय मदद पर रोक सहित अन्य विकल्प शामिल हैं. भारत को चीन और पाकिस्तान की हरकतों पर भी नजर रखनी होगी. हमें अपने लोगों की सुरक्षा को प्राथमिकता देना है. फिर इस बात का दबाव बनाना है कि हमने अफगानिस्तान में जो इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार किया है, उसको कोई नुकसान न पहुंचाये.
आतंकवादी होंगे मजबूत
सामरिक विषयों के जानकार बताते हैं कि तालिबान के शासन को अगर वैश्विक मंजूरी मिल गयी, तो लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकवादी संगठन मजबूत होंगे. ये आतंकवादी पाकिस्तान-अफगानिस्तान के सीमावर्ती इलाकों में डेरा जमाये हुए हैं. तालिबान के आने से पूरा इलाका उनके लिए सुरक्षित पनाहगाह बन जायेगा. यह भी कहा जा रहा है कि अफगानिस्तान पर तालिबान के नियंत्रण के बाद के अफगानिस्तान में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी का प्रभाव बढ़ेगा.
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भारत को हो सकता है भारी वित्तीय नुकसान
भारत को अफगानिस्तान में भारी वित्तीय नुकसान उठाना पड़ सकता है. जानकार बताते हैं कि भारत-अफगानिस्तान व्यापार के लिहाज से बड़े असर की संभावना है. चाबहार को लेकर विस्तार की जो योजना भारत ने अफगानिस्तान के जरिये बनायी थी, उस पर असर पड़ना तय माना जा रहा है, क्योंकि चीन और पाकिस्तान तालिबान की मदद से इसमें रोड़ा अटकाने का प्रयास करेंगे. ग्वादर पोर्ट को ज्यादा तरजीह मिलने की आशंका जतायी जा रही है.
भारत ने यहां जरांज-डेलाराम हाईवे और सलमा डैम के साथ कई बड़े प्रोजेक्ट में पैसे लगाये हैं. इन निर्माणाधीन प्रोजेक्ट्स पर अभी से खतरा मंडराने लगा है. कहा जा रहा है कि अफगानिस्तान में एक बार फिर से तालिबान के आने से दुनिया भर में इस्लामिक कट्टरपंथ के बढ़ने का खतरा बढ़ गया है. इसके असर से भारत कभी भी अछूता नहीं रह सकता. पाकिस्तान और चीन ने सबसे पहले तालिबान की सरकार को मान्यता दी, जो भारत के लिए चिंता का विषय है.
Posted By: Mithilesh Jha