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Mikhail Gorbachev Death: रूस के इस शासक की गलती से टूट गया था USSR, पुतिन अब तक कर रहे भरपाई

Mikhail Gorbachev Death : गोर्बाचेव ने वर्ष 1985 में जब सोवियत रूस की सत्ता की बागडोर अपने हाथ में संभाली, तब पूरब और पश्चिम के देशों में परमाण्विक तनाव अपने चरम पर था. उन्होंने आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था का आधुनिकीकरण करने के लिए एक सुधारवादी कार्यक्रम तैयार किया.

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 31, 2022 12:03 PM

नई दिल्ली : मिखाइल गोर्बाचेव एक ऐसा नाम, जिसने दुनिया का इतिहास ही बदलकर रख दिया. 1980 के दशक में जब पूरब और पश्चिम के देशों में परमाण्विक तनाव अपने चरम पर था तथा आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए सुधारवादी कार्यक्रम चलाए जा रहे थे, तब मिखाइल गोर्बाचेव ने 1985 में यूनियन ऑफ सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक्स (यूएसएसआर) या सोवियत संघ या फिर सोवियत रूस की बागडोर अपने हाथ में संभाली थी. सोवियत रूस की सत्ता संभालने के बाद उन्होंने ऐसी नीतियां अख्तियार की, जिससे अंतराष्ट्रीय स्तर पर एक अमेरिका के बाद एक महाशक्ति के तौर पर स्थापित सोवियत रूस का विखंडन ही हो गया. इसी का नतीजा है कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को अब तक इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. हालांकि, पुतिन की इस कोशिश में जुटे हैं कि यूएसएसआर एक बार फिर से संगठित हो जाए और वे इसी प्रयास के तहत पिछले 24 फरवरी से यूक्रेन पर ताबड़तोड़ सैन्य कार्रवाई कर रहे हैं.

हालांकि, मिखाइल गोर्बाचेव ने सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था और राजनीति को आधुनिक तरीके से उत्थान देने के लिए पेरेस्त्रोइका और ग्लासनोस्ट नीतियों को अख्तियार करते हुए कई सुधारवादी कार्यक्रम चलाए, जिसका सुपरिणाम वैश्विक स्तर पर भी देखने को मिला. यह उनकी नीतियों का ही नतीजा रहा कि उन्होंने अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के साथ बातचीत करके शीतयुद्ध को समाप्त कराने में अहम भूमिका निभाई. दुनिया के मानचित्र पर सोवियत रूस के नक्शे को बदलकर इतिहास रचने वाले मिखाइल गोर्बाचेव आज इस दुनिया में नहीं रहे. करीब 91 साल की अवस्था में मिखाइल गोर्बाचेव ने अंतिम सांसें लीं. आइए, जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ रोचक और कुछ ऐतिहासिक बातें.

दुनिया का एक कद्दावर नेता थे मिखाइल गोर्बाचेव

मिखाइल गोर्बाचेव के निधन पर संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने संवेदना व्यक्त करते हुए कहा है कि दुनिया ने एक कद्दावर नेता खो दिया है. इसमें कोई दो राय नहीं कि मिखाइल गोर्बाचेव केवल सोवियत रूस के ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के एक कद्दावर नेता थे. गोर्बाचेव ने वर्ष 1985 में जब सोवियत रूस की सत्ता की बागडोर अपने हाथ में संभाली, तब पूरब और पश्चिम के देशों में परमाण्विक तनाव अपने चरम पर था. उन्होंने आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था का आधुनिकीकरण करने के लिए एक सुधारवादी कार्यक्रम तैयार किया था, जिसके तहत पैरेस्त्रोइका और ग्लासनोस्त यानि खुलापन की नीतियां शामिल थीं.

सोवियत संघ के विघटन की बिसात पर खत्म हुआ शीतयुद्ध

मिखाइल गोर्बाचेव ने अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के साथ बातचीत करके इंटरमीडियेट परमाणु बल सन्धि (आईएनएफटी) की तमाम मिसाइलें नष्ट करने पर राजी किया और बरसों से चल रहे शीतयुद्ध को समाप्त कराने में अहम भूमिका निभाई. इसके साथ ही, उन्होंने अफगानिस्तान में रूसी नियंत्रण भी खत्म किया और पूर्वी यूरोप पर रूसी आधिपत्य भी समाप्त किया. इसका नतीजा यह निकला कि छह साल के अंदर सोवियत संघ विघटित होकर करीब नौ भागों में विभाजित हो गया.

जब गोर्बाचेव को मिला नोबेल शांति पुरस्कार

आर्थिक और राजनैतिक स्तर पर सुधारवादी कार्यों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिखाइल गोर्बाचेव की काफी प्रशंसा की गई, लेकिन उनके ही देश सोवियत संघ में उनकी जमकर आलोचना भी की गई. हालांकि, पूरब और पश्चिम के देशों के आपसी संबंधों में नाटकीय बदलाव लाने में अहम भूमिका निभाने के लिए मिखाइल गोर्बाचेव को नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया. उस समय अपने एक बयान में मिखाइल गोर्बाचेव ने कहा था, शान्ति समरूपता में एकता नहीं है, बल्कि विविधता में एकता है.’

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1991 में कट्टरपंथी विद्रोहियों का करना पड़ा था सामना

मिखाइल गोर्बाचेव को वर्ष 1991 में कट्टरपंथी साम्यवादियों के विद्रोह का सामना करना पड़ा था. इतना ही नहीं, जब वे काला सागर में छुट्टियां मनाने गए हुए थे, तो उन्हें वहां गिरफ्तारर कर लिया गया था. हालांकि, उस समय मॉस्को में पार्टी के नेता बोरिस येल्तसिन ने राजधानी में सोवियत सेना द्वारा समर्थित विद्रोह को प्रभावशाली तरीके से खत्म कर दिया था और मिखाइल गोर्बाचेव को रिटायर कर दिया था. उनके रिटायर किए जाने के बाद सोवियत संघ (यूएसएसआर) का विघटन हो गया था.

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