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Israel Palestine conflict : आखिर क्या है इजरायल -फिलिस्तीन विवाद, जिसकी वजह से अबतक लाखों को गंवानी पड़ी जान

दुनियाभर में जब यहूदियों के साथ अत्याचार हो रहा था और जिस तरह का अत्याचार दूसरे विश्व युद्ध में उनके साथ हुआ था वह भयावह था. दूसरे विश्व युद्ध में हिटलर के नाजी शासन ने करीब 42 लाख यहूदियों को गैस चैंबर में भर कर उनका नरसंहार किया.

-कुणाल किशोर-

Israel Palestine conflict explainer : इजरायल और हमास के बीच जारी ताजा युद्ध में अब तक दो हजार से ज्यादा लोगों की जान चली गई है और लाखों लोग बेघर हो गए हैं . सात अक्टूबर को हमास ने इजरायल के शहरों को निशाना बना कर रॉकेट से हमला किया गया. हमास ने दावा किया कि उसने करीब 5000 हजार रॉकेट से धावा बोला. इतना ही नहीं सैंकड़ोन की तादाद में हथियारबंद आतंकी इजरायल की सीमा में घुस गये और 100 से अधिक लोगों को बंधक बना लिया. इस हमले से इजरायल बौखला गया और उसने जवाबी कार्रवाई की. इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने दुश्मनों को भारी कीमत चुकाने की बात कही है, जिसके बाद रविवार से ही गजा पट्टी पर हवाई हमले हो रहे हैं.

क्या है इस विवाद का इतिहास

दरअसल दुनियाभर में जब यहूदियों के साथ अत्याचार हो रहा था और जिस तरह का अत्याचार दूसरे विश्व युद्ध में उनके साथ हुआ था वह भयावह था. दूसरे विश्व युद्ध में हिटलर के नाजी शासन ने करीब 42 लाख यहूदियों को गैस चैंबर में भर कर उनका नरसंहार किया. तब यहूदियों को ये महसूस हुआ कि यूरोप भी उनके लिए सुरक्षित स्थान नहीं है. फिर उन्होंने ये फैसला किया कि फिलस्तीन के अलावा उनके लिए कोई ऐसी जगह नहीं है जहां वो सुरक्षित हों . सुरक्षा की गारंटी उन्हें सिर्फ अलग यहूदी राष्ट्र दी दे सकता है. दरअसल यहूदी 1000 ईसी पूर्व (BC) में वहीं रहते थे जहां आज का इजराइल और फिलस्तीन है. धीरे-धीरे यहूदी उसी स्थान पर आकर बसने लगे, अरब वहां पहले से थे. दोनों समुदायों में मतभेद होने लगे और मतभेद झड़पों में तब्दील हो गये. ब्रिटिश सरकार इसे हल करने में असक्षम थी और ब्रिटेन ने ये मामला संयुक्त राष्ट्र संघ में भेज दी.

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4 अगस्त 1948 को इजरायल की स्थापना हुई

दूसरे विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ की भी स्थापना हुई थी और संयुक्त राष्ट्र ने प्रस्ताव रखा कि इस भूमि को तीन टुकड़ो में बांट दिया जिसका एक भाग यहूदियों को दे दिया जाए , वहीं दूसरा भाग अरबों को दिया जाए और तीसरा भाग ( येरूशलम ) जहां यहूदी और मुस्लिम दोनों समुदाय रहते थे यूएन के अंतर्गत रहे और इसी तरह 14 अगस्त 1948 को इजरायल देश की स्थापना हुई .

1948 का युद्ध

1948 में इजरायल के अस्तित्व में आने के बाद से ही यहां युद्ध शुरू हो गया . इजरायल अपनी स्थापना के बाद से ही अरबों की आंखों में खटकने लगा और फिर हुआ भी वही नवनिर्मित इजरायल पर एक साथ चार देशों ने ( मिस्त्र, सीरिया, इराक और जार्डन ) मिलकर हमला बोल दिया. इस युद्ध में फिलस्तीनी लड़ाकों ने अरब देशों की मदद से युद्ध तो लड़ा लेकिन इजरायल के हाथों उन्हें मुंह की खानी पड़ी और दिये गए जमीन के कुछ हिस्से को भी गंवाना पड़ा. परिणाम ये हुआ कि लाखों लोगों को शरणार्थी बनने के लिए मजबूर होना पड़ा और उन्हें अपना देश छोड़ना पड़ा. 1949 तक चले इस युद्ध में आखिरकार संघर्ष विराम की घोषणा हुई.

