अमेरिका में हार्वर्ड विश्वविद्यालय (Harvard University) के शोधकर्ताओं ने कहा है कि खराब वायु या वायु प्रदूषण (Air Pollution) का सीधा संबंध कोरोना संक्रमण (Coronavirus) से है. अपने अध्ययन में हार्वर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं का कहना है कि जहां वायु प्रदूषण उच्च स्तर पर है वहां के लोग कोरोना के ज्यादा शिकार हो रहे हैं साथ ही उसकी प्रतिरोधक क्षमता में भी कमी देखने को मिली है. इसके विपरित, जहां वायु की गुणवत्ता बेहतर है, वहां के लोगों में कोविड संक्रमण की दर अपेक्षाकृत कम है और उनकी प्रतिरोधक क्षमता भी अधिक है.
अध्यन का मूल परिणाम यह है कि जहां लंबे समय तक लोग वायु प्रदूषण में रहते है उनपर कोरोना के गंभीर परिणाम देखते को मिल रहे हैं. इससे इतर जहां, वायु की गुणवत्ता सही है, वायु स्वच्छ है वहां कोरोना का बहुत घातक असर देखने को नहीं मिल रहा है. इसके अलावा भी वायु प्रदूषण से सांस संबंधी बीमारी का खतरा बना रहता है. और कोरोना वायरस का असर फेफड़ो में बढ़ने की संभावना बनी रहती है.
कोरोना का सबसे घातक असर अमेरिका पर पड़ा है. इसमें से भी उन शहरों पर इसका ज्यादा असर देखने को मिला है जहां वायु प्रदूषण का असर सबसे ज्यादा है. हार्वर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने यह भी कहा है कि औसतन 1ug / m3 की बढोत्तरी कोरोना की मृत्यु दर को लगभग 11 फीसदी बढ़ा सकती है. हार्वर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने अध्धयन में अमेरिका में कोरोना के 3 हजार 89 लोगों की मृत्यु दर का एक सांख्यिकीय विश्लेषण किया. अध्धयन में विशेषज्ञो ने पाया कि लंबी अवधि के औसत PM 2.5 s में 1 ug /m3 की वृद्धि 11 फीसदी मृत्यु दर को बढ़ा दी है.
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यह आंकड़ा भारत जैसे देश के लिए और भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि यहां प्रदूषण की स्तर भी उच्च है और जनसंख्या का घनत्व भी काफी ज्यादा है. हालांकि, बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए दिल्ली समेत कई राज्यों की सरकार ने पटाखों पर बैन लगा दिया है.
Posted by: Pritish sahay