लंदन : कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने निमोनिया से ग्रस्त कुछ लोगों में कुत्तों में पाए जाने वाले कोरोना वायरस का पता लगाया है. हालांकि, कोरोना वायरस नाम सुनते ही इसके खतरे को लेकर लोग-बाग घबरा जाते हैं, इसका विश्लेषण करने वाले वैज्ञानिक कहते हैं कि इससे किसी को परेशान होने की जरूरत नहीं है. मलेशिया के सरवाक के एक अस्पताल में करीब आठ लोग कुत्तों में पाए जाने वाले कोरोना वायरस से संक्रमित मिले हैं. अंतराष्ट्रीय स्तर के प्रसिद्ध वैज्ञानिकों के एक ग्रुप ने इस बात की जानकारी वहां के नैदानिक संक्रामक रोगों से संबंधित विभाग को दे दी है.
इस बीच, सवाल पैदा होता है कि कुत्तों में पाया जाने वाला कोरोना वायरस यदि इंसानों को संक्रमित करता है, तो यह इंसानों वाले कोविड-19 का संक्रमण फैलाने वाले सार्स कोव-2 से कितना अधिक खतरनाक है? कैंब्रिज यूनिवर्सिटी की वायरल इम्यूनोलॉजी में क्लिनिकल रिसर्च फैले और वेटनरी सर्जन सारा एल कैडी के अनुसार, कुत्तों में पाया जाने वाला कोरोना वायरस सार्स कोव-2 से बिल्कुल अलग है. दरअसल, वैज्ञानिक कोरोना परिवार के वायरस को चार ग्रुप (अल्फा, बीटा, गामा और डेल्टा) में विभाजित करते हैं.
सारा एल कैडी ने कहा कि कुत्तों के इस वायरस के बारे में दुनिया भर के वैज्ञानिक करीब 50 साल से जानते हैं. इस दौरान यह वायरस एक अनजान अस्तित्व के तौर पर वातावरण में मौजूद रहे. अभी तक इस वायरस को लेकर केवल वेटनरी डॉक्टर या कुत्तों को पालने वाले शौकीन इसमें रुचि रखते थे. कुत्तों के इस वायरस को इंसानों को संक्रमित करने का अभी तक कोई डेटा उपलब्ध नहीं है, लेकिन अब जबकि पूरी दुनिया में कोरोना महामारी फैली है, तब कुत्तों वाले इस वायरस की मौजूदगी के भी निशान मिल रहे हैं, जहां पहले इसे कभी देखा नहीं गया.
कैडी ने कहा कि यह वैज्ञानिकों की गंभीर खोज का ही नतीजा है कि आजकल इंसानों में भी कुत्तों में पाया जाने वाला कोरोना वायरस का संक्रमण देखा जा रहा है. इस खोज में वैज्ञानिकों ने उन लोगों को शामिल किया, जो कोविड-19 के संक्रमण से काफी पहले ही ठीक हो चुके थे. दरअसल, ये वैज्ञानिक उन लोगों में कुत्तों के कोरोना वायरस की खोज नहीं कर रहे थे, बल्कि वे एक ऐसा टेस्ट डेवलप करने की कोशिश में जुटे थे, जिससे एक ही समय में कोरोना वायरस के सभी स्ट्रेन का पता लगाया जा सके. वैज्ञानिकों ने इसका नाम पैन-सीओवी टेस्ट दिया है.
लैबोरेटरीज में तैयार वायरस के नमूनों पर टेस्ट के बाद वैज्ञानिकों ने मलेशिया के अस्पताल में भर्ती निमोनिया के करीब 192 मरीजों के नमूनों पर इसका टेस्ट किया गया. इनमें से नौ नमूनों का रिजल्ट कोरोना वायरस से पॉजिटिव निकला. इसे लेकर और जांच करने पर पता चला कि इन नौ नमूनों में से पांच सामान्य इंसानों वाले कोरोना वायरस थे, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से चार नमूने कुत्तों में पाए जाने वाले कोरोना वायरस पाए गए.
इसके बाद इसी अस्पताल के मरीजों की और जांच करने पर चार और पॉजिटिव मरीज सामने आए. कुत्तों में पाए जाने वाले कोरोना वायरसों के बारे में अधिक जानने के प्रयासों के तहत शोधकर्ताओं ने इन सभी आठ मलेशियाई मरीजों की नाक और गले के नमूनों की जांच का अध्ययन किया. उन्होंने ऐसा यह जानने के लिए किया कि क्या कोई जीवित वायरस मौजूद है?
लेबोरेटरीज में इन नमूनों को कुत्ते की कोशिकाओं में डाला गया. एक ही नमूने से वायरस को अच्छी तरह से दोहराया गया और वायरस के कणों को इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी का उपयोग करके देखा जा सकता था. वैज्ञानिक वायरस के जीनोम को अनुक्रमित करने में भी सक्षम थे. विश्लेषण में पाया गया कि कुत्तों में पाया जाने वाला कोरोनावायरस कुछ अलग अल्फा कोरोना वायरस (जिसमें सूअर और बिल्लियां भी शामिल थे) से निकटता से संबंधित था और यह भी पता चला कि इसे पहले कहीं और पहचाना नहीं गया था. इसका आगे फैलने का कोई सबूत नहीं है.
अब सवाल यह पैदा होता है कि क्या मरीजों में निमोनिया का संक्रमण फैलाने के लिए कुत्तों में पाया जाने वाला कोरोना वायरस जिम्मेदार था? इस सवाल के जवाब में वैज्ञानिक कहते हैं कि फिलहाल, हम इस सवाल का जवाब नहीं दे सकते. जांच का हिस्सा बनाए गए आठ में से सात मरीज एक साथ दूसरे वायरस से भी संक्रमित थे, जो या तो एडेनोवायरस, इन्फ्लूएंजा या पैरेनफ्लुएंजा वायरस था. हम जानते हैं कि ये सभी वायरस अपने आप में निमोनिया का कारण बन सकते हैं. इसलिए इस बात की अधिक संभावना है कि ये बीमारी के लिए जिम्मेदार थे. हम कह सकते हैं कि इन मरीजों में मिले निमोनिया का कुत्तों के कोरोना वायरस के साथ संबंध है, लेकिन यह नहीं कह सकते कि सिर्फ यह वायरस ही उनमें निमोनिया का कारण है.
हालांकि, इस बात को लेकर आशंकाएं हैं कि मलेशिया के इन मरीजों में पाया गया कुत्तों का कोरोना वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैल सकते हैं और अगर ऐसा हुआ तो उसका नतीजा बड़े पैमाने पर बीमारी के प्रकोप के तौर पर सामने आएगा. इस तथ्य को प्रमुखता से उठाने वाले यह स्पष्ट नहीं करते कि इंसानों में संक्रमण के यह मामले दरअसल 2017 और 2018 के हैं. ऐसे में इस स्रोत से कुत्तों के कोरोना वायरस के प्रकोप की संभावना और भी कम हो जाती है, क्योंकि बीच के तीन से चार साल में इसके आगे फैलने का कोई सबूत नहीं है.
Posted by : Vishwat Sen