1967 में आया अहम मोड़

इस विवाद में अहम मोड़ तब आया जब एक साथ 6 अरब देशों जिसमें मिस्त्र ,सीरिया,जॉर्डन, इराक,सऊदी अरब और कुवैत ने मिलकर 5 जून 1967 को इजराइल पर हमला कर दिया. छह दिनों तक चले इस युद्ध में इजरायल ने अकेले ही इन 6 देशों को धूल चटा दी . छह दिन तक चले इस युद्ध को ” SIX DAYS WAR ” भी कहा जाता है . इस युद्ध से पहले गाजा पट्टी पर मिस्त्र , गोलान हाइटस पर सीरिया और वेस्ट बैंक पर जार्डन का कब्जा था जिसे इजरायल ने युद्ध में जीत लिया. युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने प्रस्ताव पारित कर इजारइल को जीते हुए इलाके को छोड़ने के लिए कहा .

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दोनों समुदायों के लिए क्यों इतना महत्वपूर्ण है येरूशलम

इजराइल और फिलस्तीन दोनों ही अपनी ही राजधानी येरूशलम को बताते हैं, बल्कि इजराइल ने तो अपनी आधिकारिक राजधानी येरूशलम को ही घोषित ही कर रखा है. दरअसल येरूशलम तीन धर्म यहूदी , इस्लाम और ईसाईयों के लिए धार्मिक महत्व रखता है .

  • 1. येरूशलम में स्थित पश्चिमी दीवार यहूदियों के लिए महत्व रखता है. इसलिए यहूदी इसे पवित्र स्थान मानते हैं .

  • 2. अगर इस्लाम धर्म की बात करें तो अल-अक्सा मस्जिद भी येरूशलम में स्थित है जिसे मुस्लमान मक्का और मदीना के बाद तीसरा सबसे पवित्र स्थल मानते हैं .

  • 3. जहां तक ईसाई धर्म की बात है तो ईसाइयों का मानना है कि येरूशलम में ही वह स्थान है जहां पर ईसा मसीह को सूली पर लटकाया गया था और येरूशलम में एक चर्च भी स्थित है .

कैसे हुआ हमास का जन्म

1970 में फिलिस्तीनियों ने एकबार फिर इजरायल के विरुद्ध आवाज बुलंद की. यासिर अराफात की अगुवाई वाले फतह ने PLO ( फिलिस्तीन लिब्रेशन ऑर्गनाइजेशन ) की स्थापना की. इस संगठन का मुख्य उद्देश्य फिलिस्तीनियों की आवाज उठाना, उनको पुनर्स्थापित करना और उनकी सुरक्षा करना था. इसी के साथ फिर से इजराइल के साथ लड़ाइयां चलती रही. 1987 वह साल था जब फिलिस्तिनियों ने चरमपंथी संगठन हमास का गठन किया. हमास अस्तित्व में आया ही इसलिए था कि आतंकवाद के दम पर वह जमीन हथिया लेगा .

1993 का ओसलो समझौता

दोनों देशों के बीच 1993 में एक शांति समझौता होता है जिसे ओसलो एकोर्ड या ओसलो समझौता कहते हैं . इस समझौते में कहा गया कि फिलिस्तीन इजराइल को देश के रूप में मान्यता देगा और इजराइल ने PLO को फिलिस्तीन के लोगों का प्रतिनिधि माना. इसमें करार की बड़ी बात ये रही कि फिलिस्तीन सरकार वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी में लोकतांत्रिक ढंग से सरकार चलाएगी और नियंत्रित करेगी, जिसे हमास ने सिरे से नकार दिया और पूरे इलाके को लेने का ऐलान कर दिया. राजनीतिक पार्टी फतह ने हमास को सरकार में शामिल करने से इनकार कर दिया जिससे कि इन दोनों के बीच मतभेद और गहरे हो गए. मतभेद इतने बढ़ गए कि 2007 में ‘फतह’ पार्टी को गाजा पट्टी छोड़ कर जाना पड़ा है जिसके बाद पूरे गाजा पर हमास का एकाधिकार है .

इजरायल गाजापट्टी पर ही क्यों करता है हमला

2007 से हमास के नियंत्रण वाले गाजा से इजरायल पर लगातार राॅकेटों से हमले होते रहते हैं. इस वजह से इजरायल ने पूरे गाजा की सीमा को लॉक कर रखा है . इस वजह गाजा में बिजली,पानी की भारी किल्लत है. बेरोजगारी भी रिकॉर्ड स्तर पर है . इजराइल आरोप लगाता रहा है कि ईरान और कई दूसरे देश मिस्त्र के रास्ते हमास को हथियार सप्लाई करते रहते हैं . इसके पूर्व साल 2021 में 11 दिनों तक संघर्ष चला था और 256 फिलिस्तीनियों की जान गई थी और करीब 13 इजरायली नागरीकों की मौत हुई थी .

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