रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हुए तो पश्चिमी देशों ने ताबड़तोड़ रूस पर प्रतिबंध लगा दिये. यूरोपियन यूनियन ने भी गंभीर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिये. रूस की अर्थव्यवस्था चरमरा गयी. उसकी मुद्रा रूबल की हालत पतली हो गयी. लेकिन, युद्ध के करीब तीन महीने बाद अब स्थिति बदल रही है. रूस की अर्थव्यवस्था भले अभी पटरी पर नहीं लौटी, लेकिन राष्ट्रपति पुतिन ने अपने लोगों को अच्छी खबर दी है. रूस में लोन लेना सस्ता कर दिया गया है.
इसकी वजह यह है कि रूस में सेंट्रल बैंक ने ब्याज दरों में कटौती कर दी है. आर्थिक प्रतिबंधों की वजह से कुछ दिनों के लिए डॉलर के मुकाबले रूस की मुद्रा रूबल काफी कमजोर हो गयी थी, लेकिन अब हालात बदल गये हैं. प्रतिबंधों की वजह से रूस की अर्थव्यवस्था भले लड़खड़ा गयी हो, लेकिन रूबल में अब मिलाजुला रुख देखा जा रहा है. केंद्रीय बैंक, जिसने ब्याज दर को बढ़ाकर 20 फीसदी कर दिया था, उसे घटाकर अब 11 फीसदी कर दिया गया है.
बता दें कि 56 देशों की करंसी के विश्लेषण के आधार पर डॉलर के मुकाबले रूबल की स्थिति में सुधार हुआ है. वर्ष 2018 की तुलना में इसमें सुधार हुआ है. यूक्रेन पर हमले के बाद रूबल जिस स्तर तक गिरा था, आज के समय में उसकी तुलना में कुछ बेहतर स्थिति में है. वर्ष 2022 में रूबल डॉलर के मुकाबले 22 फीसदी तक मजबूत हुआ है. गुरुवार को रूसी मुद्रा डॉलर के मुकाबले 61 रूबल के स्तर पर था. यही रूबल 7 मार्च को 158 के स्तर तक गिर गया था.
द वॉल स्ट्रीट जर्नल के एक लेख में कहा गया है कि आमतौर पर किसी देश की मुद्रा उसकी अर्थव्यवस्था से जुड़ी होती है. उसे ऊपर या नीचे ले जाती है. रूस के मामले में उसकी मुद्रा ही अर्थव्यवस्था पर बोझ बन गयी है. इसलिए रूस ने अपनी मुद्रा को कमजोर करने की कोशिशें इस सप्ताह शुरू कर दी. गुरुवार को रूस के केंद्रीय बैंक ने ब्याज दरों को 14 फीसदी से घटाकर 11 फीसदी कर दिया.
इस हफ्ते की शुरुआत में, रूस ने पूंजी नियंत्रण में ढील दी, जिसके लिए कंपनियों को अपने विदेशी मुद्रा राजस्व का 80% रूबल में बदलने की आवश्यकता थी. अब उन्हें सिर्फ आधा बदलना है. अमेरिकी ब्याज दरों में वृद्धि के बाद डॉलर के मुकाबले कमजोर मुद्राओं के ग्लोबल ट्रेंड को बदल दिया. इस साल डॉलर के मुकाबले यूरो 6.1 फीसदी तक गिरा है. हालांकि, ब्राजील और उरुग्वे की मुद्रा पर वैसा असर नहीं देखा गया है.
अर्थशास्त्री और व्यापारी कहते हैं कि रूबल की मजबूती की दो वजह है. एक तो रूस की नीतियां और दूसरी प्रतिबंधों की वजह से वस्तुओं के निर्यात पर पड़ने वाला असर. एक ओर रूस ने कंपनियों को रूबल खरीदने के लिए मजबूर किया, तो दूसरी तरफ मास्को ने विदेशी मुद्रा बैंक अकाउंट से डॉलर निकालने की सीमा घटा दी. इतना ही नहीं, बैंकों को ग्राहकों को विदेशी मुद्रा बेचने पर भी रोक लगा दी. कई तरह के प्रतिबंधों की वजह से रूस के आयात पर रोक लग गयी, लेकिन उसके कमोडिटी एक्सपोर्ट ने उसकी मुद्रा को मजबूती दी. रूस ने यूरोपीय देशों से नैचुरल गैस की कीमत रूबल में देने की मांग रख दी.
रूस को इसकी कीमत चुकानी पड़ी. युद्ध के तुरंत बाद सेंट्रल बैंक को ब्याज दरों को बढ़ाकर 20 फीसदी कर देना पड़ा, ताकि लोग रूबल को अपने पास रखें. इसकी वजह से अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ा, तो केंद्रीय बैंक ने ब्याज दरों में कटौती शुरू कर दी. यह तीसरा मौका है, जब रूस में ब्याज दरों में कटौती की गयी है.
आमतौर पर मजबूत मुद्रा किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए लाभदायक होता है. इससे मुद्रास्फीति नियंत्रण में रहती है और आयात सस्ता होता है. लेकिन, रूस पर लगे प्रतिबंधों की वजह से असर विपरीत हुआ. रूस कुछ आयात नहीं कर सकता. इसलिए जरूरी सामानों की किल्लत हो रही है और महंगाई बढ़ रही है. खाद्य सामग्रियों की कीमतें पांच गुना बढ़ गयी हैं. कामगारों की कमाई पिछले साल की तुलना में 1.2 फीसदी तक घट गयी है. अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इस साल रूस की अर्थव्यवस्था में 10 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है.