म्यांमांर में सत्ताधारी आंग सांग सू की की पार्टी को बहुमत मिलने की उम्मीद, अंतिम परिणाम के लिए करना होगा अभी इंतजार
रंगून : म्यांमांर में सत्ताधारी पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी ने अपना विश्वास व्यक्त किया है. रविवार को हुए मतदान में फिर से पार्टी बहुमत हासिल करेगी. निर्वाचन आयोग ने प्रारंभिक नतीजे जारी नहीं किये हैं. उसका कहना है कि मतगणना में अभी समय लगेगा.
रंगून : म्यांमांर में सत्ताधारी पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी ने अपना विश्वास व्यक्त किया है. रविवार को हुए मतदान में फिर से पार्टी बहुमत हासिल करेगी. निर्वाचन आयोग ने प्रारंभिक नतीजे जारी नहीं किये हैं. उसका कहना है कि मतगणना में अभी समय लगेगा. मालूम हो कि आंग सान सूकी के नेतृत्व में एनएलडी ने 2015 में भारी बहुमत के साथ सत्ता में आयी थी. उस समय पार्टी ने संसद में 390 सीटे जीती थीं.
मालूम हो कि म्यामांर में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय विधायिकाओं में 1119 निर्वाचन क्षेत्रों के लिए आम चुनाव हो रहा है. देशभर में लोग 42 हजार से ज्यादा मतदान केंद्रों में वोट डाल रहे हैं. देश में कुल 5643 उम्मीदवार अपना चुनावी भाग्य आजमा रहे हैं. सत्तारूढ़ नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) और सेना द्वारा समर्थित यूनियन सोलिडरिटी एंड डेवलपमेंट पार्टी (यूएसडीपी) इस चुनाव में प्रमुख दल हैं.
म्यामांर के संविधान के अनुसार, संसद के दोनों सदनों में 25 प्रतिशत सीटें सेना द्वारा मनोनीत उम्मीदवारों के लिए आरक्षित होती हैं. म्यामांर की संसद का वर्तमान कार्यकाल 31 जनवरी, 2021 को समाप्त हो रहा है. मालूम हो कि एनएलडी की नेता और नोबेल शांति पुरस्कार विजेता आंग सान सू देश में काफी लोकप्रिय हैं. हालांकि, पार्टी की सीटों में कुछ कमी आने की संभावना जतायी जा रही है.
आंग सांग सू की को भारत का नजदीकी माना जाता है. उनकी उच्चस्तरीय पढ़ाई भारत में ही हुई है. उन्होंने दिल्ली से पढ़ाई की है. आंग सांग सू की की नजरबंदी से रिहाई के दौरान भारत ने अप्रत्यक्ष रूप से मदद की थी. मालूम हो कि उससमय म्यांमार की सेना ने सत्ता पर कब्जा कर लिया था. उसी समय से आंग सांग सू की का भारत की ओर झुकाव बढ़ गया.
पिछले चुनाव के समय साल 2015 में चीन ने म्यांमार के सैन्य गठबंधन का समर्थन किया था. सैन्य-गठबंधन वाली यूनियन सॉलिडैरिटी एंड डेवलपमेंट पार्टी को 2015 के चुनाव में शिकस्त मिली थी. अब आंग सांग सू की की पार्टी की मजबूत स्थिति को देखते हुए चीन पसंद करने लगा है. रोहिंग्या विवाद से दूर रहने और आर्थिक लाभ के मद्देनजर पिछले कुछ वर्षों से पार्टी चीन की पसंद बनी हुई है. हालांकि, विद्रोहियों को हथियार, पैसा और समर्थन देने के कारण म्यांमार की सेना चीन का विरोध कर रही है.